साहित्य चक्र

16 February 2019

धारा तीन सौ सत्तर और हमारी कुर्बानी


यह जगजाहिर है कि आर्टिकल 370 की आड़ में कश्मीर का हालात उस बेटी जैसा है जिसके पालन पोषण का दायित्व उसके मायके का होता है और उसपर समग्र अधिकार उसके ससुराल का। किसी जमाने में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर समय के थपेड़ों से लड़ते - लड़ते आतंकभूमि का पर्याय बन गया है। इस विकट और चिंताजनक परिस्थिति के पीछे पाकिस्तान से ज्यादा कश्मीर का योगदान है जिसका मायका भारत और ससुराल पाकिस्तान बना बैठा है। 

एक भारतीय कश्मीर का निवासी नहीं हो सकता। एक भारतीय पुरुष कश्मीरी लड़की से विवाह कर ले तो पति - पत्नी दोनों को कश्मीर छोड़ना पड़ता है जबकि एक पाकिस्तानी पुरुष कश्मीरी लड़की से विवाह करके कश्मीरी बन सकता है। आशय यह कि कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला 370 भारत से अधिक पाकिस्तान के पक्ष में है। कश्मीर के बारे में जो सवाल अम्बेदकर जी ने उस समय उठाया था वह आज भी प्रासंगिक है। शेख अब्दुल्ला के मजबून को मानकर कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देना सबसे बड़ी भूल थी जिसे आज कश्मीर के साथ ही पूरा भारत भुगत रहा है। कश्मीर के लिए अलग से विशेष बजट (सर्वाधिक आर्थिक सहयोग) बनाकर जाता है जिसका उपयोग कश्मीर के विकास से अधिक बाहरी दामादों की सेवा में होता है। साधारण जनता गरीब होती जा रही है और वहाँ के पाकिस्तान परस्त देशद्रोही नेताओं की जेबें और नापाक इरादे मजबूत हो रहे हैं। हमारे सिपाही जानलेवा प्रकृति की भयावह गोद में बैठकर मौत से लड़ रहे हैं। कितनों का फौलादी शरीर गलकर बर्फ बन जाता है फिर भी देशभक्ति का जुनून देखिए कि पोजीशन पर अड़े रहते हैं। एक ओर प्राकृतिक प्रकोप जो अनियन्त्रित है तो दूसरी ओर मानव जनित आतंकी प्रकोप। कश्मीर की शान्ति परस्त आवाम प्राय: मार दी जाती है या भगा दी जाती है। इसलिए जो बचे भी हैं वो गुमनाम होकर जीते हैं मौत के साये में। आतंकियों को या आतंकवाद की पोषक वहाँ की जनता को वर्षों से कोई खतरा नहीं है। उनके हर अपराध 'गुमराह' की ओट में क्षम्य ही नहीं बल्कि बहुतों की नजर में पुरस्कार योग्य भी है। जब उनका मन करे हमारे सैनिकों को पत्थर मार सकते हैं, वर्दी फाड़ सकते हैं, बदतमीजी कर सकते हैं या हत्या कर सकते हैं क्योंकि वे विशेष राज्य का सुरक्षा कवच पहने हुए हैं। मानवाधिकार और हमारी सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकील उन्हीं की सेवा के लिए बने हुए हैं। हर साल वे हमारे दर्जनों बेटों की हत्या कर रहे हैं और हम उनकी सुरक्षा कर रहे हैं। 

अब समय आ गया है पुनर्विचार करने का। हमें कश्मीर को विशेष राज्य के कवच से बाहर निकालकर भारतीय गणराज्य में अन्य राज्यों की तरह रखना चाहिए। जिस तरह पासपोर्ट का विधान तोड़ा गया वैसे ही धारा 370 को अविलम्ब खत्म किया जाना चाहिए। पाकिस्तान परस्ती को सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। ऐसा करते ही वहाँ की अधिकाधिक समस्याएँ फौरन समाप्त हो जाएँगी। यदि हम ऐसा करने को तैयार नहीं हैं तो विशेष बजट और सुरक्षा दोनों का बोझ हम क्यों उठाएँ! भारत की आम जनता की खून पसीने की कमाई और आम घरों के लाल की जान हम उस भूमि पर क्यों कुर्बान करें जो पूरी तरह से हमारी है ही नहीं? जब तक सैनिक सब्र खोकर ऐसे सवाल उठाने को मजबूर हों उससे पहले सियासत और संसद को ठोस कदम उठा लेने चाहिए वरना देरी देश के लिए हर मायनों में अहितकर होगी।

                                        डॉ. अवधेश कुमार 'अवध'


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