पुरानी कहावत है कि संसार में सदियों से ताकतवर कमजोर को दबाता आया है और यह कहावत सृष्टि के प्रत्येक जीव पर लागू होती है। यह बात हमें अपने आसपास भी अक्सर दृष्टिगत होती है कि जो व्यक्ति स्वयं को अक्षम महसूस करते हैं उन्हें उनसे सक्षम और मजबूत व्यक्ति अक्सर दबाते हैं और उनकी अक्षमता का फायदा उठाते हुए उन पर अपनी सक्षमता का रौब जमाते हैं। मनुष्य हो अथवा कोई अन्य जीव जंतु ,यह सभी पर समान रूप से लागू होता है। सृष्टि की शुरुआत से ही यह चलता आया है कि कमजोर सदैव ताकतवर के सामने दबते ही आए हैं। अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए या यूं कहें अपनी कमजोरी के बोझ तले दबे हुए व्यक्ति अपने से अधिक मजबूत, ताकतवर और सशक्त व्यक्ति की सभी बातें मानने के लिए स्वयं को मजबूर और लाचार महसूस करते हैं, उन्हें चाहे अनचाहे उनके सामने झुकना होता है अन्यथा वह उनको फेस नहीं कर पाते, उनका सामना नहीं कर पाते और नाहक ही हास का पात्र बन जाते हैं।
उपरोक्त स्थिति को अंग्रेजी भाषा में बुलिंग कहा जाता है । बुलिंग का हिंदी अर्थ यदि देखा जाए तो बुलिंग एक ऐसी स्थिति है जिसमें ताकतवर अपने से कमजोर को दबाता है ,वहीं दूसरी ओर कमजोर व्यक्ति अपने से अधिक मजबूत लोगों के सामने झुकते हैं और यदि ऐसा नहीं होता है तो कमजोर व्यक्ति के लिए मुश्किलें खड़ी होने लगती हैं जिससे कभी-कभी वे तनाव की स्थिति में भी आ जाते हैं।
बुलिंग कई प्रकार की हो सकती है जिसका शिकार अधिकतर ना केवल बच्चे अपितु अन्य अनेक बड़े लोग(विशेषत: महिलाएं)भी आसानी से हो जाते हैं ।सोशल मीडिया के इस दौर में बुली होना आम हो गया है। गली मोहल्ले ,ऑफिस या स्कूल में भी इस प्रकार की घटनाएं अक्सर घटित होती रहती हैं।
आज के हमारे इस आलेख में हम बच्चों से संबंधित बूलिंग के बारे में कुछ जानकारियां साझा करेंगे। हम में से अधिकतर लोग बुलीइंग क्या होती है,से भली भांति परिचित हैं। किंतु कभी-कभी ऐसा होता है कि सब कुछ जानने के पश्चात भी हम स्थिति से अवगत नहीं हो पाते और समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं। बच्चों के संदर्भ में यदि बात की जाए तो अक्सर हमारे बच्चे स्कूल और कोचिंग एकेडमी,या ट्यूशन सेंटर्स में इसका शिकार होते हैं और संकोचवश या यूं कहें डर के मारे बच्चे अपनी बात आसानी से किसी से कह भी नहीं पाते, किसी के साथ शेयर भी नहीं कर पाते। ऐसा होने पर समस्याएं बढ़ने लगती हैं और कभी-कभी उनका परिणाम बहुत ही घातक सिद्ध होता है । विद्यालय में अक्सर सीनियर या ताकतवर बच्चे अपने से छोटी कक्षाओं के बच्चों को डराते हैं धमकाते हैं और उन पर हुकूमत जमाते हैं ।कमजोर और जूनियर्स अक्सर बुलिंग का शिकार होते हैं ,उनके बड़े उनको दबाते रहते हैं और वे चाहकर भी उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पाते हैं ।ऐसी स्थिति में वे खुद को और भी अधिक बेबस और कमजोर महसूस करते हैं और अपनी इसी बेबसी के चलते वे शर्मिंदा भी होते हैं जिस की वजह से वे अपनी समस्या किसी के साथ साझा नहीं कर पाते। यहां तक कि कभी-कभी वे माता-पिता से भी अपने मन की बात नहीं कर पाते क्योंकि उनके दिल में एक प्रकार का अनदेखा सा डर बैठ चुका होता है और उस डर के कारण ही वे सदैव,असुरक्षित, डरे डरे और सहमे सहमे से रहते हैं।
सोशल मीडिया के इस युग में बुलिंग की समस्या और भी खराब और भयंकर रूप लेती जा रही है जिस पर लगाम कसी जानी अति आवश्यक है। कभी-कभी बुलिंग इस कदर बच्चों को परेशान कर डालती है कि बच्चे अपना आत्मसम्मान बैठते हैं और कभी-कभी तो वे अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेते हैं जो कि अत्यधिक दर्दनाक है। अपने मन की कमजोरी के चलते वे किसी के समक्ष स्थिति को स्पष्ट नहीं कर पाते और असमंजस का शिकार होने लगते हैं इसी असमंजसता की स्थिति का सामना जब वे नहीं कर पाते तो उनके कदम गलत दिशा में उठने लगते हैं ।माता-पिता के प्रति उनका विश्वास खत्म होने लगता है और जो नहीं होना चाहिए उनके साथ फिर वही होता है।
गली मोहल्ले या पार्क में भी अक्सर इसी प्रकार की स्थितियां देखने को मिल जाती है। बुलिंग का उम्र से कोई लेना देना नहीं होता छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़ी उम्र के लोगों तक यह स्थिति देखने को मिल सकती है। अक्सर बड़े बुजुर्ग भी बुलिंग का शिकार होते हैं और अपनी सहायता के लिए वे किसी के पास भी जाने में संकोच का अनुभव करते हैं जिसकी वजह से स्थिति और अधिक बिगड़ने लगती है और अनियंत्रित हो जाती है। महिलाएं भी बुलिंग से पीछे नहीं हैं, महिलाओं को अक्सर सोशल मीडिया पर बुलिंग का शिकार होते देखा जाता है ।प्रतिदिन अखबारों, समाचार पत्रों और मैगजींस में इस तरह की खबरें आती रहती हैं जिसमें कहीं ना कहीं महिलाओं के साथ बुलिंग की घटनाएं घटित होती दिखाई बताई गईं होती हैं और जिसके फलस्वरूप महिलाएं या तो अवसाद में चली जाती हैं अथवा आत्महत्या का शिकार होने लगती हैं। बुलिंग का शिकार होने वाले लोगों का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है ।पिछले कुछ वर्षों का रिकार्ड उठाकर देखा जाए तो बुलिंग संबंधी समस्याएं पहले से बढ़ी ही हैं।
बुलिंग की समस्या पर यथासंभव नियंत्रण पाने के लिए सबसे अहम और महत्वपूर्ण भूमिका माता-पिता की होती है। माता-पिता को अपने बच्चों पर विश्वास कायम रखना चाहिए और अपने बच्चों को घर से बाहर निकलने से पहले भली प्रकार समझाना चाहिए कि किसी भी प्रकार की अनहोनी की स्थिति में वे सबसे पहले अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करेंगे ,गलत के समक्ष नहीं झुकेंगे और सदैव सही का साथ देते हुए अपने मन की हर बात उनसे साझा करेंगे,कभी हिचकिचाएंगे नहीं और संकोच का अनुभव ना करते हुए स्थिति को जस के तस स्पष्ट करेंगे ।
बच्चों के मन में माता-पिता को यह भाव उत्पन्न करना चाहिए कि उनके माता-पिता का साथ उनके साथ सदैव है ।वे उन्हें किसी भी मुश्किल स्थिति में नहीं रहने देंगे और यदि कभी कोई समस्या आ भी जाएगी तो उसको वे बाहर निकाल लेंगे ।इतना विश्वास जब बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति होने लगेगा तो निसंदेह बुलिंग जैसी समस्याएं भी हमारे बच्चों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी, इसके विपरीत बच्चे खुद को पहले से कहीं अधिक आत्मविश्वासी और सक्षम तथा सशक्त महसूस करने लगेंगे और विभिन्न स्थितियों में भी स्वयं को ताकवर महसूस कर समक्ष खड़ी स्थितियों का सामना डट कर कर पाएंगे।
यह सत्य है कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में हम सभी की जिंदगी में बहुत अधिक उलझ गई हैं किसी के पास किसी के लिए समय ही नहीं है किंतु ऐसी स्थिति में भी हमें अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने की कोशिश करनी चाहिए, उनके मन की बात जानने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें यह एहसास करवाना चाहिए कि आप हर पल, हर क्षण ,हर प्रकार की स्थिति में उनके साथ हैं और कभी उन्हें धोखा नहीं देंगे ।गलती होने की स्थिति में भी आप उन्हें भली प्रकार समझाएंगे और उनका साथ देंगे ना कि उनकी छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें डांट फटकार लगाएंगे।अभिभावकों और माता-पिता का फर्ज बनता है कि वे अपने बच्चों से खुलकर बात करें, उन्हें बुलिंग का अर्थ समझाएं और सदैव सतर्क रहने के लिए कहें। बच्चों को समझाया जाए कि गलत के प्रति वे अपनी आवाज बुलंद करें ,अन्याय को सहन ना करें और मजबूती से no कहने की आदत को खुद में विकसित करें। अपने बच्चों को साइबर सिक्योरिटी संबंधित नियमों और प्रावधानों से भली प्रकार अवगत कराएं ताकि किसी मुश्किल और अवांछित स्थिति और प्रतिकूल समय में यदि वे आप तक ना भी पहुंच पाएं तो इस प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठाकर वे अपनी रक्षा स्वयं कर सकें।
एक बार यदि सिर्फ एक बार आपके बच्चों के मन में आपके प्रति विश्वास उत्पन्न हो गया तो यकीन मानिए वे कभी भी बुलिंग जैसी समस्याओं का शिकार नहीं होंगे और यदि होंगे भी तो वे उस स्थिति का निपटारा स्वयं करने में सशक्तता का अनुभव करेंगे,और अपने मन की हर छोटी बड़ी बात भी आपसे जरूर साझा करेंगे और फिर इस प्रकार की समस्याएं खुद-ब-खुद दूर होकर खत्म होने लगेंगी।
बच्चे हमारे हैं तो निसंदेह हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने बच्चों को सचेत बनाएं ,सावधान बनाएं और जागरूक बनाएं ताकि कोई भी उन्हें कमजोर समझ कर स्थिति का फायदा उठाने की सोच तक ना सके। अपनी इस जिम्मेदारी का पूर्ण ईमानदारी एवं दृढ़ता से निर्वाह करें और अपने बच्चों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज के निर्माण की नींव को मजबूत करने में भी अपना यथासंभव योगदान देने का प्रयास करें। याद रहे , सुरक्षित समाज ही एक स्वस्थ समाज की कल्पना को साकार कर सकता है।
लेखिका- पिंकी सिंघल
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