आज हमारे दामन पर फिर
दुखों के चिन्ह दिए गए हैं
नमन हमारा उन वीरों को
जो हमसे छीन लिए गए हैं
पिता की लाठी टूट गई है
मां की गोद पडी़ खाली
बहना से राखी रूठ गई है
बच्चों की लुट गई खुशहाली
पत्नी भी मूर्छित सी है
और भाई है बदहवास
बालसखा भी गम में है
मातम पसरा है आसपास
अब पूछो डरने वालों से
कहां गया वो उनका डर
क्यों निर्दोषों को मारा
क्यों काटा है उनका सर
जो पुरष्कार लौटाते थे
झूठी ख्याति के नाम पर
वे चुप क्यों बैठे हैं अब
आतंक के गंदे काम पर
अब सुन ले सियासत कान खोलकर
इस भारत के दिल की पुकार
तीस के बदले साठ चाहिए
पहले बदला फिर सरकार
विक्रम कुमार
No comments:
Post a Comment