साहित्य चक्र

19 July 2022

कहानी- ये रही बोरी और ये रहे तुम



अक्सर लोग कहते हैं कि हम समाजसेवा करना तो चाहते हैं पर ऐसा कोई मौका ही नहीं मिलता। अगर मन सच्चा होगा और मन में सेवा की भावना होगी तो हमारे सामने ऐसे अवसर स्वयं आ जाते हैं। हाल ही में विजय के साथ ऐसा ही एक किस्सा हुआ, जिसने एहसास कराया कि सेवा का मौका मिलता नहीं, हमें ढूंढना पड़ता है।







विजय हरियाणा के एक विश्वविद्यालय की परीक्षा शाखा में बतौर प्रोजेक्ट हेड कार्य करता था। एक दिन जब वो अपने दफ्तर में कार्य कर रहा था, तो वहां एक 40-45 वर्ष की महिला हाँफती हुई उसके पास आई और अपने कागज दिखाकर पूछा कि सर, यह मेरा कार्य यहीं आपके पास ही होगा क्या। विजय ने कागजात देखकर कहा, यहां नहीं मैम, आप सामने वाली लैब में जाइए, वहां यह कार्य होगा। सुनते ही महिला उदास होगयी और कहा, सर प्लीज बता दो, कहाँ होगा। बहुत देर होगयी, सब इधर से उधर भेज रहे है, कोई एक बिल्डिंग से दूसरी में। इसी में मेरा सांस फूलने लगा है अब तो। विजय एक दयालु प्रवर्ति का इंसान था। उसने कहा, आप एक बार सामने वाली लैब में पता कर लो। ना हो तो मुझे बताना। महिला लैब में गई और कुछ देर में ही उदासीन चेहरे के साथ वही उत्तर लेकर वापस आ गई। लैब वालों ने वही उत्तर उसे दिया था और अन्य जगह जाने का बोल दिया, जहां से वो आई थी। 


विजय ने पहले महिला को बिठाया, पानी मंगवाकर पिलाया। साथ ही अपने एक मित्र सुखविंदर को फोन कर अपने दफ्तर बुलाया। वह भी उसकी तरह दयालु और नेक दिल इंसान था। महिला को अपने लगभग 10-12 वर्ष अपने पुराने कागजात और रोल नंबर इत्यादि निकलवाने थे। काम इतना सरल भी ना था। दोनों ने सलाह मशवरा कर उस काम को खुद करने की ही ठानी। विजय ने अपने जूनियर को कुछ काम सौंपा व महिला को दफ्तर में बिठा, खुद सुखविंदर के साथ बाहर की ओर निकले। इधर उधर पूछताछ करने पर पता चला कि यह केवल रिकॉर्ड रूम से ही पता चल सकता है। दोनों वहां गए तो वहां के अधिकारियों ने स्टाफ के होने के नाते उन्हें प्रवेश दिया, पूछने पर पुराने कागजातों फाइलों की बोरी की ओर इशारा करते हुए कहा, ये रही बोरी और ये तुम। ढूंढ लो अगर कुछ मिलता है तो। विजय और सुखविंदर ने एक दूसरे की तरफ देखा, महिला बारे सोचा और बोरी की ओर बढ़ गए। कार्य कठिन था, पर दोनों महिला की मदद हेतु दृढ़ संकल्प थे। 


चार घण्टे उन्हीं फाइलों में लगे रहने के बाद उन्हें सफलता मिल गई। उन्हें महिला के कागजात आखिरकार मिल ही गए थे। दोनों के चेहरे पर बहुत खुशी थी। दिल को तस्सली थी कि चार घण्टे लगाए तो हक आ ही गया। दोनों ने महिला को जाकर बताया तो वह हाथ जोड़कर उन्हें धन्यवाद करने लगी और कहा, जहां कोई नहीं होता, वहां भगवान किसी ना किसी को जरूर भेजता है। धन्यवाद किया, भविष्य के लिए आशीर्वाद दिया और चली गई। आज विजय सुखविंदर खुश भी थे और संतुष्ट भी।


                                                                    लेखक- विकास बिश्नोई


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