साहित्य चक्र

24 March 2019

जिंदगी के रूप

जिंदगी के रूप
जिंदगी तेरा अजब ही रंग ढंग है,
किसी के पास ज्यादा तो किसी के पास कम है,
क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी,
बच्चे से बड़ा इंसान बनाती है जिंदगी।
मां बाप को पूछते नहीं आजकल के बच्चे,
ऐसा तजुर्बा दिखाती है जिंदगी।

भगवान को तो समझते हैं पत्थर की मूरत,
 पत्थर की मूरत को पूजती है जिंदगी।
इंसान को इंसान नहीं समझते हैं लोग,
लोगों को आइना दिखाती है जिंदगी।

मां बाप की सेवा जो करते हैं,
उन्हें भगवान का दर्शन कराती है जिंदगी।
फुटपाथ पर पड़े लोगों का कोई सहारा नहीं होता,
सहारा बनकर उन लोगों को रास्ता दिखाती है जिंदगी।

भूखे को भोजन, प्यासे को पानी,
इन सब का इंतजाम करती है जिंदगी।
जिंदगी को जिसने समझा बोझ की गठरी,
उन्हें बोझ की गठरी ढोना सिखाती है जिंदगी।
जो आया है वह जाएगा यही सच का आईना है,
मौत से सबको मिल आती है जिंदगी।।

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