साहित्य चक्र

25 August 2019

गाय को हम सिर्फ पूजा के समय मां मानते

वन्दे गौ मातरम्! 

हमारी भारतीय संस्कृति में नित्य कोई न कोई तीज-त्यौहार, पर्व मनाते है । भादवा बदी द्वादशी के दिन गौ माता, गौ वंश पूजा पूजा का विशेष पर्व आता है "गौ-वत्स पूजा और बछ बारस" जिन्हे देश के विभिन्न जगह पर मनाया जाता है और गाय की पूजा की जाती है।

गाय रूपी संपदा हमारे पास उपलब्ध हैं जिसे हम पवित्र और मां का दर्जा देते है, मगर इस मामले में स्थित शर्मनाक है। सिर्फ पूजा करने के समय ही हमें पवित्र गाय की याद आती हैं, वर्ना तो हम इसे एक पालतू जानवर ही समझते हैं। हमारा विश्वास कि इसकी उत्पादकता इतनी कम है कि यह सिर्फ आधा से किलो ग्राम तक ही दूध दे सकती हैं। इसलिए दूध की उत्पादकता बढाने का हमारे लिए श्रेष्ठ तरीका यही है कि विदेशी होल्सटीन फ्रीजियन या जर्सी नस्ल के साथ घरेलू नस्ल का क्राॅस करा दिया जाए। इसलिए हम शायद यही करते आ रहे हैं। हमारे देश में मवेशियों की सत्ताईस शानदार नस्ल मौजूद हैं। वह सभी इतनी अनुत्पादक, इतनी अनुपयोगी कैसे बन गई? दुनिया में सबसे छोटी वाइचूर जैसी नस्ल, जिसे प्रतिदिन सिर्फ दो किलो चारे की जरूरत होती हैं, हमारी धरती से खासतौर पर गायब हो गई हैं। विडंबना है कि यह नस्ल इंग्लैंड की रीड़िंग युनिवर्सिटी में मौजूद हैं। भारत में मवेशियों की तादाद दुनिया में सबसे अधिक है, लगभग तीन करोड़ हैं। इन सत्ताईस में से हमारी आधी नस्लें लुप्त सी हो चुकी हैं। क्राॅस-ब्रीड़िंग की अधिकता की वजह से हमारी लगभग 80 फीसदी गायें नस्ल की पहचान खो चुकी हैं। दूध के मामले में प्रतिवर्ष आठ करोड़ टन से अधिक उत्पादन के साथ दुनिया में हम भारतीय अव्वल हैं। अमेरिका का स्थान दूसरे नंबर पर आता हैं। अधिकारिक रूप से इसका श्रेय उच्च दूध उत्पादक नस्लों से आयात और घरेलू नस्ल के साथ उनकी क्राॅस-ब्रीड़िंग को दिया जाता हैं। मगर क्या यह सच है कि हमारी गायों की दूध उत्पादकता बहुत कम हैं? क्या यह नस्लें पूरी तरह से अनुपयोगी हो चुकी हैं? राजस्थान की सुप्रसिद्ध थारपारकर नस्ल का उदाहरण लीजिए। इसका नाम ही थार, पार, कर हैं अर्थात यह थार को पार कर सकती हैं। जर्सी या होल्सटीन फ्रीजियन नस्ल की गाय को आधा किलोमीटर चलाने की कोशिश कीजिए आपको हकीकत पता चल जाएगा। कुछ समय पहले एफओ के एक अध्ययन में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि ब्राजील भारतीय नस्लों की गाय के निर्यात में सबसे आगे हैं । क्या कहीं कुछ गलत नहीं हो रहा हैं?  ब्राजील हमारें रहा की नस्लों के संवर्धन में हमसे भी आगे हैं।

1960 के दशक की शुरुआत में ब्राजील ने भारत की छह नस्लें मंगाई थी। दरअसल भारतीय नस्ल के मवेशी जब ब्राजील पहुंचे तब पता चला कि यह दूध देने में भी आगे हैं। आज छह में से तीन नस्लें गुजरात की गिर और आन्ध्रपदेश और तमिलनाडू की कांकरेज व ओंगोल वहां  होल्सटीन फ्रीजियन व जर्सी के बराबर दूध दे रही हैं। अगर कल को ब्राजील से भारत में गायों का आयात होने लगे तो कोई हैरत नही होगी। अगर हम सभी ध्यान देते तो हमारी गाय सड़कों पर भटकने वाला आवारा पशु नहीं मानी जाती बल्कि एक उच्च दूध उत्पादक सम्मानीय मवेशी होती। अब वक्त आ चुका है कि पारंपरिक नस्ल वाले अपने पशुधन की कीमत हम पहचानें और न सिर्फ इनके संरक्षण बल्कि 'आर्थिक प्रगति के संसाधन के रूप में इनके इस्तेमाल के लिए देशव्यापी कार्यक्रम शुरू करें।'

एक बड़ी विडंबना है कि स्वतंत्रता के 73 वर्षो के बाद भी हमारे शिक्षा पाठ्यक्रमों में भारतीय संस्कृति की आधार गौ माता के वैज्ञानिक, धार्मिक,सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जहां तक मेरी जानकारी है वर्तमान में भारत में कहीं पर भी किसी भी राज्य में कक्षा एक से लेकर बीए, बीकॉम तक गौ माता के बारे में कोई पाठ या कोर्स नहीं है। हमनें ग्रंथों में ऐसा पढा है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है परंतु उसी लक्ष्मी के लिए हमें सहयोग मांगना पड़ता है। गौशालाएं खोलनी पड़ती है, इनके लिए चंदा इकट्ठा करना पड़ता है। कोई भी व्यक्ति भैंस को लावारिस नहीं छोड़ता है, भेड़-बकरी और अपने कुत्ते तक को लावारिस नहीं छोड़ते हैं परंतु सर्वगुण संपन्न गौमाता को लावारिस छोड़ देते है यह पाश्चात्य शिक्षा सभ्यता का सबसे बड़ा घृणित नमूना हैं। 

आज गौ वंश अपने आपको असहाय, असुरक्षित महसूस कर रहा है जो सर्वविदित है हमें इनकी रक्षा और संवर्द्धन के लिए कदम उठाने चाहिए सरकार भी इस गाय की रक्षा के लिए विशेष योजना बनाएं और हर गांव कस्बे में गौशाला बनाकर सुरक्षा के कदम उठाएं और लावारिस, असहाय गौ वंश का संरक्षण किया जाए।

मारे उबाल

हाइकु संसार 
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नशा जो किया 
फिरे भीख मांगता
घर बर्वाद |

रिश्वतखोरी
भरे घड़ा पाप का 
ड़र काल से |

मारे उबाल 
भारत में अब भी 
व्यक्ति की जात |

वो जी रहे हैं 
शोषण सहकर 
भूख मारके |

कैसा विकास 
गरीब हाशिए पे 
गाँव निराश |

नोट खाकर 
श्रीमान् मालामाल 
जन बेहाल |

देश के नेता 
जहर उगलते 
राज करते |

चारों तरफ 
मचा है हाहाकार 
जन लाचार |

धुआँ निकला 
आज चूल्हा सुलगा 
रोटी गरीब |

ईमानदारी
अब कहीं न दिखे 
फले बेमानी |

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मै प्रकृति - तुम पुरुष

!पुरुषत्व को जीती!!



मै प्रकृति
                    तुम पुरुष                    
शाश्वत सत्य 
जीवन सार
अंत राख
करो धारण
बन अघोरी 
देह पर मुझे 
सजाकर 
एकाकार हो  
लीन मुझमें जाओ।
  

योनि से बहते
रज का मस्तक पर 
तिलक लगाकर
शोभित करो ललाट को 
कर पाओगे!
घृणित मान 
हाथ तक ना लगाओगे
लांघकर समाज 
की बेडियां
पूजन भैरवी सा 
कर पाओगे! 


मै सृष्टि आधार
तुम्हारे वीर्य से 
करूँ जीवन निमार्ण
फिर भी मै असितत्व हीन 
जो करे तुम को साकार 
अभिशप्त, क्यों! 
जीवनदायिनी प्रकृति
मत करो उद्बेंलित 
संहारक बन
तोडूं रीति
देना मेरी नियति
मै प्रकृति 
पुरुषत्व को जीती


                                    ✍️ डॉ रचनासिंह"रश्मि"


पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की जयंती

हर भारतीय के जहन में बचते है भारत रत्न राजीव गांधी 


भारत रत्न एवं देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की पिचहत्तर वीं जयंती आज के दिन सम्पूर्ण राष्ट्र में आदर के साथ मनाई जा रही है। इनके द्वारा किये गये राष्ट्रउत्थान के कार्यो को याद किया जा रहा है। राजीव गांधी देश के छठे व सबसे युवा प्रधानमंत्री थे, इन्होंने यह पद संभाला तब इनकी आयु महज चालीस साल की थी।इनका जन्म मुंबई मे 20 अगस्त 1944 में हुआ था, इनका असमायिक दुखद निधन 21 मई को आम चुनाव मे प्रसार के दौरान एक भंयकर बम विस्फोट में तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर मे हो गया था।राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 75वीं जयंती 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस के रूप में मना रही है। इसके संबंध में राजस्थान के शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को एक सर्कुलर जारी किया है। इस सर्कुलर की भाषा कुछ ऐसी है कि चर्चा का विषय बरानी हुई है। इस सरकारी आदेश में राजीव गांधी को युवा हृदय सम्राट बताया गया है और कहा गया है कि सूचना क्रांति के दैनिक जीवन में बढ़ते उपयोग के लिए उन्हें राजीव गांधी का अत्यंत आदर के साथ स्मरण किया जाता है। विपक्षी दल भाजपा ने आदेश की भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि सरकार प्रशासनिक तंत्र का भी राजनीतिकरण कर रही है।इस मौके पर राजस्थान के सरकारी स्कूलों में वाद विवाद व निबंध प्रतियोगिता तथा प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाएगा। शिक्षा विभाग ने इस संबंध मे आदेश कर सुचारू रूप से मनाने  को कहा है।स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे। वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ ही उनका अन्य बड़ा मक़सद इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल की, जिनमें संचार क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल हैं।वे देश की कम्प्यूटर क्रांति के जनक के रूप में भी जाने जाते हैं। वे युवाओं के लोकप्रिय नेता थे। उनका भाषण सुनने के लिए लोग घंटों इंतज़ार किया करते थे। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए जिसका असर देश के विकास में देखने को मिल रहा है। आज हर हाथ में दिखने वाला मोबाइल उन्हीं फ़ैसलों का नतीजा है।देश में पीढ़ी गत बदलाव के अग्रदूत राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश हासिल हुआ था। अपनी मां के क़त्ल के बाद 31 अक्टूबर 1984 को वे कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे। अपनी मां की मौत के सदमे से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया। दुखी होने के बावजूद उन्होंने अपनी हर ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया था। राजीव गांधी जी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया, जहां इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया।राजीव गांधी की  पुस्तकों के साथ संगीत में उनकी बहुत दिलचस्पी थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय और आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी और रेडियो सुनने का भी ख़ासा शौक़ था। हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस हासिल किया। इसके बाद वे 1968 में घरेलू राष्ट्रीय जहाज़ कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।कैम्ब्रिज में उनकी मुलाक़ात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी, जो उस वक़्त वहां अंग्रेज़ी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। वे ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे, लेकिन 23 जून 1980 को एक जहाज़ हादसे में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारे हालात बदलकर रख दिए। उन पर सियासत में आकर अपनी मां की मदद करने का दबाव बन गया। फिर कई अंदरुनी और बाहरी चुनौतियां भी सामने आईं। पहले उन्होंने इन सबका काफ़ी विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी मां की बात माननी पड़ी और इस तरह वे न चाहते हुए भी सियासत में आ गए। उन्होंने जून 1981 में अपने भाई की मौत की वजह से ख़ाली हुए उत्तरप्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। इसी महीने वे युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए। उन्हें नवंबर 1982 में भारत में हुए एशियाई खेलों से संबंधित महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बख़ूबी अंजाम दिया। साथ ही कांग्रेस के महासचिव के तौर पर उन्होंने उसी लगन से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित और सक्रिय किया।अपने प्रधानमंत्री काल में राजीव गांधी ने नौकरशाही में सुधार लाने और देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कारगर क़दम उठाए, लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नाकाम करने की उनकी कोशिश का बुरा असर हुआ। वे सियासत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे, लेकिन यह विडंबना है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्होंने कई साहसिक क़दम उठाए, जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिज़ोरम समझौता आदि शामिल हैं। इसकी वजह से चरमपंथी उनके दुश्मन बन गए। नतीजतन, श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक़्त उन पर हमला किया गया, लेकिन वे बाल-बाल बच गए।साल 1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन वे कांग्रेस के नेता पद पर बने रहे। वे आगामी आम चुनाव के प्रचार के लिए 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर गए, जहां एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई। देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी। राजीव गांधी की देशसेवा को राष्ट्र ने उनके दुनिया से विदा होने के बाद स्वीकार करते हुए उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया जिसे श्रीमती सोनिया गांधी ने 6 जुलाई 1991 को अपने पति की ओर से ग्रहण किया। राजीव गांधी अपने विरोधियों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, तो एक पत्रकार ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क किया। उन्होंने पत्रकार को अपने घर बुलाया और कहा कि अगर वे विपक्ष के नेता के नाते उनसे राजीव गांधी के ख़िलाफ़ कुछ सुनना चाहते हैं, तो वे एक भी शब्द राजीव गांधी के ख़िलाफ़ नहीं कहेंगे, क्योंकि राजीव गांधी की मदद की वजह से ही वे ज़िन्दा हैं।उन्होंने भावुक होकर कहा कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो उन्हें पता नहीं कैसे पता चल गया कि मेरी किडनी में समस्या है और इलाज के लिए मुझे विदेश जाना है। उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाया और कहा कि वे उन्हें आपको संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद है कि इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर आप अपना इलाज करा लेंगे। मैं न्यूयॉर्क गया और आज इसी वजह से मैं जीवित हूं।फिर वाजपेयी बहुत भाव-विह्वल होकर बोले कि मैं विपक्ष का नेता हूं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि में विरोध में ही कुछ बोलूंगा लेकिन ऐसा मैं नहीं कर सकता। मैं राजीव गांधी के बारे में वही कह सकता हूं, जो उन्होंने मेरे लिए किया। ग़ौरतलब है कि राजीव गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी को इलाज के लिए कई बार विदेश भेजा था। राजीव गांधी की निर्मम हत्या के वक़्त सारा देश शोक में डूब गया था। राजीव गांधी की मौत से अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत दुख हुआ था। उन्होंने स्व. राजीव गांधी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, 'मृत्यु शरीर का धर्म है। जन्म के साथ मरण जुड़ा हुआ है। लेकिन जब मृत्यु सहज नहीं होती, स्वाभाविक नहीं होती, प्राकृतिक नहीं होती, 'जीर्णानि वस्त्रादि यथा विहाय'- गीता की इस कोटि में नहीं आती, जब मृत्यु बिना बादलों से बिजली की तरह गिरती है, भरी जवानी में किसी जीवन-पुष्प को चिता की राख में बदल देती है, जब मृत्यु एक साजिश का नतीजा होती है, एक षड्यंत्र का परिणाम होती है तो समझ में नहीं आता कि मनुष्य किस तरह से धैर्य धारण करे, परिवार वाले किस तरह से उस वज्रपात को सहें। राजीव गांधी की जघन्य हत्या हमारे राष्ट्रीय मर्म पर एक आघात है, भारतीय लोकतंत्र पर एक कलंक है। एक बार फिर हमारी महान सभ्यता और प्राचीन संस्कृति विश्व में उपहास का विषय बन गई है। शायद दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं होगा, जो अहिंसा की इतनी बातें करता हो। लेकिन शायद कोई और देश दुनिया में नहीं होगा, जहां राजनेताओं की इस तरह से हिंसा में मृत्यु होती हो।आज़ाद भारत स्व. राजीव के महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा। स्व. राजीव गांधी की जयंती 'सद्भावना दिवस' और 'अक्षय ऊर्जा दिवस' के तौर पर मनाई जाती है, जबकि पुण्यतिथि 21 मई को 'बलिदान दिवस' के रूप में मनाई जाती है।कुछ लोग जमीन पर राज करते है और कुछ लोग दिलों पर, परंतु आदरणीय राजीव जी गांधी ऐसी शख़्सियत थी जिन्होंने जमीन पर ही बल्कि लोगों के दिलों में राज किया है।वे आज भले ही आज हमारे बीच नही रहें, लेकिन हमारें दिलों मे सदैव रहेगे। उनकी 75वीं जयंती पर शत् -शत् नमन सादर श्रध्दांजलि ।


    "अमेरिका रो टाईम बम, भारत में आ फूट्यो रै ।
     वानै कालो डस ज्यो रे, अपनों राजीव लेकिन ग्यो रै ।। "




                                               - रावत गर्ग उण्डू 


मानवीय धर्म के हीरे-मोती

   " मानवीय धर्म के हीरा-मोती "

मानवीय धर्म के हीरे-मोती, सब रहते है हर गली-गली ।
ले लो तूम सेवा, दान का प्याला,आवाज लगाओ हर गली-गली ।


दौलत के मतवालों सुन लो, एक दिन तो ऐसा आएगा ।
ये धन-दौलत अर माल खजाना,  यहीं धरा पड़ा रह जाऐगा।।


तब मित्र, प्यारे,सगे,संबधी, सब एक दिन तूझे भूलाएंगे।
कल तक जो अपना कहते थे, जीवड़ा!  वह सबके बीच जलायेंगे ।।


यह जग सराय दो दिन की है, आखिर हमें तो होगी चला-चली।
यह सुन्दर काया माटी होगी, बस! चर्चा होगी गली-गली ।।


मानवीय धर्म को जिसने भी समझा, वो समझो मालामाल हुए।
धन-दौलत के बने पुजारी, सब आखिर में कंगाल हुए।।


जिस देह को तुम सजा-संवारकर, मुहं फैलाए फिरता है ।
जीवन को नशा बनाकर, अपनी दुर्दशा को बढाता है ।।


"रावत" करेगा याद इंसानियत को, अमर सीढी चढ जाएगा।
अब जगा ले कुछ आत्म ज्ञान,  तेरे वंशज भी अमर हो जाएगें।।


मानवीय धर्म के हीरे-मोती, सब रहते है गली-गली ।
ले लो तुम सेवा दान का प्याला, आवाज लगाये गली-गली ।।


                                   - रावत गर्ग उण्डू 

*कथक नृत्य से बनाई अन्वेषा ने देश मे पहचान*


    प्रतिभाएं कड़ी मेहनत से तैयार होती है। आज देश मे कई बच्चियाँ अपनी कला से पहचान बना रही है। बेटियाँ बेटों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। आज हम आपको देश की उस बाल प्रतिभा से परिचय करा रहे हैं जिन्होंने छोटी सी उम्र में कथक नृत्य के माध्यम से सम्पूर्ण देश मे पहचान बनाई है।



   नई दिल्ली की अन्वेषा नन्हीं सी बाल नृत्यांगना है जो कथक नृत्य करती है तो दर्शक दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। अन्वेषा के पिता आनन्द मोहन एक एम एन सी में वरिष्ठ प्रबंधक है। माँ स्निग्धा साधारण गृहिणी हैं। सत्रह दिसम्बर दो हज़ार नो को जन्मी अन्वेषा ने बाल्यकाल से ही दिल्ली की  कथक नृत्यशाला से कथक का प्रशिक्षण लिया। अन्वेषा केन्द्रीय विद्यालय सादिक नगर नई दिल्ली में कक्षा पांचवी में अध्ययनरत है। उन्होंने अपने गुरु पंडित कृष्ण मोहन महाराज जो बिरजू महाराज के भाई है उनसे कथक सीखा।

   मात्र तीन साल की उम्र में ही अन्वेषा ने शिवजंलि नृत्य अकादमी दिल्ली में कथक नृत्य सीखना शुरू किया था। चार साल की उम्र में उसने समहो में स्टेज प्रदर्शन करना शुरू किया। पाँच साल की उम्र में वह अर्ध शास्त्रीय और शास्त्रीय नृत्य करने लगी। छह साल की उम्र में उसने एकल प्रदर्शन शुरू किया। और नृत्य प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया।

   पिछले तीन वर्षों  से वह दिल्ली एन सी आर और उत्तर भारत मे कई नृत्य प्रतियोगिताओं में भाग ले रही है। अब तक वह जूनियर डांस प्रतियोगिता में 90 से अधिक पुरस्कार जीत चुकी है। उनके पास हर नृत्य प्रतियोगिता में शीर्ष तीन पर आने का रिकॉर्ड है।

   नन्हीं प्रतिभा अन्वेषा को अब तक कई पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें प्रमुख है  वूमेन ऑफ विजडम पुरस्कार 2019 आमिर सत्या आइकन एचीवर्स प्रतिभाशाली बच्चे की श्रेणी के लिए एशिया पुरस्कार 2019, रास बनारस ,बनारस हिन्दू विश्विद्यालय,उदित कला साधक सम्मान से नवाजा गया। जस्ट डांस इंडिया पानीपत। हरियाणा डांस चेम्पियनशिप,फरीदाबाद शोबिन डांस चेम्पियन जींद ,दिल्ली डांस दरबार दिल्ली, गुरुकुल नृत्य प्रतियोगिता दिल्ली, गन्धर्व संगीत महाविद्यालय गाजियाबाद द्वारा आयोजित प्रतियोगिता, संस्कृति प्रतिभा उत्सव, नोएडा। डांसिंग चेम्प जयपुर नृत्यंजलि इंटरनेशनल डांस चेम्पियनशिप दिल्ली स्वर सागर इंस्टिट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स द्वारा आयोजित यू पी राज्य प्रदर्शन कला प्रतियोगिता। थिरक डांस चेम्पियनशिप नोएडा डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स डांस चेम्पियनशिप यू पी। नृत्य महोत्सव फरीदाबाद, सतयुग दर्शन कला केन्द्र नृत्य प्रतियोगिता फरीदाबाद ए आई पी ए नृत्य प्रतियोगिता नोएडा। संगम कला संस्थान दिल्ली द्वारा स्वर अलंकार नृत्य प्रतियोगिता में समन्नित। राग विराग शैक्षणिक और सांस्कृतिक समाज दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नृत्य प्रतियोगिता दिल्ली डांस चेम्पियनशिप। भारत की प्रतिभा नृत्य प्रतियोगिता नोएडा। विद्यालयों में आयोजित नृत्य प्रतियोगिताओं में हमेशा अन्वेषा अव्वल आती है।


  अन्वेषा ने टी वी रियलिटी शो डांसिंग स्टार में भी भाग लिया। जो सूर्य सिनेमा पर प्रसारित हुआ। वह अभी भी तीन  टी वी रियलिटी शो कर रही है। जो आने वाले महीनों में प्रसारित किए जाएंगे।

   अन्वेषा का कहना है कि वह कथक नृत्य को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रसिद्ध बनाना चाहती है  दुनिया को भारतीय शास्त्री नृत्य के बारे में अधिक  से अधिक जानकारी मिले इस हेतु प्रयास करती रहूँगी।

                                                - राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"


याद करो उन शहीदों की कुर्बानी...

कारगिल विजय 
"""""""'''''''''''''"""""""""""""""""""


सब याद करो उन वीरों को
कारगिल विजय में प्राण गंवाई 

याद करो उन शहीदों को
जिन्होंने भारत की आन बचाई 

याद करो उन माताओं को
जिन्होंने अपने लाल को खोई 

याद करो उन बहनों को
हर रक्षाबंधन पर रोई 

याद करो उन देवियों को 
जिन्होंने अपनी सुहाग लुटाई 

खून बहा कर सीमाओं पर
हम सबको अमन चैन दिलाई 

अपने प्राणों को न्योंछावर कर 
भारत माँ की मान बढ़ाई 

सरहद पर मर मिटने वाले
रण बांकुरों की अमर कहानी बन पाई 

शहीद होकर इन वीरों ने 
हम सबको सम्मान दिलाई 

जीतकर जय हिन्द की सेना ने 
दुनिया को अपनी ताकत दिखलाई 

                                  - सूर्यदीप कुशवाहा 


17 August 2019

एक फौजी की लाश

एक फौजी की लाश ले जाते वक्त
उसके नन्हे से बच्चे ने माँ से कहा
माँ पापा को कहाँ ले जा रहे है
मुझे भी पापा के साथ जाना है
तब उस माँ ने बच्चे से कहा
बेटा तुम्हारे पापा के अधूरे
फर्ज अब तुम्हे निभाना है



बड़ा होकर तुम्हें भारत माता की
सेवा करने फौज में जाना है
अपने पापा के अधूरे काम पूरे कर
भारत भूमि का कर्ज चुकाना है
पापा की तरह बनकर तुम्हें
दुश्मन का दिल दहलाना है
अपने बूढ़े हो चुके दादी बाबा की
चिता को भी तुम्हें जलाना है
माँ की सूनी माँग का दर्द तुम्हें मिटाना है
तुम्हे भारत में पैदा होने का भी तो
मान रखना है कर्ज चुकाना है
नन्हे नन्हे कदमों के बड़े कदम
दुश्मन की चौखट से टकराना है
तुम्हे पापा के साथ नहीं जाना है
यहीं रहकर तुम्हे कर्ज चुकाना है
अपने देश से आतंकवाद मिटाना हो
देश की रक्षा करनी है देश को
दुश्मन की बुरी नजर से बचाना है
इतने कर्ज इतने फर्ज छोड़कर
तुम्हे कहीं नहीं जाना है
बच्चे ने कहा माँ ला दे पापा की
बर्दी मुझे मै अभी देश सेवा को जाऊंगा
दुश्मन को ललकार उसकी छाती पर
अपना तिरंगा फहरा कर आऊंगा
दे पापा के जूते मुझे मैं उसे पहन
अपनी किस्मत पर इतराऊंगा
पापा का हर काम अधूरा अब
मुझे पूरा करने जाना है
अब और सबर ना मुझसे होगा
होगी बंदूक मेरी और दुश्मन का सीना होगा
माँ मुझसे बडे होने तक इंतजार ना होगा
मुझे जाने दे मुझे अभी जाना है
जिसने मुझसे मेरे पापा छीने
सबक उसे जाकर सिखाना है
माँ ने बेटे को कसकर सीने से लगा लिया
उसने देश का एक और सच्चा सेवक पा लिया
वो रोते रोते कह उठी उठ चल बेटा
ये बात तेरे पापा को भी बताना है
अब वो मन में कोई भार ना लेकर जाये
उनके बेटे ने कर्ज मुक्त किया है उनको
ये खुशखबरी उन्हे सुनाना है

                                                ©आरती त्रिपाठी

परिवार और समाज का भी बंधन



राखी के धागे कच्चे ही सही लेकिन विश्वास की डोर से बंधे मजबूत बंधन है।यह त्यौहार  भाई-बहन के अटूट बंधन और असीमित प्रेम का प्रतीक है. त्‍याग और समर्पण को दर्शाता है।  रक्षाबंधन"रक्षा +बंधन" दो शब्दों से मिलकर बना है. अर्थात एक ऎसा बंधन जो रक्षा का वचन दें।

रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है. एक ऎसा बंधन जो दो जनों को स्नेह की धागे से बांध ले. रक्षा बंधन को भाई - बहन तक ही सीमित ना रखकर बल्कि परिवार और समाज का बंधन कहना सही होगा ।

आज के परिपेक्ष्य में राखी केवल बहन का रिश्ता स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धागा बांधता है.वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है. उस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है।

आज के दौर में रक्षाबंधन महत्व ओर बढ गया है. आज के सीमित परिवारों में कई बार, घर में केवल दो बहने या दो भाई ही होते है, इस स्थिति में वे रक्षा बंधन के त्यौहार पर मायूस होते है कि वे रक्षा बंधन का पर्व किस प्रकार मनायेगें. उन्हें कौन! राखी बांधेगा ,या फिर वे किसे! राखी बांधेगी. इस प्रकार कि स्थिति सामान्य रुप से हमारे आसपास देखी जा सकती है.ऎसा नहीं है कि केवलभाई-बहन के रिश्तों को ही मजबूती या राखी की आवश्यकता होती है. जबकि बहन का बहन को और भाई का भाई को राखी बांधना एक दुसरे के करीब लाता है माता-पिता का संतान को राखी बांधना और संतान को माता-पिता को हो सकता है.उनके मध्य के मतभेद मिटाता है. आधुनिक युग में समय की कमी ने रिश्तों में एक अलग तरह की दूरी बना दी है. जिसमें एक दूसरे के लिये समय नहीं होता, इसके कारण परिवार के सदस्य भी आपस में बातचीत नहीं कर पाते है. संप्रेषण की कमी, मतभेदों को जन्म देती है. और गलतफहमियों को स्थान मिलता है.अगर इस दिन बहन -बहन, भाई-भाई को राखी बांधता है तो इस प्रकार की समस्याओं से निपटा जा सकता है. यह पर्व सांप्रदायिकता और वर्ग-जाति की दिवार को गिराने में भी मुख्य भूमिका निभा सकता है. जरुरत है तो केवल एक कोशिश की।

वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक समस्याएं है.उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का पर्व महत्वपूर्ण  भूमिका निभा सकता है  आज जब हम बुजुर्ग माता - पिता को सहारा ढूंढते हुए वृ्द्ध आश्रम जाते हुए देखते है, तो अपने विकास और उन्नति पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ पाते है. इस समस्या का समाधन राखी पर माता-पिता को राखी बांधना, पुत्र-पुत्री के द्वारा माता पिता की जीवन भर हर प्रकार के दायित्वों की जिम्मेदारी लेना हो सकता है. इस प्रकार समाज की इस मुख्य समस्या का सामाधान किया जा सकता है।

इस प्रकार रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का पर्व न मानते हुए हम सभी को अपने विचारों के दायरे को विस्तृ्त करते हुए, विभिन्न संदर्भों में इसका महत्व समझना होगा. संक्षेप में इसे अपनत्व और प्यार के बंधन से रिश्तों को मजबूत करने का पर्व है. बंधन का यह तरीका ही भारतीय संस्कृ्ति को दुनिया की अन्य संस्कृ्तियों से अलग पहचान देता है।

वृक्षाबंधन एक धागा वृ्क्षों की रक्षा के लिए-

आज जब हम रक्षा बंधन पर्व को एक नये रुप में मनाने की बात करते है, तो हमें समाज, परिवार और पर्यावरण को बचाने की जरुरत है, वह सृ्ष्टि है, राखी के इस पावन पर्व पर हम सभी को एक यह संकल्प लें, राखी के दिन एक स्नेह की डोर एक वृक्ष को बांधे और उस वृ्क्ष की रक्षा का जिम्मेदारी लें. वृ्क्षों को देवता मानकर पूजन करने मे मानव जाति का स्वार्थ निहित होता है. जो प्रकृ्ति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है,पेड़ पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकुल रखते हुए, मनुष्य जाति को जीवन देते है  है. इस धरा और पर्यावरण को बचाने के लिए वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना, बेहद जरूरी हो गया है।



                                                        डॉ रचनासिंह "रश्मि"


दूषित राजनीति दूषित लोग

दूषित राजनीति दूषित लोग



आज हम भारत की राजनीति की बात करें तो वह पूरी तरह दूषित हो चुकी है। इसके लिए हम किस को जिम्मेवार ठहरा है। कुछ समझ नहीं आता मगर वास्तव में हम विचार करें तो दूषित राजनीति के लिए हमारा भारतीय संविधान ज्यादा जिम्मेवार है और कुछ हम खुद भी। राजनेताओं के लिए कड़े कानून नहीं बनाएंगे, जिसका दिल आता है राजनीति में दौड़ आता है अपने नाम के बल पर और अपने पैसे के बल पर भले उसके पास अच्छी शिक्षा हो या ना हो, इसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता मगर किसी स्कूल या कॉलेज में हमें बच्चों को पढ़ाना है तो हमेशा यही देखा जाता है कि बच्चों को पढ़ाने वाला अध्यापक अच्छी शिक्षा ग्रहण किया हुआ हो और अच्छा व्यक्ति हो मगर जब पूरे देश को संभालने की बात आती है तो यह बात बिल्कुल भी नहीं आती है।न ही भारतीय संविधान में इस तरह का कोई प्रावधान है। स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए हम एक योग्य शिक्षक को ढूंढते हैं उसके लिए कई तरह के नियम बनाए हैं। 



उसका टेट पास होना चाहिए वह कमिशन में भी पास होना चाहिए इंटरव्यू में पास होना चाहिए मगर पूरे देश को संभालने वाला एक राजनेता भला अनपढ़ हो उसके लिए किसी तरह का कोई प्रावधान नहीं है। 10000 मंत्रियों को मोबाइल फोन का भत्ता मिलता है जबकि 399 रुपए के रिचार्ज ले 3 महीने तक काल फ्री रहती है। मगर बहुत सारी कमियां हमारे खुद में भी है क्योंकि अगर कोई अच्छा व्यक्ति नेता के रूप में खड़ा भी होना चाहता है तो हम फिर भी अपनी जाति,अपने धर्म के नाम पर ही वोट देते हैं। भले वोट लेने वाला व्यक्ति कितना भी दूषित प्रवृत्ति का क्यों ना हो। अगर हम वास्तव में चाहते हैं कि हमारी देश की राजनीति जो दूषित हो चुकी है। उसको साफ सुथरा किया जाए तो हमें सबसे पहले अपनी सोच को बदलना होगा अपनी सोच के अंदर से जाति धर्म को बाहर निकालना होगा। हमें देखना होगा कि हमारे लिए कौन सा व्यक्ति राजनेता के रूप में श्रेष्ठ है भले वह किसी भी जाति का हो,भले वह किसी भी धर्म का हो। 

दूसरी तरफ जिस प्रकार एक स्कूल या कॉलेज में पढ़ाने वाले अध्यापक के लिए कड़े नियमों को पार कर एक अध्यापक के रूप में प्रवेश मिलता है । ऐसे ही कड़े नियम एक राजनेता के लिए भी होने चाहिए।जिन को पूरा करने के बाद वह देश की राजनीति में कदम रख सकें। क्योंकि पूरे देश को संभालने वाला व्यक्ति कितना काबिल है इस बात का प्रमाण भी होना चाहिए।

                                                                    राजीव डोगरा



लहरा के तिरंगा भारत का



लहरा के तिरंगा भारत का 
हम आज यही जयगान करें,
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


सिर मुकुट हिमालय है इसके 
सागर है चरण पखार रहा
गंगा की पावन धारा में 
हर मानव मोक्ष निहार रहा,
फिर ले हाथों में राष्ट्रध्वजा
हम क्यों न राष्ट्रनिर्माण करें।।

यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


इसकी उज्ज्वल धवला छवि
जन-जन के हृदय समायी है
स्वर्ण मुकुट सम शोभित हिमगिरि
की छवि सबको भाई है।


श्वेत धवल गंगा सम नदियाँ
हर पल इसका गान करें
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


नव नवीन पहनावे इसके
भिन्न भिन्न भाषा भाषी
शंखनाद से ध्वनित हो रहे
हर पल मथुरा और काशी
पावन, सुखदायी छवि इसकी
क्यों न हम अभिमान करें
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।


लहरा के तिरंगा भारत का 
हम आज यही जयगान करें,
यह मातृभूमि गौरव अपना
फिर क्यों न इसका मान करें।।

                                              मालती मिश्रा "मयंती"✍️


प्रीतबन्धन



"खूबसूरत एहसासों को समेटता 
ख़ामोश मुलाकातों में हॅ॑सी का मंजर देता
अनकहीं, अनदेखीं, अनसुनी बातों को 
अनकहें ज्जबातों में छिपाता 
गुलाब के पंखुड़ियों सा प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता हैं



खुदा का करिश्मा हैं हीरो सा दिखता हैं
दिलनशी चेहरा उसका महकता रहता हैं
कद हैं हठीले,कारगिल के जबाज सा दिखता हैं
अनकहें लफ्ज़ में महफूज रखता हैं
रक्षाकवच बन प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता हैं ।


दुखों में गले लगाता,पिता बन सिरहन देता
चुपके चुपके वह भी रोता
बेजान जिंदगी में खुदा /खुद ही बनता
बाहें फैंला रक्षावचन देता
हर लम्हें प्रीतबन्धन निभाता
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता।


मेरी हसरत को जन्नत बनाता
मेरी हर ख्वाहिश को उड़ान देता
मुझे पंखुड़ियों की तरह रखता
कभी लड़ता झगड़ता,कभी स्नेह करता
कभी मोहलत तो रहम जैंसी धमकियाॅ॑ देता
मेरी अस्मिता का रक्षासूत्र बनता
हर दिन प्रीतबन्धन निभाता हैं
मेरा भाई मुझे बहुत याद आता है।।


*दरुहा*




निरंजन ह दु तीन बाटल दारू ल धरके अइस। घर म गिस ताहन पउवा मन ला लुका दिस। एक ठन ला धरिस अउ तरिया कोती चल दिस। ओकर बेटा विनय ह टूकूर  टूकूर देखत राहय । ओतकी बेर निरंजन ह दारू ल निकालिस, आंखी ला  मुँदिस अउ गरगट ले पी दिस। अपन बाबू ल देखके विनय ह दारू म मोहागे। घर म आके दारू ल खोजिस, एक ठन पउवा उहू ल मिलगे। दारू ल धरीस  अउ मजा मारत पी दिस। ओ ह पटियागे अउ खटिया म सूत गे।



विनय के दाई ह अड़बड़ दयालु राहय अउ बहनी ह पढ़ई म आघु राहय । दूनो झन घर म अइस ओतका बेर घर ह महकत राहय। विनय ल पटियाए देखिस ताहन दाई - बेटी ह चिंता म पड़गे। विनय अउ ओकर बाबू ह  पियइ - पियइ म अब्बड़ दरूहा बनगे अउ रोज लड़ई- झगड़ा होवय। एक दिन विनय के दाई ल खेत- खार म कमाए रीहिस तेकर पईसा मिलीस उहू ल निरंजन ह झटक लिस अउ इही बात म डउका - डौकी मनमाने झगड़ा होगे। निरंजन ह लउठी ल धरिस अउ अब्बड़ ठठा दिस। ओला अपन बेटी संग म घर ले खेद दिस।

दाई अउ बेटी ह घर- दूवार ला छोड़के अंते गांव म बसगे। दाई ह काम बुता करे अउ बेटी ल रोज स्कूल भेजय। एक दिन ओकर बेटी ह बड़े अफसर बनगे। दाई - बेटी ह अपन दम म घर ल बनइस अउ खुशी- खुशी राहन लागीस। एतिबर विनय अउ ओकर बाबू ह रोज झगड़ा होवय। एक दिन विनय ल दारू नइ मिलीस ताहन  अपन बाबू ल राहपट - राहपट झड़ दिस अउ घर ले खेद दिस। निरंजन ल चेत अइस ताहन बेटी अउ बाई करा चल दिस अउ रो - रोके क्षमा मांगिस। तीनो झन सुख ले राहन  लागीस।

विनय ह दारू पी-पी के अपन घर - दुवार ल बेंच दिस। अउ दारू ले बर पईसा तको सिरागे राहय। अंधियारी रात म विनय ह पईसा चोराए बर गोंटिया के घर म परदा कोती ले कुद दिस। ओतकी बेर रखवारी करइया मन ह विनय ल पकड़ लिस अउ डोरी म बाँध दिस। सुभे होइस ताहन गांव वाला मन सकलागे अउ सबो झन ह विनय ल गारी सुनइस कोनो - कोनो ह ढेला पथरा म फेंकके मारन लागीस। विनय के हवा पानी बंद होगे। दाँत ल निपोर दिस। अउ वो दिन ले दारू ल छोड दिस। ओहा अपन दाई ददा करा गिस अउ सेवा करे म लगगे।


                                                          भास्कर वर्मा 'उमंग'


अवध देश की हर नारी



थाल सजाकर बहन कह रही,आज बँधालो राखी।
इस राखी में छुपी हुई  है, अरमानों की  साखी।।
चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे।
अगर नहीं आए तो  समझो, हम हैं बहुत अभागे।।


क्या सरहद से एक दिवस की,छुट्टी ना मिल पायी?
अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ?
अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत।
एक  बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।।


अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते।
रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।।
और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई।
एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।।


बरस रहा आँखों से पानी,कुछ भी समझ न आये।
किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए?
उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे।
सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।।


अब राखी की कमी नहीं है और न  कम हैं भाई।
अब लौटेगी नहीं यहाँ से, कोई रिक्त कलाई।।
लेकिन मेरे अरमानों को, कौन करेगा पूरा?
राखी के इस महापर्व में, वचन रहे न अधूरा।।


गुमसुम आँखों को पढ़ करके,बोल उठे सब भाई।
पहले वचन सुनाओ बहनों, कुर्बानी ऋतु आई।।
बहनों ने समवेत स्वरों से, कहा सुनो रे वीरा !
"धरती पर कोई भी नारी, न हो दुखी अधीरा।।"


दु:शासन की वक्र नजर से, छलनी ना हो नारी।
रक्षा करना चक्र उठाकर, केशव कृष्ण मुरारी।।
इसी वचन के साथ चलो सब, राखी पर्व मनायें।
मानवता के हेतु गर्व से, नाते - धर्म निभायें।।


नारी का सम्मान जगत में, होना बहुत जरूरी।
दुखी ना रहे कोई नारी, ना हो अब मजबूरी।।
भाई की कुर्बानी पर तब, होगा असली तर्पण।
अवध देश की हर नारी रक्षार्थ वीर हो अर्पण।।


                              अवधेश कुमार 'अवध'