परछाइयों को ,
छूने की ,
कोशिशें ,...
जितनी की .....
वह ,
दूर होती गईं ....
मुझसे ......
ज्ञात था,,
यह सब ,....
मगर ...
भ्रम और भुलावे में ,
जैसे ,जीता है.....
हर कोई ....
इस संसार में।।
वैसे ही .....
भागना ,
परछाइयों के पीछे ......
किसी असत्य,
के उजाले से ....
भरी किरणों को ....
मुट्ठी में बंद करने.....
जैसा ही है......
'जो '''ठहरती नहीं है......
मेरी हथेलियों में भी ....
अथक प्रयास ,,
के बावजूद .. भी।।
सुकेशिनी दीक्षित
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