साहित्य चक्र

24 March 2019

हर कदम पर

*पितृत्व *
********

हर कदम पर ,,
विषमताऐं ,,....
जीवन की ,,
और.....
विपरीत धार.....!!

" आजीवन ''
एक ही पथ, पर....
निरंतर....
गमन ।।
असत्य के ,
कुहासे में ...
सत्य की खोज ।।

चले वह .........
लड़खड़ाते हुए ......
कभी नहीं........******
सदा ऊर्ध्व,,
शिखरों के जैसे ....
*अटल *
पितृत्व की
पोटली में .....थी..
इतनी सुगंध ....
कि परम भी ......
नत था ..........
उनके सम्मुख...।।
असीमित भार.......
से पितृत्व संपन्न ........
लुटाते रहे ......
सदा एक
*विशेष पिता*
बन ..........
दुआएं ,,
प्रार्थनाएं ,,
और उनके आशीर्वचन.....
निरंतर बहते रहे .......
उनकी *संतति* की ओर....
गंगा की अविरल,,,,
मूक धार ...
बन।।।।।

सुकेशिनी


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