साहित्य चक्र

23 July 2022

कुमाऊँ हिमालय के स्वतंत्रता सेनानी 'मर्च राम जी'

जिला अल्मोड़ा के दलित शिल्पकार मर्च राम जी का नाम अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है।





हरिप्रसाद टम्टा जी द्वारा शुरू की गई पत्रिका 'समता' के वर्तमान सम्पादक दया शंकर जी ने पिछले साल एक ऑनलाइन सम्मेलन में कांग्रेस के नेताओं के साथ जुड़े मर्च राम जी के बारे बहुत ही रोचक जानकारी दी। दयाशंकर जी के मुताबिक 1940-41के बाद किसी समय मर्च राम जी बहुतअच्छे और साफसुथरे कपड़े पहने हुए अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे।

दलित होने के कारण उनका अच्छा पहनावा स्थानीय अपरकास्ट थोकदार को चुभ गया और उसने उन्हें पुकारते हुए कहा- "ओ मर्छुआ तू कहाँ जा रहा है ज़रा इधर आना तो "मर्च राम जी ने अनसुना कर दिया और चलते रहे।

थोकदार के साथ ही एक अपर कास्ट सरकारी पटवारी भी था वो मर्च राम जी के पीछे लपका और उन्हें रोककर उनके कपड़े पकड़ते हुए जातिसूचक गाली देते हुए कहा- "मर्छुआ थोकदार साहब बुलाते हैं तो आता क्यों नहीं ?"

अपनी पत्नी के साथ जा रहे, मर्च राम जी को ये रवैया बिलकुल पसंद नहीं आया। स्वाभिमानी मर्च राम जी ने सरेआम एक बहुत झन्नाटेदार तमाचा पटवारी को जड़़ दिया और कहा जाता है कि पटवारी होश खोने की स्थिति में आ गया था। पटवारी की सबके सामने बेइज्जती हुई और दयाशंकर जी बताते हैं कि दलित शिल्पकार के हाथों पिटने से गाँव में ऊंचा ओहदेदार पटवारी मज़ाक का पात्र बन गया।

पटवारी ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजी कि मर्च राम लोगों को ब्रिटिश के ख़िलाफ़ विद्रोह के लिए भड़का रहा है। पटवारी की रिपोर्ट पर मर्च राम जी देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिए गए और बाद में आज़ाद भारत में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला।

मर्च राम जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, वो ब्रिटिश से पहले किसी और की गुलामी के विरुद्ध संघर्षरत थे और उनके द्वारा जातिवादी पटवारी को जड़ा का थप्पड़ भगत सिंह द्वारा असेंबली में फेंके गये बम से किसी रूप में कम नहीं था।

मेरी नज़र में जातिवादी थोकदार और पटवारी के सामने अपने स्वाभिमान की रक्षा करने वाले, अपने मानवीय अधिकारों के लिये प्रतिरोध करने वाले और जातिवादियों को सरेआम झन्नाटेदार थप्पड़ मारने वाले मर्च राम जी सच्चे स्वतंत्रता सेनानी हैं।

जातिवर्चस्व के विरुद्ध किया गया प्रत्येक मानवीय प्रतिकार स्वतंत्रता का संघर्ष है। हमें याद रखना चाहिए कि हर हाशिया जो फैलने को जूझता है वो हमारी दुनिया को और फैलाता है।
इंसानी गरिमा के लिये किया गया हर व्यक्तिगत प्रतिरोध हमें गहराई से इंसानी गरिमा का मतलब बताता है। केवल एक बुलंद निगाह भी हमें बता सकती है कि आसमान कहाँ है।

सच्चे स्वतंत्रता सेनानी मर्च राम जी को शत शत नमन और श्रद्धांजलि।


लेखक- मोहन मुक्त


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