साहित्य चक्र

28 July 2020

कैसा समाज जो मासूमों को भी नहीं देखता ?




उत्तराखंड के टिहरी घनसाली क्षेत्र सागर सुनार भिलंगना ब्लॉक में पुरवाल गॉव (हिन्दाव) में शर्मसार करने वाली घटना सामने आयी है, 65 वर्षीय गोपेश्वर प्रसाद तिवारी ने 6 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उम्र को तथा मानवता को शर्मसार किया है। परिवार जनों ने ग्राम प्रधान व पंचों से न्याय की गुहार लगायी लेकिन गॉव के प्रधान व ग्राम पंचों ने पीडित परिवार की गुहार को अनसुना कर घटना के होने की पुष्टी तक नही की ऊपर से मामले को रफा दफा करने की कोशिश की गई।

पीडित परिवार दलित है जिस पर अरोपी परिवार सामान्य जाति से होने के कारण पीडित परिवार पर आरोपी के भाई बन्धुओं द्वारा पीडित परिवार को धमकी दी है कि कुछ ही दिनों में छूट कर तुम्हें गॉव से ही निकलवा देगें, गौरतलब है कि पीडित परिवार बहुत ही गरीब है जिनके पास घनसाली थाना तक जाने का किराया नही था। पीडित परिवार की ओर से थाना घनसाली को दी गयी तहरीर पर आरोपी को पोक्सो एक्ट के तहत जेल भेज दिया है।

जानकारी के मुताबिक शनिवार को पीडित बच्ची के माता पिता शाम को बाजार गए थे, बच्ची को घर पर अकेला देख गोपेश्वर प्रसाद तिवारी ने बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया। माता-पिता के घर लौटने पर बच्ची ने अपने साथ हुए गलत व्यवहार की घटना की जानकारी अपनी मां को बताई उसके बाद आरोपी पक्ष से परिवार पर दबाव बनाया गया। मीडिया ने आरोपी का नाम तक छापने की जमहत नहीं उठाई। परिवार अभी भी दहशत में है जबकि क्षेत्र से लेकर राजधानी तक किसी पर भी इसबा को लेकर आक्रोश देखने को नहीं मिला। 

                                  आर_पी_विशाल


“रंडी” शब्द..! पुरुष प्रधान देश का एक ऐसा घिनौना सच ?

 
      


क्योंकि कहीं ना कहीं पुरषों क़ो  लगता है कि औरतें इनसे कमतर हैं, और जब यही औरतें इनको  चुनौती देती हैं तब ये बौखला जाते हैं और जब आप किसी औरत से हार जाते हैं तब आप बौखलाहट में अपना गुस्सा या विरोध दिखाने के लिए औरत को गाली देते हैं, उसे “रंडी” कहते हैं! मगर “रंडी” शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है ना ही आपका गुस्सा, ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी “घटिया मानसिकता”

रंडी-वेश्या कहकर नारी क़ो अपमानित करने की लालसा रखने वाले ऐ कमअक्लों, एक पेशे को गाली बना देने की तुम्हारी फूहड़ कोशिश से तो उन पर कोई गाज़ गिरी नहीं। पर अपनी चिल्ला-पों और पोथी-लिखाई से छानकर क्या तुमने इतनी सदियों में कोई शब्द, कोई नाम ढूंढ़ निकाला?

 अब बात करती हूँ कुछ पुरषों के मर्दानगी की औकात की:-

“नारी नरक का द्वार है” या स्त्री के लिए सम्मानसूचक शब्द समाज ने दिये – “वैश्या, रण्डी ,छिनाल ,कलंकिनी” और भी न जाने क्या क्या।

एक सवाल कुछ पुरुष जाति से:-

अपराधी अगर स्त्री-पुरुष दोनों हैं तो स्त्री को नारी निकेतन और पुरुष को छुट्टा आजादी क्यों? मैने तो यही सुना था कि पुरुष वह जो स्त्री की आंखों में आंसू न आने दे। ऐसा पुरुष कहां पाया जाता है मुझे उसका पता चाहिए। ऐसे विज्ञापन देख एक सवाल तो रोज उठता है कि जब पुरुष प्रधान समाज में ऐसे विज्ञापनों की भरमार होगी तो पता नहीं अभी कितनी अरुणाएं, कितनी निर्भयाएं, कितनी ही मासूम बच्चियां आबरू लुटा संसार से विदा होंगी।

अरुंधती रॉय ने कश्मीर पे कुछ कहा, तो भक्तों ने उसको “रंडी” कहना शुरू कर दिया!

– शहला राशिद ने भाजपा के विरोध में लिखा तो उसको भी “रंडी” शब्द से अलंकृत किया गया!

– साल भर पहले की बात है मारिया शारापोवा को “रंडी” सिर्फ़ इसलिए कहा गया क्योंकि वह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती थीं!

– सोना महापात्रा “रंडी” हो गयीं क्योंकि वो सलमान ख़ान की रिहाई सही नहीं मानती थीं!

– बरखा दत्त से लेकर निधि राजदान तक वे सभी औरतें जो आपकी “अंध-भक्ति” का विरोध करती हैं, वो “रंडी” हैं!

– सानिया मिर्ज़ा से लेकर करीना कपूर तक हर वो सेलेब्रिटी “रंडी” है जिसके प्रेम ने मुल्क और मज़हब की दकियानूसी दीवारों को लांघा!

– वह चौदह साल की लड़की भी उस दिन आपके लिए “रंडी” हो जाती है जिस दिन वह आपका प्रपोज़ल ठुकरा देती है और अगर कोई लड़की आपके प्रेम जाल में फंस गयी तो वह भी ब्रेक-अप के बाद “रंडी” हो जाती है!

– जीन्स पहनने वाली लड़की से लेकर साड़ी पहनने वाली महिला तक सबका चरित्र आपने सिर्फ़ “रंडी” शब्द से परिभाषित किया है!

काश कोई इस समाज को समझा सके कि पुरुष का पौरुष संयम और सदाचार से बढ़ता है। तुम उसे  रंडी, वेश्या कहते हो, उनका  बलात्कार करते हो, उनके  शरीर को गंदी निगाहों से देखते हो, उनके पेट में ही मार देते हो, सरेआम उनके कपड़े फाड़ते हो… मत भूलना ये अस्तित्व उन्ही से मयस्सर है तुम्हें।

क्या कभी देखा है किसी रंडी को तुम्हारे घर पर कुंडी खड़का कर स्नेहिल निमंत्रण देते हुए?? नहीं न!!! ….वो तुम नीच नामर्द ही होते हो, जो उस रंडी के दरबार में स्वर्ग तलाशने जाते हो !
                                       नूपुर श्येन


टाइम कैप्सूल क्या है ?





टाइम कैप्सूल’ एक बॉक्स होता है, जिसमे वर्तमान समय की जानकारियाँ भरी होती हैं। देश का नाम, जनसँख्या, धर्म, परंपराएं, वैज्ञानिक अविष्कार की जानकारी इस बॉक्स में डाल दी जाती है। कैप्सूल में कई वस्तुएं, रिकार्डिंग इत्यादि भी डाली जाती है। इसके बाद कैप्सूल को कांक्रीट के आवरण में पैक कर जमीन में बहुत गहराई में गाड़ दिया जाता है। ताकि सैकड़ों-हज़ारों वर्ष बाद जब किसी और सभ्यता को ये कैप्सूल मिले तो वह ये जान सके कि उस प्राचीन काल में मनुष्य कैसे रहता था, कैसी भाषाएं बोलता था। टाइम कैप्सूल की अवधारणा मानव की आदिम इच्छा का ही प्रतिबिंब है। अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर की नींव में एक टाइम कैप्सूल डाला जाएगा।

भारतवर्ष राममंदिर निर्माण में इस बार बहुत सावधानी बरत रहा है। पिछले गुज़रे सैकड़ों वर्ष के कटु अनुभव ने हमें सिखाया है कि बाबर युग की पुनरावृत्ति दोबारा न हो। राम मंदिर की नींव में टाइम कैप्सूल इसी कारण डाला जा रहा है कि भविष्य में हमें श्रीराम के लिए सबूतों के अभाव में फिर से न्यायालय के चक्कर न काटना पड़े।

अभी स्पष्ट नहीं किया गया कि कैप्सूल में क्या-क्या रखा जाएगा। निश्चित ही इसमें मंदिर के नक़्शे का एक ब्लू प्रिंट रखा जाना चाहिए। अयोध्या का संपूर्ण इतिहास हो। उसके चार बार उजड़ने और फिर बसने की पूरी कथा हो। राम मंदिर को लेकर लड़ी गई लंबी संघर्ष गाथा का उल्लेख हो। यहाँ तक कि कोर्ट में चले कई साल के युद्ध का लेखाजोखा हो।

राम मंदिर निर्माण के लिए प्रयास करने वाले नेताओं का उल्लेख हो। यहाँ तक कि वयोवृद्ध अभिभाषक श्री पारशरण का उनके फोटो के साथ उल्लेख हो। राम सेतु और राम परिक्रमा पथ को स्थान मिले। भारत के जन्म से लेकर वर्तमान की सम्पूर्ण कथा उस कैप्सूल में हो। उस पार्टी का भी जिक्र होना चाहिए, जिसने सत्तर साल तक राम को उनके करोड़ों भक्तों से विमुख रखा था।


                                                      कुमार कृष्णा


26 July 2020

नारी नर्क का द्वार है, ऐसा संत और महात्मा कहते हैं। कहां तक सही है यह..!



हिंदुस्तान में हम स्त्री को हम संपत्ति मानते हैं। नारी संपत्ति, , स्त्री संपत्ति शब्द का हम प्रयोग करते हैं। कन्या का दान कर देते हैं, जैसे कि कोई वस्तु किसी को दान में दी जा रही हो। स्त्री के व्यक्तित्व का अंगीकार ही नहीं हो सका। और इस बात में कि स्त्री सिर्फ छाया है, स्त्री-जाति को जितने दुख दिए गए हैं उतने शायद ही किसी और को दिए गए होंगे। क्योंकि जिस स्त्री के पास आत्मा ही न हो, वह स्त्री न तो स्वयं के लिए आनंद बन सकती है और न किसी और के लिए। जिसकी आत्मा ही खो गई हो वह एक दुख का ढेर होगी और उसके व्यक्तित्व के चारों तरफ दुख की किरणें ही फैलती रहेंगी, दुख का अंधेरा ही फैलता रहेगा।

नारी नरक का द्वार नही ' नारी तो केन्द्र है ! ! 
एक सत्य 

परिवार एक आनंद का फूल नहीं बन पाया क्योंकि जिसकी आत्मा के खिलने से वह आनंद बन सकता था उसके पास आत्मा ही नहीं है। परिवार एक संस्था है मृत और मरी हुई क्योंकि नारी तो है केंद्र और उसी नारी के पास कोई व्यक्तित्व नहीं है। मनुष्य-जाति बहुत से दुर्भाग्य में से गुजरती रही है, उसमें सबसे बड़ा दुर्भाग्य, बड़े से बड़ा दुर्भाग्य नारी की स्थिति है। कौन है जिम्मेदार? जिन्होंने यह स्थिति नारी की बना दी है?  इस संबंध में खोजबीन करने से बहुत अजीब नतीजे हाथ में आते हैं। संतों से पूछिए, महात्माओं से पूछिए, वे कहेंगे, नारी–ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। इनमें ही वे नारी को गिनती करते आए हैं।

नर्क का द्वार है, नारी ऐसा संत और महात्मा कहते हैं। जिस देश में संतों, महात्माओं का जितना ज्यादा प्रभाव है उस देश में नारी उतनी ही ज्यादा अपमानित है। धर्म ने नारी की यह स्थिति की है जिस धर्म से हम परिचित हैं। और चमत्कार की बात यह है कि जिस धर्म ने नारी की यह स्थिति की है, उस धर्म को टिकाने के सिवाय नारी को नर्क का द्वार समझते है। जिन महात्माओं ने नारी को नर्क का द्वार कहा है उन महात्माओं के पालन-पोषण का सारा जिम्मा नारी के ऊपर रहा है हमेशा से। मंदिरों में जाकर देखिए, साधु-संन्यासियों के पास जाकर देखिए, एकाध ही  पुरुष दिखाई पड़ेगें, जबकि वहां आपको दस पंद्रह नारियां दिखाई पड़ेंगी। और वह एकाध पुरुष भी अपनी पत्नी के पीछे-पीछे चला आया होगा और कोई कारण नहीं हैं।

संत कहते हैं कि नारी नर्क का द्वार है।

कोई पूछे इन संत को कि पैदा कहां से हुए थे? नौ महीने किसके पेट में रहे थे? खून किसका दौड़ता है तुम्हारी नसों में, हड्डियां किससे बनी हैं, मांस किससे पाया है? अब तक ऐसा तो उपाय नहीं हो सका कि संत पुरुषों के पेट में रह कर पैदा हो सकेगा। लेकिन जिस स्त्री से मांस-मज्जा बनती है, हड्डी बनती है, जिसके खून से जीवन चलता है। नौ महीने तक जिसके शरीर का हिस्सा होकर आदमी रहता है उसी स्त्री के छूने से वह अपवित्र हो जाता है। और स्त्री के अतिरिक्त तुम्हारे पास है क्या तुम्हारे शरीर में जो अपवित्र हो गए? और स्त्रियों के ही भीड़ लगा कर पूजा करने से खुद संत अपने आप को बहुत बड़ा संत मानने लगता है, वही स्त्री के छूने से संत अपवित्र भी हो जाता है।
मूढ़ता की भी कोई सीमा होती है, जहालत की भी कोई हद्द होती है। जिस तरह स्त्री को अपमानित किया है इस पर किसी को कोई दिक्कत नहीं होती। क्युकी वो संत है। जो कहते है सही कहते है। और इसी वजह से युगों से स्त्रियों की उसके व्यक्तित्व की आत्मा छन भिन करते हुए आए है? उन लोगों ने स्त्री को अपमानित किया है और उसकी आत्मा का हनन किया है, जो लोग इस जीवन, इस जगत, इस धरती के विरोध में हैं। और उनका, उनके विरोध में एक संगति है, जो लोग भी मानते हैं कि असली जीवन मरने के बाद शुरू होता है, जो लोग मानते हैं कि असली जीवन मोक्ष में शुरू होता है, स्वर्ग में शुरू होता है, जो लोग भी मानते हैं कि यह पृथ्वी पापपूर्ण है, यह जीवन असार है। जो लोग भी मानते हैं, यह जीवन निंदित है, कंडेम है, यह जीवन जीने के योग्य नहीं है। ऐसे सारे लोग नारी को गाली देते है, क्योंकि इस जीवन को जो निंदित करते हैं वे नारी को भी निंदित करते है, जबकि यह सत्य है कि यह जीवन उनको नारी से ही मिला है विकसित हुआ है और प्रभावित भी..!

इस जीवन का द्वार नारी है और इसलिए नारी नर्क का द्वार है क्योंकि इस जीवन को कुछ लोग नर्क मानते हैं। जिन लोगों ने इस जीवन की निंदा की है उन लोगों ने स्त्री को भी अपमानित किया है। दुनिया में मुश्किल से कोई धर्म होगा जिसने स्त्री को कोई भी इज्जत दी हो। आपने मस्जिद में कभी स्त्री को जाते देखा है? स्त्री मस्जिद में नहीं जा सकती है।

स्त्री मस्जिद में नहीं जा सकती, तो स्त्री स्वर्ग कैसे जा सकेगी? मुसलमान स्त्री आज तक मंदिर में प्रविष्ट नहीं हुई। जैनों के हिसाब से कोई स्त्री मोक्ष की अधिकारिणी नहीं हैं, पहले उसे पुरुष की तरह जन्म लेना पड़ेगा फिर मोक्ष मिल सकता है। और इसकी एक बड़ी मजेदार घटना है।

जैनियों के चौबीस तीर्थंकर में एक तीर्थंकर स्त्री थी–मल्लीबाई। लेकिन दिगंबर जैन मानते हैं कि स्त्री का तो मोक्ष ही नहीं हो सकता, तो स्त्री तीर्थंकर कैसे हो सकती है? उन्होंने मल्लीबाई को बदल कर मल्लीनाथ कर लिया। वे कहते हैं, वह पुरुष है। देखते हैं मजा, एक तीर्थंकर को स्त्री मानने के लिए तैयार नहीं हैं, स्त्री कैसे तीर्थंकर हो सकती है? तो वे जरूर पुरुष ही रहे होंगे। उनका नाम ही मल्लीनाथ कर लिया मल्लीबाई से। अब कोई दिक्कत नहीं है। अब मल्लीनाथ जा सकते हैं मोक्ष में। मल्लीबाई नहीं जा सकती थीं। नाम बदल लेने से काम हो गया। कहा तक उचित है यह??

उन्नीस सौ पचास के करीब वहां हिमालय की तराई में नील गाय नाम का जो जानवर होता, उसने खेतों को बहुत नुकसान पहुंचाया था। लेकिन नील गाय को गोली नहीं मारी जा सकती क्योंकि गाय जो लगा हुआ है उसमें धार्मिक दिक्कत हो जाएगी। तो दिल्ली की संसद ने एक प्रस्ताव पास किया कि पहले नील गाय का नाम नील घोड़ी कर दो। तभी गोली मारी जा सकती है। फिर, नील गाय का नाम नील घोड़ा कर दिया गया। और शुरू हुआ उसे धुंआ-धाड़ गोली मारने की गंदी राजनीति और हिंदुस्तान में किसी धर्म के लोगों ने एतराज नहीं किया, किसी संत को कोई आपत्ती नहीं हुई, क्योंकि नील घोड़े को मारने में दिक्कत ही क्या है? क्योंकि वह तो अब नील गाय रही ही नहीं तो उसे मारने में भी कोई दिक्कत नही थी। बस लेबिल बदल दिया और काम चल गया!!?

बिचारे मल्लीबाई का लेबल बदल कर मल्लीनाथ कर दिया। स्त्री की यह हैसियत उन लोगों ने विकृत की है जिन लोगों ने इस जीवन की हैसियत को विकृत किया है। यह तथ्य समझ लेना जरूरी है, तो ही नारी के जीवन में आने वाले भविष्य में कोई क्रांति आ सकती है और नारी को आत्मा बल मिल सकता है। जब तक पृथ्वी पर जीवन स्वीकार योग्य नहीं बनेगा नारी का,तब तक यह जीवन भी अहोभाग्य नहीं बन सकता, जब तक इस जीवन को आनंद और इस जीवन को परमात्मा का प्रसाद मानने की क्षमता पैदा नहीं होती, तब तक नारी की आत्मा को वापस लौटाना मुश्किल है।

                                             नूपुर श्येन





मेरा संगी


कांपते हुए मेरे लफ्जों को
जरा पहचानो,
उनमें जो दर्द है
उसको जरा सँभालो।
तुम कहते हो न
तुम्हे क्या दर्द है ?
तो जरा देखो मेरे अंतर्मन में
हँसती मुस्काती मेरी पीड़ा को।
मैं फिर भी टूटता नहीं
कभी बिखरता नहीं,
मैं मुस्काता हूं
उस पीड़ा के साथ
भले वो दर्द दे मुझे लाख।
कभी-कभी मेरा दर्द भी
बेहद रोता है चीख़ता है 
चिल्लाता है।
देखकर मुझको मुसकुराते।
बोलता है मेरा संगी दर्द
देकर दर्द खुदा ने तुझे नहीं
मुझको ही
तोड़ा है अरोड़ा है।


                                                 राजीव डोगरा 'विमल'


क्या अमेरिका महासत्ता बना रहेगा ?



इस जगत में ऐसे अनेकों ज्ञान हैं कि जिससे लोग अपरिचित है,  ऐसा ज्ञान कि जो विज्ञान की मर्यादाओं से भी परे है, कि जो साश्त्रों का अध्ययन करके भी प्राप्त न हो शके और असंख्य पुस्तकों को पचाने के बावजूद दुर्गम है; वह है गुरुगम्य ज्ञान। जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मसिद्धांत रूपी दीया हुआ ज्ञान साक्षात् परंगुरू द्वारा अपने शिष्य को प्रदान किया गया गुरुगम्य ज्ञान था, ठीक उसी तरह इस विश्व में कहि ऐसे महात्माओं, तपस्विओं और गुरुओं ने ऐसे अनेक विषयों का ज्ञान अपने शिष्यों को दीया है जो किसी पुस्तकरूपी माध्यम में कैद नहीं है। यहाँ ऐसे ही एक ज्ञान का उल्लेख है और यह विशिष्ट विषय अज्ञात होने के उपरांत भी लोकबोलीमें सबको समज़ने में आसानी हो वैसे अगर इसको नाम दीया जाए तो वह है 'अवकाशीय एनर्जी' (स्पेटियल एनर्जी) का ज्ञान। 

एस्ट्रोलॉजीमे मान्यता रखने या न रखनेवाले सभी व्यक्ति किसीकेभी द्वारा की गई आगाहीकि तथ्यपूर्ति एवं उस पर टिप्पणीयाँ करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं,  और जब वह आगाही विश्वके महासत्ता ऐसे देश अमेरिकाके विषयमें हो, तो निःसंदेह समस्त व्यक्तिगणकि जिज्ञासा चरमसीमा पर पहुँच जाती है। ऐसी ही एक आगाही मेहसाणा ज़िले के काँसा एन/ए गाँव के अमरीश कुमार द्वारा की गई है। अमरीश कुमार अपने गुरु के पास से अर्जित कीये हुए यह ज्ञान के द्वारा वे देश एवं लोककल्याण कि भावना रखते है। वर्तमान समय तथा आनेवाला समय जैसे इस प्राचीन ज्ञान से अवगत होने के लिये चिल्ला रहा हो, उसका प्रमाण वर्तमान के पुरे विश्व के हालत दे रहें है। अमरीश कुमार ने यह सन्दर्भ में भारत को महासत्ता बनाने के उनके स्वप्न के साथ उन्होने कई बार भारत सरकार को संपर्क करने कि कोशिश की है। उतना ही नहीं वे अपनी इस अनोखी विशिष्ट विद्या द्वारा भारत को महासत्ता  बनाने के लिये केवक तत्पर ही नहीं परन्तु ऐसा करने के विस्तृत प्लान के साथ वे भारत सरकार को सहयोग देने हेतु सुसज्जित है। किन्तु भारत सरकार कि ओर से कोई भी प्रतिक्रिया न मिलते हुए उन्होंने अपना संशोधन आगे बढ़ाते हुए अमेरिका के सन्दर्भ में आगाही की। उनके द्वारा की गई धारणा के अनुसार,  न्यू यॉर्क में स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर एवं अन्य महत्वपूर्ण इमारतोंकि रचना इस प्रकार की गई है के वह नेगेटिव एनर्जी उत्त्पन्न करती हैँ। अतः इस रचना से सम्बंधित सभी स्थान तथा सभी वस्तुएँ किसी बड़ी महामारी या किसी भी प्राकृतिक/कृत्रिम आफतों का शिकार बन सकतें हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण न्यू यॉर्क-अमेरिकाके इस समयके हालात देखकर ही आँका जा सकता है। शमशान बने हुए न्यू यॉर्क की यह परिस्थिति का प्राथमिक कारण यही न्यू वर्ल्ड ट्रेड सेंटर कि रचना है ऐसा दावा वे कर रहें है।  

यह आगाही स्पेटियल एनर्जी के विषय में उनके द्वारा कीये गये संशोधन पर आधारित है। उनके द्वारा किया गया यह संशोधन कोई कुछ बार कीये गये निष्फल/सफल प्रयोगों का परिणाम नहीं अपितु उनके 23 वर्ष के लगातार अध्ययन कि गूँज है। ईस विषयमें उनके द्वारा किये गये संशोधन एवं अध्ययन के आधारपे इन रचनाओं में कुछ ऐसे वदलाव किये जा सकतें हैँ के जिसके परिणाम सवरूप यह नेगेटिव एनर्जी को पॉजिटिव एनर्जीमें परिवर्तित किया जा सकता है। यह पॉजिटिव एनर्जी का लाभ केवल न्यू यॉर्क को ही नहीं अपितु समस्त अनेरिकाको प्राप्त हो सकता है; और यह एनर्जी जग प्रख्यात होकर एक महत्वपूर्ण परिणामकि छवि बनाते हुए समस्त संसार में अपनी गूँज छोड़ सकती है। यहाँ पर दर्शाये गये मामले के सन्दर्भ में उस प्रकारका वशेष ज्ञान धराने का तथा अनेरिकाको महासत्ता बनाये रखनेका एवं उससे भी उपरांत इस विश्वमें एक विशिष्ट स्थान दिलाने का दावा उन्होंने किया था। तदोपरांत इस विशिष्ट कार्य करने के लिए वे सक्षम है उसकी माहिती उन्होंने दि. 23/08/19 को अमेरिका के प्रेसिडेंट आदरणीय श्रीमान डोनाल्ड ट्रम्प को सम्बोधित करते हुए वाइट हाउस कि वेबसाइट के द्वारा विस्तारसे दी थी ऐसा दावा भी वे कर रहें हैँ। प्रेसिडेंट एवं उनकी गवर्नमेंट जोभी मुश्केलिओं का सामना कर रहें हैं वो इसी नेगेटिव एनर्जी का परिणाम है। 


अब प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका इन बदलते हालातों और वहां कि कुछ रचनओं के प्रभाव में फसे रहकर भी अपना महासत्ता का स्थान बरकरार रख पाएगा या फिर यह आगाही के अंतर्गत अपना वर्चस्व घूमता जाएगा! क्या अमेरिकन सरकार अथवा भारत सरकार इस विशिष्ट ज्ञान के प्रयोगों का लाभ लेने का मौका चुन कर - इस अनोखी विद्या से विश्व को संमुख कर पाएंगे! या फिर समस्त मानवजात इसी प्रकार उनके द्वारा रची गई कृत्रिम रचनाओं कि नेगेटिव एनर्जी का भक्षण बनती रहेगी ?


मैं लद्दाख की सरहद पर ललकरा हूं।



चीन कम्पनी की तिजारत के साथ तंग करते हो,
अपने को सुरक्षित तो हो नहीं यहां जंग करते हो।

तेरा समान का बहिष्कार से औकात दिखाऊंगा,
तेरी बुराई का जवाब से तुझ पे लात दिखाऊंगा।

पूरे विश्व को कोरोना से लपट ली शर्म नहीं है तुझे,
पूरे विश्व को संकट में ला दिया भ्रम नहीं है तुझे।

तेरा पैरों में कभी हिंदुस्तान झुक नहीं सकता,
तेरा अंत के बिना हिंदुस्तान रुक नहीं सकता।

मूर्खता जैसा काम किया, क्या अंज़ाम हुआ चीन,
विश्व के चैनल,अख़बार में, क्या पैग़ाम हुआ चीन।

क्रोध में आज मैं लद्दाख की सरहद पर ललकरा हूं
हिन्दुस्तान में जन्म हुई है हिंदुस्तान में कुछ करा हूं


                                         अनुरंजन कुमार "अंचल"


"सब कुछ बदल रहा है"


जिंदगी की भागमभाग में सब कुछ बदल रहा है
इंसान मशरूफ है अपनी अपनी ज़िंदगी में
कभी सपनों में तो कभी अपनों में
कभी यादों में तो कभी बातो में
कभी खुशी में तो कभी गम में
कभी दिन में तो कभी रात में
कभी कल में तो कभी आज में
जमाना यूँही चल रहा हैं।

जिंदगी की भागमभाग में सब कुछ बदल रहा है
अल्फ़ाज़ों की महक कभी एक सी नही रहती
इंसान की फ़ितरत भी कभी एक सी नही रहती
कभी हजारों बातें भी दिल पे नही लगती थी
ओर कभी एक छोटी सी बात भी दिल पर नासूर कर जाती हैं
एक दौर था जब रिश्ते सच्चे हुआ करते थे।

कभी अपने होते थे पराये ओर
कभी पराये भी अपने हुआ करते थे
अब ना वो दौर रहा और ना वो रिश्ते
अब ना वो बातें रही और ना ही वो क़िस्से
जमाना यूँही चल रहा हैं
जिंदगी की भागमभाग में सब कुछ बदल रहा हैं।

कभी दोस्त होते थे सच्चे
कभी वादे होते थे पक्के
अब ना वो दोस्त रहे और ना वो दोस्ती
अब ना वो खेल रहे ना वो मस्ती
जमाना युही चल रहा हैं।

जिंदगी की भागमभाग में सब कुछ बदल रहा है
आखिर बदलना भी जरूरी है इस खुदगर्ज दुनिया में
कुछ तो दर्द होगा उस शख्स के भी दिल में
जमाने की इस जद्दोजहद में वो भी शायद ढल रहा हैं।

शायद इसलिए वो बदल रहा है
शायद इसलिए वो बदल रहा है

   
                                                    साहिल मोहम्मद


जीवन के त्योहार

भारत प्यारा देश हमारा, हम इसकी संतान हैं, 
इसकी नदियाँ कलकल करती जाने जहान है, 

इसकी मिट्टी चंदन से पावन, जल अमृत सा है, 
यहाँ का मौसम रंग रंगीला, ऋतु भी सुहानी है, 

जीवन के त्योहार अनोखें, यहाँ रीति पुरानी है, 
गोरी के आँखों में सावन, पावन मनभावन है, 

यहाँ मनती हर रोज दिवाली और दशहरा  है, 
यहाँ के पुरुष संस्कारों वाले संतान श्रवण  है, 

यहाँ की नारी सीता सावित्री और अनुसूया है।


                             डॉ कन्हैयालाल गुप्त "किशन"


वह हमेशा



वह हमेशा देश की बात करता है।
सिस्टम सुधारने की हमेशा जिद करता है।
हर रोज कलम, कैमरों से प्रहार करता है।

खबर दिखाने-बताने की फिक्र करता है।
राष्ट्र के चौथे स्तम्भ की संज्ञा वह पाता है।

वह फिर भी दिन-दहाड़े गोलियों से मारा जाता है।
आखिर कैसा है मेरे भारत का यह पत्रकार ?

जो खुद की आवाज नहीं बन पाता है।

दीपक कोहली "मदिरा"


वक्त आ गया है कि अब सरकार को कड़े फैसले लेने ही होंगे, अगर नहीं लिए तो इसके परिणाम क्या होगा ?


जी हां अब सरकार को राजनीतिक छोड़ राष्ट्र हित में फैसले लेने की जरूरत है। वक्त बहुत ही खतरनाक आ गया है कोरोनावायरस पूरे देश में अपने पैर परास चुका है और लगातार देश की जनता को अपना शिकार बना रहा है। देश के सभी राजनीतिक पार्टियों को राजनीतिक छोड़ जनहित की बात के लिए एक मंच पर आकर कड़े फैसले लेने चाहिए।


वह कड़े फैसले इस प्रकार हो सकते हैं- लोगों के अंदर कोरोनावायरस को लेकर डर को कायम करना और साथ-साथ इसके प्रति जागरूक होना। कोरोनावायरस को हमें हल्के में नहीं लेना है, स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास करना है, पुलिस कर्मचारियों की सहायता के लिए एनसीसी, स्काउट को भी उनके साथ जिम्मेदारी देनी चाहिए, मेडिकल छात्रों को स्वास्थ्य व्यवस्था में सहायता हेतु तैयार रखना, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु ठोस नीति बनाना, कई प्रदेश बाढ़ से ग्रस्त हैं वहां के हालातों को सही करने के लिए ठोस कदम उठाना, देश में अगले तीन-चार सालों के लिए सभी प्रकार के चुनाव को टालना, सत्ता पक्ष को विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर काम करना, पड़ोसी मुल्कों के साथ कूटनीतिक रूप से सीमा पर शांति बहाल करना, सभी न्यूज़ चैनलों और अखबारों के लिए एक नई गाइडलाइंस जारी करना, ट्रांसपोर्ट की सुविधा को सुचारु रुप से चालू रखने के लिए ठोस कदम उठाना इत्यादि।

जिस प्रकार से भारत में कोरोना वायरस के मरीज बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा हमें लगता है कि सरकार को आगे आकर जनहित की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। अभी लगभग 1300000 के आसपास कोरोना संक्रमित मामले हैं। जिसमें से रिकवरी भी हो रहे हैं। हां अन्य देशों के मुकाबले भारत में मृत्यु दर कम है। मगर हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे देश में मृत्यु दर कम है तो कुछ नहीं होगा। अगर वक्त रहते सही फैसले और ठोस कदम नहीं उठाएं गए तो हमें बहुत ही विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा।

अगर देश की जनसंख्या के 1% जनता को कोरोना‌ होता है तो लगभग एक करोड़ से अधिक लोग संक्रमित होंगे। जिससे निपटना बहुत ही कठिन हो सकता है। हमारी सरकारों को एक मंच पर आकर इस बीमारी के लिए ठोस नियम कानून बनाने की जरूरत है। इस बीमारी के कारण देश में सारे लोगों का रोजगार भी गया है। इसलिए खाद्य आपूर्ति भी सही ढंग और समय पर करनी होगी। अभी तक सरकार का कोई भी ऐसा फैसला नहीं आए हैं, जिससे आम जनता को सीधा लाभ मिल सके। सरकार को हर वर्ग का ध्यान रखना होगा क्योंकि वर्तमान में सभी वर्गों की हालत बेहद ही गंभीर नजर आती है।

वहीं अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोनावायरस की सही जानकारी तक नहीं पहुंच पाई है। आखिर कौन है ? सत्ता में बैठे लोगों का दायित्व बनता है कि इस बीमारी, संकट से देश की जनता को बचाएं और उन्हें आशा दिलाएं कि इस मुसीबत से हमारा देश व समस्त विश्व जल्द ही पार पाएगा। हम उम्मीद करते हैं जल्द ही कोरोनावायरस की वैक्सीन आए और इस महामारी से समस्त दुनिया को बचाएं।

@दीपक_कोहली 'मदिरा'




इंसानियत...



इंसानियत को यूं ना शर्मशार कीजिए ।
जिंदगी मौत से जूझ रही है।

 आपसी नफरतों में ,ना इसे शुमार कीजिए।

इंसानियत को यूं ना शर्मसार कीजिए।

कोई धर्म मारता नहीं है जिंदगीयों को ,
ना धर्म के नाम पर यह व्यापार कीजिए।

जिंदगी नहीं दे सकते ,जो तुम किसी इंसान को।

अपने तंग दिमागों की सोच से, 
कुछ तो सवाल कीजिए।

क्यों बंट गए लोग अलग-अलग जमातों में जमात बनके ।
अपनी इंसानियत का कुछ तो एहसास कीजिए।


                                   प्रीति शर्मा "असीम"


विजय के हकदारों को शत् - शत् नमन



वीर शहीदों के बलिदानो ने, हुंकार खुब लगाई है, 
तभी तो 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस कहलाई है। 

आओ करें, कारगिल के वीरों को याद, 
उनका अदम्य साहस, हमारा स्वाभिमान है। 

देष के लिए जो, अपना सब कुछ वार दे, 
ऐसे भारत के वीरों को, मेरा शत्-षत् प्रणाम है।। 

इन वीर शहीदों की गाथाएँ, हमको याद दिलाती है, 
ऐसे ही नहीं मिल गई आजादी, वीरों ने जान गवाई है। 

सहेज कर रखना ऐ मेरे भारतवासियों, यह हमारी कमाई है, 
कोई दुष्मन ना आँख उठाए, वीरों के खुन की दुहाई है।। 

बर्फ की सफेद चादर को, वे तिरंगामय कर आए थे, 
बेरंग पहाड़ी को भी वे, तिरंगे से रंग आए थे। 

भारत माता के शीष पर, रक्ताभिषेक कर आए थे, 
भारत माँ के लाल, अपना फर्ज अदा कर आए थे।। 

तिरंगे के रंग में रंगने वाले, घर से भी रंग ले आए थे, 
सफेद हो गया था उसका जोड़ा, जिसे ब्याह कर लाए थे। 

उस जननी की आँखों में, आँसुओं के बादल छाए थे, 
जिसने अपना दूध पिलाकर, उनको ख्वाब दिखाए थे।। 

जिसको कंधे पर बिठाकर, गाँव की सैर कराते थे, 
जिस कंधे पर जाना था पिता को, आज फिर पिता उसे उठाते हैं। 

उनकी शहादत की गाथा, आज वो पत्थर भी गाते हैं, 
जिनको वीर अपने लहु से, सींच कर आए थे।। 

आतंक के आकाओं को, ऐसा सबक सिखाया था, 
फट गई थी उनकी आँखे, जब भारतीय वीर को सामने पाया था। 

जब आतंकी भारत में, घुसने का ख्वाब लेकर आया था, 
तो उनको भारतीय वीर सैनिको ने अपने पंजे में दबाया था।। 

भारत माँ की जय का नारा वीर सपूतों ने लगाया था, 
उन गगनचुंभी पर्वतों पर, वीरों ने तिरंगा लहराया था। 

अपना सर्वस्व लुटाकर जिसने, भारत माँ का आँचल भर डाला था, 
अपना फर्ज निभाकर वीरों ने, वंदे मातरम् गाया था।। 

                                               पूजा उमठ 


21 July 2020

आखिर सानू स्कूल कब से जायेगी, कब खुलेगा उसका स्कूल.....






सानू अलसुबह चौंक कर नींद से जागी और बिस्तर पर बैठकर रोने लगी। सिसकियाँ गूंजने लगी। रोने का उसका यह क्रम चलता देख उसकी माँ ने उसे पुचकारते हुए पूछा- वह क्यों रो रही है। सानू ने रोते हुए कहा कि माँ मैंने एक बुरा सपना देखा। यह कहकर वह फिर से रोने लगी थी। उसकी माँ घबरा गई थी। उसने नन्ही बालिका से फिर दोहराया कि वह किस कारण रो रही है, वह सपना कैसा था। सानू ने अपनी माँ से कहा- माँ मत पूछो। वह सपना बड़ा भयानक था। आखिर कुछ तो बताओ, पहले चुप हो जाओ, फिर सपने के बारे मे बताओ। अपनी माँ की बात सुनकर सानू चुप हो जाती है, फिर कहती है कि उसने देखा कि स्कूल खुल गया है, और स्कूल जाने के लिए तुम मुझे तैयार कर रही हो। सानू का वह सपना जिसे उसने अब से 3 माह पूर्व देखा था, अभी तक पूरा नहीं हुआ है। उसकी मम्मी को यह उम्मीद है कि भारत के स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त अवसर पर सानू स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में अवश्य ही भाग लेगी।


काश! ऐसा ही हो। वह विद्यालय में पढ़ाया गया सब कुछ भूल चुकी है। उसका स्कूल जाने का मन नही होता। इस समय वह अपने हमजोलियों के साथ घर के अन्दर ही खेलती है। मन पसन्द खाना खाती है.....आदि.......आदि.........आदि। अभी तक उसका स्कूल खुला ही नहीं। ऑनलाइन पढ़ाई करके अन्य बड़े बच्चे स्कूलों की फीस भरने को बाध्य किये जा रहे हैं। मार्च से लेकर जुलाई भी अपने समापन की तरफ है। सरकार के निर्णय की प्रतीक्षा में आम लोग। राजकीय सेवाओं के ओहदेदार वर्क फ्राम होम कर रहे हैं। बड़े व उच्च पदस्थ अधिकारी गण पी.पी.ई. किट पहनकर क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे हैं। मीडिया में खबरें छपती हैं, और यह क्रम जारी है। कोरोना वायरस का कहर कब समाप्त होगा..........? इससे बचने की वैक्सीन कब तैयार होगी? इसी पर चर्चाएँ हो रही हैं। विपक्षी दलों के पक्षधर सत्तारूढ़ पार्टियों और सरकारों को कोस रहे हैं।


समाज सेवी संगठनों के एक्टिविस्ट समाज सेवा करने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। पहले मास्क, सैनिटाइजर और कतिपय स्थानो पर राशन बटवाया। अब चुनिन्दा जगहों पर सैनिटाइजेशन कर रहे हैं। जैसे-जैसे समय बीत रहा है अब फ्री में मिलने वाला भोजन भी मिलना बन्द हो गया है। यानि कम्यूनिटी किचेन बन्द कर दिये गये हैं। पुलिस की पौ-बारह है। मास्क चेकिंग के नाम पर वसूली जारी है। न दे पाने वाले जुर्माना भर रहे हैं। गोया आम आदमी से बड़ा अपराधी कोई नहीं है। हमने पी.एम. के कहने पर थाली बजाई। बत्ती गुल कर मोमबत्ती जलाया। सब कुछ ठीक उसी तरह किया जैसे रिमोट चाहित रोबोट। अब तो पी.एम. का निर्देश और उनके मन की बात का श्रवण किये महीनों बीत रहे हैं। 

पहले लॉकडाउन चला अब अनलॉक के बीच दो दिवसीय साप्ताहिक लॉकडाउन चल रहा है। इस स्थिति में मानव रहने को विवश जैसे उसकी जिन्दगी ही थम गई हो। सड़कों पर सन्नाटा। रेल पटरियाँ सूनी। कब चलेंगी मोटर बसें और रेल गाड़ियाँ। अटकलों का बाजार गर्म। पहले महामारी से जान बचाओ, मास्क पहनो, हाथ धुलो और लोगों से दूरियाँ बढ़ाओं यानि मास्क, सेनिटाइजर और सोशल डिस्टैन्सिंग शुड भी मेनटेन्ड, बी सेफ, बी हेल्दी। कोविड-19 पर तरह-तरह की टिप्पणियाँ और लोगों के विचार जारी। बीच-बीच में नामचीन चुनिन्दा सेलीब्रिटीज की मौतें खास हित-मित्रों की कोरोना की चपेट में आने से हुई मौत काफी दुःखदायी रही।

कोरोना काल में हमें बहुत कुछ जानने का अवसर मिला। मसलन- पैन्डेमिक (वैश्विक महामारी) कोविड-19, लॉकडाउन, अनलॉक, मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टैन्सिंग जैसे शब्दों की जानकारी हुई। लॉकडाउन में थर्मल स्क्रीनिंग, कोरेन्टाइन, आइसोलेशन, कोविड अस्पताल-एल 1, एल 2, एल 3, कन्टेनमेन्ट जोन आदि की विशेष रूप से जानकारी हुई। इस अवधि में सड़क मार्ग पर यातायात लगभग ठप्प रहा। परन्तु देश के कोने-कोने से माइग्रेन्ट लेबर्स को ढोने वाली स्पेशल सुपरफास्ट ट्रेनें देखने को मिलीं। लॉकडाउन के शुरूआती दिन में ही हमने वैश्विक महामारी की जंग लड़ने के लिए थाली, लोटा, घण्टा-घड़ियाल बजाने के साथ-साथ विद्युत चालित उपकरणों को बन्द कर अपने-अपने घरों में अंधेरा कर मोमबत्तियाँ जलाईं।

हमने देखा कि अनेकों संगठनों ने लॉकडाउन अवधि (कम से कम तीन माह) की विद्यालयी फीस माफ किये जाने के लिए आन्दोलन किया, परन्तु नतीजा सिफर ही रहा। प्रदेश और केन्द्र की सरकारों ने आर्थिक तंगी झेल रहे अभिभावकों की इस समस्या का हल नहीं निकाला। यदि यह कहा जाये कि सरकार ने विद्यालयी प्रबन्धन और अभिभावकों को अपने हाँ और न जैसे निर्णय के बीच उलझा कर रखा। इसके अलावा गरीब और मध्यम वर्गीय अवाम के घरों के पंखा और बत्ती जैसे विद्युत कनेक्शन के बिलों की माफी को कौन कहे, बकाया देय बिलों पर भी सरकार ने विचार नहीं किया। केन्द्र सरकार ने मार्च महीने के अन्त और अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक गरीबों के बैंक खातों में 500 रूपए प्रति खाता धारक को आर्थिक इमदाद के रूप में दिया। उसके बाद साइलेन्ट। पी.एम. ने अपने मन की बात में स्पष्ट किया कि कोरोना वायरस लड़ाई काफी लम्बी है। आत्म निर्भर बनकर दृढ़ इच्छाशक्ति से इसका डटकर मुकाबला करें। मास्क के स्थान पर प्रायः इस्तेमाल होने वाला लम्बा गमछा, लम्बी रूमाल, स्ट्रॉल, दुपट्टा इस्तेमाल करें। साबुन पानी से अपने हाथों को बराबर धोते रहे। सामाजिक दूरी बनाये रखें....आदि.....आदि.....आदि। 

हमने कोरोना काल में प्राण बचाने के लिए पी.एम. की हर बात मानी, और मान रहे हैं। थाली बजाया.........घरों में अंधेरा कर मोमबत्तियाँ जलाई। मास्क पहन रहे हैं। सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते हुए सोशल डिस्टैन्सिंग मेनटेन रख रहे हैं। कुल मिलाकर बीते 4 महीनों में जिन्दगी थम सी गई है। सानू और उसके हमउम्र बच्चे भी सब कुछ भूल चुके हैं। स्कूल विद्यालय क्या होते हैं यह जानने के लिए उन्हें फिर से माइन्ड मेकअप करना पड़ेगा। बहरहाल कुछ भी हो, वैश्विक महामारी कोविड-19 और पूरे विश्व की मेडिकल साइंस को लकवा सा मार गया है। इस कथित जानलेवा वायरस का एन्टीडोज कब तक सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध होगा, कहना मुश्किल है। देश में लोगों की थमी हुई जिन्दगी कब सुचारू होगी? बसें और ट्रेने तथा अन्य साधन कब फिर से पूर्व की भाँति यानि 25 मार्च 2020 के पहले की तरह कब चलेंगे।

सानू 6 वर्षीय नन्हीं बच्ची है। यू.के.जी. उत्तीर्ण कर गई है। यदि सब कुछ सामान्य होता तो अब तक वह क्लास 1 में पढ़ाई कर रही होती। अपने स्कूल को पूर्व की भाँति यूनिफार्म पहनकर, कॉपी-किताब से भरे बैग, हाथ में टिफिन और पानी की बोतल लिये मम्मी को बाय बोलते हुए जाती।


परन्तु वाह रे कोरोना........पैन्डेमिक कोविड-19 तुम कितने महान हो इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चाँद और मंगल तथा अन्य ग्रहों पर आसानी से पहुँचने वाला इंसान तुम्हारे आगे नगण्य सा होकर रह गया है। उसका सारा विज्ञान फेल हो चुका है। फिर भी हम आस लगाये बैठे हैं कि आने वाले दिनों में शीघ्र ही मानव तुमसे जंग में जीतने के लिए आवश्यक दवाइयाँ ईजाद कर लेगा।


                                                      रीता विश्वकर्मा


18 July 2020

तेरी इन नादान हरकतें


कोरोना यह तुने कैसा बवाल मचाया है,
क्यूं इस तरह पुरी दुनिया में छाया है,
जिंदगी आसमान भाव छुने लगी,
भारी गिरावट में सस्ती दौलत और माया है।

कोरोना तेरा अभिमान चुर-चुर हो जायेगा,
इसका कारण तू जो हिन्दुस्तान में आया है,
तेरी इन नादान हरकतों से आज,
हर बच्चा, बुढ़ाऔर जवान घबराया है।

कोरोना तुझे हराकर रहेंगे मोदीजी ने जनता कर्फ्यू लगाया है,
तुझसे बचने के लिए बार-बार साबुन से हाथ धुलवाया है,
चीन तुझको हाय लगेगी कैसा जादू टोना लाया है,
तेरी मांसाहारी की आदत ने दुनिया को परिणाम भुगताया है।

अपनों के संग समय बिताने का मौका सबको मिल पाया है,
आज फिर पुरे विश्व ने भारतीय संस्कृति को अपनाया है,
ऐसे कई जीव आए कोरोना तेरी क्या औकात है,
तुझे हराने को एक हो गया सारा हिन्दुस्तान है।

घमंड तेरा चकनाचूर हो जायेगा फिर सबको क्यु डराया है,
ज्यादा दुरियां दवा बन गई यह कैसा समय आया है,
सब कहते हैं यह है महामारी,
चारों तरफ एक ही गुंज कोरोना कोरोना छाया है।

                                 देऊ जांगिड़


सरसी छंद आधारित गीत


नव जीवन पाया माता से, अरु पितु से पहचान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।

माँ दुलार की नदी पिता के, सँग आमोद-प्रमोद,
संस्कार का दीप जलाया, हुआ सत्य का बोध ।

क्षमा,दया के बीज भरे उर, संघर्षों की खाद,
नैतिक गुण के पुष्प खिलाकर, शूल हरे अवसाद ।

प्रश्न सभी हल करते धर कर, अधरों पर मुस्कान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।। १।।

व्यथा छुपाए रहे बनाया, खुशियों का हकदार ,
अपनी गोद बिठाकर अतुलित, रहे लुटाते प्यार ।

बिगड़े नहीं अकारण हम पर, नहीं दिखाते रोष ,
कार्य,कुशल,कर्तव्य परायण, भरा हृदय में जोश ।

बनकर गुरु,अरु मित्र दिया है, जीवन का संज्ञान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।२।।

आशीषों की छांव तले, भरते जीवन मे रंग ,
जो तत्पर परिवार हेतु हो, वो अभिन्न हैं अंग ।

रक्त शिराओं में पितु का है, थाह,अथाह अनन्त ,
पिता समक्ष नई इच्छाओं ,का कब होता अंत ।

मात-पिता हैं रूप ईश का, दो हृद में स्थान ।
नहीं किताबों से मिलता, जो सीखा उनसे ज्ञान ।।३।।

                                          रीना गोयल


अरे चीन



भारत में हमला से सदभाव नहीं होता अरे चीन
शांत रहता तो युद्ध प्रस्ताव नहीं होता अरे चीन।

58 वर्ष बाद लद्दाख सीमा पर हमला कर बैठा
सोने की चिड़िया वाले देश से झगड़ा कर बैठा।

भारत के 20 बेटों को मारा महाकाल हो गया क्या
लगते हैं तू भी पाकिस्तान का लाल हो गया क्या।

लद्दाख वालों सेना को कुछ भी निर्णय लेने दो
अरे दम है तो भारत को भी गोली मार देने दो।


भारत प्रेम से बहुत कहा अभी तक समझा ही नहीं
भूत का महाभारत को अभी तक समझा ही नहीं।

तू विषधर है,विषधर कभी शांति हो नहीं सकता
लगते हैं,पुण्य और सत्य का बीज बो नहीं सकता।


                              अनुरंजन कुमार "अंचल"