साहित्य चक्र

10 March 2019

आज अंधेरे में हूँ तो क्या




आज अंधेरे में हूँ तो क्या
तेरी हिम्मत की लो से जमाना देखना चाहती हूं माँ 
बेटों की इस दौड़ में दौड़ना चाहती हूं माँ 
हमेशा दर्द हम बेटियों ने सहा है 
आज तेरा हिस्सा बनकर 
इस दुनिया से लड़ना चाहती हूं माँ 
भरोसा रख उस कोख पर 
जिससे मै तुझसे जुड़ी हूँ माँ तेरी उंगली पकड़कर 
इस खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं माँ 
क्यूं जमाने ने हम बेटियों को हमेशा दी मौत दर्द तन्हाई है 
हर वक्त वहते रहे आंसू हमारी आंख से 
मगर जमाना समझा कि यह सिर्फ पानी है 
मेरी धड़कने जुड़ी है तुझसे इस जहाँ में आने से पहले 
तेरी भी आंख नम हुई होगी मेरी सांस टूटने से पहले 
फिर क्यूं न तूने हिम्मत दिखा दी मेरी नब्ज छूटने से पहले 
कब तक मैं इस तरह दम तोड़ती रहूंगी 
कब तक सड़कों के किनारे और गड्ढ़ों में सड़ती रहूंगी 
क्यूं जिंदगी से पहले हमारे हिस्से में मौत लिख दी जाती है 
गर हमारे मरने पर तू तड़पती है 
तो आसानी की मौत हमें भी नही मिलती है 
अब तो हिम्मत दिखा दो माँ 
वरना यूँ ही मेरी तरह हर बेटी 
कोख में मौत का इंतज़ार करती रहेगी माँ
जिंदगी की तलाश में न जाने 
कितनी ही कोखों में भटकती रहेगी माँ ।।


                                                     शिवांगी जैन


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