साहित्य चक्र

24 March 2019

बेशर्म जोकर

जोकर

अपने ही तमाशे पर देखो वो मुस्कुरा रहा है।
बेशर्म जोकर देखो कैसे खिलखिला रहा है।।

अजीब चेहरे बनाकर सबको सर्कस में बुला रहा है।
पापी पेट की खातिर बहुत उछल खुद मचा रहा है।।

किसी के भी सामने अपना तमाशा दिखा रहा है।
बड़ा बेगैरत है अपनी बेज्जती पर मुस्कुरा रहा है।।

नाच रहा है,उछल रहा है,अपने करतब दिखा रहा है।
चेहरे पर मीठी मुस्कान लिए अपने दर्द छिपा रहा है।।

दर्द बहुत है और आँखो में आँशु भी छिपे कहीं है।
पर अपने खेल से सब से सबकुछ छिपा रहा है।।

लोग जोकर के खेल पर ठहाके लगा रहे है।
आज इसके खेल से अपना दिल बहला रहे है,
सब कहीं ना कहीं अपने दुखों को भुला रहे है।।

खेल के बाद अपना दुख मिटाने ये कहाँ जायेगा।
अपने पर हँसने वाला जोकर ये कहाँ से लाएगा।।

                                           नीरज त्यागी


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