मुद्दा राजनीति का हो या फिर शिक्षा का। सब
मुद्दे एक बराबर क्यों नहीं..? हमारा देश
अपनी संस्कृति से साथ-साथ अपनी भाषा को भी खोता जा रहा है। इससे भी दुखद घटना यह
है कि हमारे यहां के नेता-अभिनेता इन मुद्दों पर मौन धारण किए हुए है। अगर ऐसा ही
रहा तो हमारी संस्कृति के साथ-साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था भी बहुत जल्द चौपट होने
के कगार पर रह जाएगी। जिस तरीके से आजकल की शिक्षा व्यवस्था हो गई है। उसे देख कर
यह लगता है कि आजकल के बच्चे सिर्फ पढ़ाई की एक मशीन के अलावा कुछ नहीं है। आजकल
के बच्चे तो अपनी संस्कृति-सभ्यता को भी नहीं पहचान पाते है। आजकल की इस शिक्षा को
अगर आधुनिक शिक्षा या फिर डिजिटल एजुकेशन कहे तो गलत नहीं होगा। आज की शिक्षा से
बच्चा सिर्फ नौकरी पाने तक की ही शिक्षा प्राप्त करता है। आखिर ऐसा क्यों क्या इस
पर हमें सोचना चाहिए।
संपादक-
दीपक कोहली
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