साहित्य चक्र

24 March 2019

आँख रोती है

दिल भर आता है
आँख रोती है
जब कोई मासूम
आबरू खोती है।

पाव में पायल
बालों में चिमटी
हाथों में छोटा
सा कंगना भी
शोर करता है।

जब कोई अधेड़
फूल सी नाजुक
बच्ची को नोचता है।

मासूम सी वो 
गुड़िया जाने क्यों
और कैसे हवस
का शिकार होती है।

आँख भर आती हैं
माँ की दूध की
छाती भी रोती है।

यकीन नही होता
मुझे पढ़कर भी
ख़बरों को रोज
कैसे कोई कुचल
सकता हैं कमजोर
कलियों को इतनी
बर्बरता से की
मानवता शरमाती है
जब दो महिने की
नन्ही गुड़िया 
लहूलुहान हो जाती हैं।।

फटा कलेजा धरती का
जब डॉक्टर भी
रो जाता हैं
हाय फूल सी 
नाजुक चिड़िया
नोंच कोई 
खा जाता है।

लिखने में आज तो
कलम भी मेरी रोती है।
यहाँ रोज कोई मासूम 
अपनी आबरू खोती हैं।।


                                          संध्या चतुर्वेदी



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