साहित्य चक्र

17 February 2019

वह जन्म भूमि मेरी


वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।

ऊंचा खंड़ा हिमालय, आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले पर, नित सिंधु झूमती है।

गंगा, यमुना, त्रिवेदी नदियांं लहर रही हैं,
जममग छटा निराली, पग-पग छहर रही है।

वह पुण्यभूमि मेरी, वह स्वर्गभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।

झरने अनेक झरते, जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियां चहक रही हो वो मस्त झाड़ियों में।

अमराइयां घनी हैं, कोयल पुकारती है,
बहती पलय-पवन है, तन-मन संवारती है।

वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।

जन्मे जहांं थे रघुपति, जन्मी जहां थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, बंशी, पुनित गीता।



गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।

वह युद्धभूमि मेरी, वह बुद्धभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।


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