साहित्य चक्र

24 March 2019

माथे पर तिलक

 प्रेम कमण्डल 




माथे पर तिलक उसूलों का
हाथों में प्रेम कमण्डल है
संयम की माला पकड़ी है
सन्तोष साधना का बल है 

ईर्ष्या का हवन किया हमने
अब द्वेष विसर्जित कर डाला
करना ये यज्ञ जरूरी था
हमने सब अर्पित कर डाला
इस मन के गंगा सागर में 
पावन संकल्पों का जल है 

जब से सन्देह मिटा मन का 
सारी दुनिया घर लगती है 
सब अपने-अपने लगते हैं 
इक ज्योति  प्रीत की  जगती  है
अनमोल खजाना ढूँढ  लिया 
मन का आबाद धरातल है 

महकेगी जीवन की बगिया
हम ऐसे फूल खिलाएँगे
आए थे खाली हाथ भले
कुछ देकर जग को जाएँगे
पल भर का सारा खेल यहाँ
क्यों ? हार-जीत का दंगल है


                                ।। सुनीता कांबोज ।।



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