साहित्य चक्र

15 July 2022

कविताः कभी रुकना ना

कभी रुकना ना

फोटो सोर्सः गूगल


चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना,
रुकना ना, कभी झुकना ना,
तेरेते रह तू आगे से आगे,
डूबना ना, फिसल ना ना,
हंसते रहना, मुस्कुराते रहना,
रोना ना कभी खोना ना!

संभल संभल के कदम को रखना,
थकना ना, ठहरना ना,
निडर होकर आगे बढ़ना,
सहना ना, तू कभी बहना ना,
चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना!

करके दिखा जीवन में तू, सपने किसी से कहना ना,
देते जा तू देते जा, पर कभी किसी से लेना ना,
खुद्दारी हो तुझ में इतनी, मेहनत करे बिना रहना ना,
चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना!

अवसरों पर ध्यान देना,
कभी अवसर को नकारना ना,
सब को हृदय से अपनाते जा,
कभी किसी को धिक्कार ना ना,
समेट कर रखना खुद को,
कभी खुद से बिछड़ना ना,
चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना!

पूरा हो तेरा हर सपना,
बनाए तुझे हर कोई अपना,
किसी से कभी ना तू डरना,
जीना हो या फिर हो मरना,
हर परिस्थिति को अपनाते जाना,
इस माध्वी का, इतना ही कहना,
हंसते, मुस्कुराते, जिंदगी को जीना,
चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना!
चल चला चल राही तू,
मुसाफिर तू कभी रुकना ना!


                                                      लेखिका- डॉ. माध्वी बोरसे


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