साहित्य चक्र

01 March 2019

गधे का सीधापन



बस ऐसे ही एक साहित्यिक पत्रिका के पृष्ठ उलट-पलट रहा था कि तभी एक लघुलेख पर नजर पड़ी | जो गधा महाशय के वर्णन में लिखा गया था | लेख में मुंशी प्रेमचंद की किसी रचना का कुछ हिस्सा साभार लिया गया था | लेख पढ़कर मेरी पुरानी स्मृतियां ताजा हो गई | मेरे नाम के पीछे जो ‘ ऋषि ’ शब्द लगा है, वो दो गधाओं की एक बड़ी कहानी से प्रेरित होकर ही आया है | मुझे बिल्कुल सही-सही याद है, जब मैं प्राईमरी में पढ़ता था | उस समय ताऊ को प्रौढ़शिक्षा के अन्तर्गत कुछ साहित्यिक पुस्तकें मिलीं थी | उन्हीं में से एक पुस्तक मेरे हाथ लग गयी | लेखक का नाम याद नहीं पर कहानी दो गधाओं की रही थी | बहुत ही रोमांचक कहानी थी | उसका अधिकांश सार मुझे याद है | जब दोनों गधे मित्र मुसीबत में फंस गये तो उन्होंने भेष बदल कर अपनी समस्या का हल निकाला | उनका एक संवाद “हम ऋषि कुमार हैं |” मुझे बहुत पसंद आया और मैं भी ऋषि कुमार बन गया, क्योंकि गधे के सभी गुण मुझमें विद्यमान हैं | हालांकि ऋषि कुमार मेरे चाहने वालों को पसंद नहीं आया और मजबूरन मुझे ‘कुमार’ हटाना पड़ा | शायद दो बार कुमार आने से लोगों को हजम नहीं हुआ होगा |


खैर अब बात करता हूँ, अपने प्रेरणास्त्रोत इष्ट मित्र गधे महाराज की | गधे को लोग बेवकूफ समझते हैं, लेकिन यह सत्य नहीं है | गधा बेवकूफ नहीं होता | उसके सीधेपन, भोलेपन का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैं | सचमुच वह एक संत है, साधु है | उसे क्रोध नहीं आता, कितना भी दुख मिले दुखी नहीं होता और हाँ सुख में वो ज्यादा सुखी होने का रोब भी नहीं झाड़ता | सुख-दुख, लाभ-हानि में हमेशा स्थाई रहता है | उसका चेहरा रंग नहीं बदलता और ये सारे गुण एक साधु - संत में होते हैं, इसलिए हम गधे को ऋषि कुमार कह सकते हैं | वह सही मायने में इसका हकदार भी है | अगर सीधापन पागलपन की श्रेणी में आता है तो गधे को भी घोडे़ की तरह लात मारना सीख लेना चाहिए | अत्याधिक सद्गुण शायद इंसान को बेवकूफ की श्रेणी में ला देता है, क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जो लोग ऐंट दिखाते हैं, झूठा रोब झाड़ते हैं, लोग उनसे डरते हैं और सम्मान भी देते हैं परन्तु सीधे - साधे लोगों की तुलना गधे से की जाती है | दुनिया कुछ भी कहे पर मैं तो गधे से प्रेरणा लेने वाला हूँ और कभी - कभी घोड़े की तरह लात भी मार देता हूँ... लेकिन बेवजह कभी नहीं मारता | अत्याधिक मीठा होना मतलब चीटियाें को दावत देना और मैं नहीं चाहता कि चीटियां मुझे काटें | मेरे कुछ गुण नीम से भी मिलते हैं और फिर सारा संसार जानता है नीम के सद्गुणों  को, भले वो कुछ ज्यादा ही कड़वा है, परन्तु स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक है |


                                                  लेखक- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 




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