साहित्य चक्र

19 February 2019

मेरी अंतिम यात्रा

मेरी अंतिम यात्रा



मैं गहरी नींद में था।
मेेरा पूरा घर रो रहा था।

मेरा पूरा गांव इकट्ठा था।
हर कोई मुझे तांक रहा था।
मुझए नहलाया-सजाया जा रहा था।

मुझेे नहीं पता..!
मेरेे साथ यह कौन सा,
अजीब-गरीब खेेल खेला जा रहा था।

मैं हैरान था।
मेरे सब अपने मेरे पास थे।
मालूम  नहीं क्यों..?
मेरे अपने एक-दूसरों के ,
कंधों पर रो रहे थे।
जो कभी मेरे दुश्मन हुआ करते थे।
आज वो भी मुझसे मोहब्बत कर रहे थे।

मुझे बार-बार जगाया जा रहा था।
मैं मजबूर था।
जो बार-बार जगानेे से,
नहीं उठ पा रहा था।
मेरी रूह कांप रही थी।
मैंने जब देखा ऐसा मंजर, कि
मुझे आज हमेशा के लिए 
सुलाया जा रहा है।

जिन दिलों में मेरे लिए,
कभी मोहब्बत-प्रेम हुआ करती थी।
आज मैं उन्हीं के हाथों जलाया जा रहा था।

मैं गहरी नींद में था।
मेरा पूरा घर रो रहा था।


                                      ।।कवि- दीपक कोहली।।




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