साहित्य चक्र

24 March 2019

** चुनावी कविता **


सरकार बने बिंदास

बंदर जैसे उछल रहे, कुछ लोग टिकट के वास्ते, 
बदल रहे हैं रंग अपना, और बदल रहे हैं रास्ते |
कोई रिझाए भाषण देकर, कोई रिझाए धन से, 
देखो कैसे ये चरण चूम रहे, हे भगवन! बेमन से ||


चेहरे का ये बदल मुखौटा, भक्ति करे है राम की, 
छेड़े तो फिर पूर्ण करे, जो बात करे संग्राम की |
ना मंदिर का निर्माण हुआ, ना अत्याचार पर रोक लगी,
नारी की रक्षा के लिए, किस आंदोलन की अलख जगी ||


मन मेरा हो बैचेन कहे, सत्ता अब कहाँ सुरक्षित है,
जनता सोच रही कि, किस सरकार में अपना हित है |
अब तो हर दल का नेता , बिन पैंदे का लौटा लगे, 
कमा नहीं सकता तो, भोली-भाली जनता को ठगे ||


जनता ने खूब करी है, बौछार तुम पर वोटों की, 
और लोकतंत्र की हत्या कर दी, देकर रिश्वत नोटों की |

अरे जरा तो शर्म करो, ओ! लोकतंत्र के हत्यारों, 
निर्दोष-सी जनता को तुम, भय दिखाकर ना मारो,

उम्मीद करें क्या, राजसिंहासन पर बैठे सम्राटों से, 
जो नोंच रहे हो जनता को, तीरों से और काँटों से |

आने वाली सरकार हो मजबूत और निष्पाप ,
करूँ मैं ऐसी आस, 
"शेलु" तो बस यही चाहे, सरकार बने बिंदास ||


                                                           सुनील पोरवाल "शेलु"


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