मीत मेरा......ना जाने कहाँ खो गया?
ढ़ूंढती हैं मेरी निगाहें उसे यहाँ-वहाँ!
सुकूं लूटके दिल का जाने कहाँ गया?
दिल हमारा दुखाया करूं क्या बयाँ?
साथ उसके खुशी से जीए जा रहे थे,
वो न रहा जिंदगी में लुटा है मेरा जहाँ!
संग उसके दुख भी, सुख ही लगते थे,
अब सुख भी लगे दुख करें क्या बयाँ!
बिछड़के उससे, जीवन में अँधेरा हुआ,
सच है उसी से ही था रौशन मेरा जहाँ!
उसकी कमी से अधूरा है सुंदर जहाँ,
उससे ही तो था मुकम्मल मेरा जहाँ!
ढ़ूंढ कर कोई ला दो मेरे मनमीत को,
बिना उसके जीना नही गँवारा है यहाँ!
मंजू श्रीवास्तव
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