साहित्य चक्र

23 July 2022

लेख- प्रकृति का प्रतिउत्तर


आजतक प्रकृति ने मानव से कुछ नहीं लिया है बल्कि प्रकृति हमेशा से मानव को देती ही आई है। मानव के पास अपना है ही क्या? जो भी है वह प्रकृति का ही दिया हुआ है । पेड़ पौधे,जल,ज़मीन,वायुमंडल आदि सब प्रकृति की देन है।यहाँ तक कि मनुष्य का शरीर भी पाँच तत्वों से ही बना है !यदि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करेंगे तो निश्चित ही प्रकृति भी अपना असली रूप दिखा देती है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के घुमारवीं उपमंडल मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर पहाड़ पर बसा एक छोटा सा गाँव कठलग । पहाड़ की चोटी पर माता सोहणी देवी का मंदिर जहां दूर दूर से श्रद्धालू पूरा वर्ष चले रहते हैं।ठीक सोहणी देवी के चरणों में बसा है यह गांव। गांव के लोग खेती बाड़ी करते हैं तथा गांव में पत्थर की खानों पर सारा दिन पत्थर तोड़ने का भी काम करते हैं।


फोटो सोर्सः गूगल



तीन वर्ष पहले की बात है।रात्रि का दूसरा प्रहर, सभी लोग गहरी निद्रा में सोए हुए थे । रात को लगभग 2 बजे का समय था तभी अचानक ज़ोर से बादल गड़गड़ाने लगे,बिजली कौंधने लगी तथा ज़ोर की बारिश होने लगी । देखते ही देखते बारिश ने भयंकर रूप ले लिया !गाँव के ही 85 बसंत देख चुके बुजुर्ग दुर्गा राम ने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसी भयानक बारिश नहीं देखी थी ! लोग नहीं जानते थे कि आज प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाने जा रही है । बिस्तर में ही उसने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि हे प्रभु इस आफत से बचा लेना।वह मन ही मन अनहोनी की आशंका से डर रहा था।

अचानक एक ज़ोर की आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे धरती हिल रही हो । पहाड़ बोल रहे हों । दुर्गा दास की पोती कान्ता जो दसवीं कक्षा में पढ़ती थी ,अभी अपना स्कूल का काम समाप्त करके सोने ही चली थी कि इस आवाज से अंदर तक कांप उठी । जब उसने अपनी खिड़की खोली तो उसे ऐसा लगा जैसे कि उसका घर व पशुशाला अपनी जगह से हिल है । एक दम से बिजली कड़की और सारा गाँव अंधेरे में डूब गया ! बारिश में शॉर्ट सर्किट की बजह से बिजली की तारें जल गई ! उसने तुरंत ज़ोर से अपने पिता मनोज व दादा को आवाज लगाई जो उसी गाँव में पत्थर की खानों पर पत्थर तोड़ने का काम करते थे ! पापा,पापा उठो देखो बाहर क्या हो रहा है ! लेकिन मनोज गहरी निद्रा में था! उसने जाकर मनोज की हिलाया तो मनोज हड्बड़ा कर उठा ! क्या हुआ ? क्यूँ उठाया मुझे ! कांता ने फिर दोहराया पापा बाहर देखो ,हमारा मकान गिर रहा है ! तब तक छत पर रखा मिट्टी का घड़ा भी नीचे आ गिरा। मनोज को तुरंत समझ में आ गया कि कुछ गड़बड़ है।

लोग सारा दिन पत्थर तोड़ने से थक हार कर खाना खाकर जल्दी सो जाते थे ! उस दिन भी वह रोज़ की तरह जल्दी सो गए थे ! कान्ता ने उसे बताया कि हमारा मकान आँगन अपनी जगह से खिसक रहे है ! उसने अपनी टॉर्च निकाली तथा खिड़की में से जब बाहर रोशनी डाली तो देखा कि वास्तव में ही घर के आँगन के सामने पशुशाला के पास से ज़मीन धंस गई थी !पशुशाला कि छत भी एक तरफ को झुक गई थी! अपने परिवार के साथ वह बारिश में ही तुरंत बाहर निकल गया तथा सबको ज़ोर ज़ोर से आवाजें लगाने लगा ! सारे गाँव में चीख पुकार मच गई थी ! लेकिन उनकी चीख पुकार बारिश के शोर में दब कर रह गई ! उसने घर घर जाकर सबको जगाया ! चारों ओर अंधेरा था लेकिन सब लोग उसके चिल्लाने की आवाज सुन कर एक दम जाग गए तथा घरों से बाहर आ गए । उसे अब लोगों की जान की चिंता थी। उसके साथ दूसरे लोगों ने भी शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे लोग घरों के बाहर आ गए।पूरे का पूरा गावँ अपनी जगह से खिसक रहा था । एक दूसरे की सहायता से सब लोग बारिश में ही गावँ से कुछ दूर सुरक्षित स्थान पर चले गए। ऐसा लग रहा था मानों भगवान सारा पानी आज यहीं उंडेल देगा।

सारे गाँव वालों की चिल्लाने की आवाजें सुन कर आस पड़ोस के गांवों के लोग भी तुरंत सहायता के लिए पहुँच गए ! बचाव कार्य टोर्च की रोशनी में हो रहा था । सुबह तक सूचना मिलते ही साथ लगते शहर के लोग भी मौके पर पहुंच गए थे । गावँ को जाने वाली एकमात्र सड़क कई जगह से टूट गई थी जिससे सहायता पहुँचाने वाली गाडियाँ भी नहीं पहुँच सकी थी । गावँ तक पहुंचने के सभी रास्ते भी टूट चुके थे । लगभग 15 मकान पहाड़ी के दरकने से मलबे में दब गए थे । सबके पशु जिनमें भैंसें,गायें,बकरियां,भेड़ें शामिल थी मलबे में दब चुकी थीं । पूरे गाँव में रोने और चिल्लाने के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था! पूरे गाँव के लोग सुरक्षित थे लेकिन उनके पास सिवाए पहने हुए कपड़ों के कुछ नहीं बचा था । रात को हो रही लगातार बारिश के कारण बचाव कार्य तेजी से नहीं हो पा रहा था ।

दूसरे दिन सुबह जब बारिश कम हुई तो इलाके के लोग प्रशासन के साथ बचाव कार्यों में जुट गए।मशीन से मलवा हटाने के दौरान कई मरे हुए पशुओं को बाहर निकाला गया । लोग काफी संख्या में इकट्ठे हो गए थे ! कुछ सामाजिक संस्थाएं लोगों की सहायता के लिए आगे आ गई थी ! उन्होंने उस गांव के सभी लोगों के लिए खाने,पीने कपड़ों व जरूरी चीजों की व्यवस्था की । गांव के सारे मकान इस आपदा में क्षतिग्रस्त हो गए थे ।गावँ से एक किलोमीटर ऊंचाई पर माता सोहनी देवी का मंदिर था। गाँव के लोग माता पर बहुत विश्वास करते थे ! जब गाँव वालों ने देखा कि सिवाय मकानों व मवेशियों के सभी की जान बच गई है तथा सभी बच गए है ,उनका विश्वास माता पर और भी पक्का हो गया । सबका मानना था कि माता के रूप में ही उस लड़की ने सब को जगा कर सब की जान बचाई है ।


उस गांव में लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्र में पत्थर की खानें थी जिनमें से लोग पत्थर निकालते थे ।लोग अप्राकृतिक तरीके से सुरंगों व विस्फोटकों का इस्तेमाल पत्थर निकालने के लिए किया करते थे जिससे सारी जमीन खोखली हो गई थी तथा उसमें पानी का रिसाव होता रहता था । इन खानों के कारण ही बहुत सारे पेड़ों की बली दे दी गई थी । यह रिसता हुआ पानी ही इस जलजले का कारण बना । यह पानी पत्थरों की खुदाई से बने गड्ढों में भर कर धीरे धीरे रिस्ता गया जिसके कारण लगभग 3 किलोमीटर के क्षेत्र का पूरा पहाड़ खिसक गया जिसकी चपेट में पूरा गांव आ गया। प्रकृति से खिलवाड़ का ही यह नतीजा रहा कि पूरे गांव को घर से बेघर होना पड़ा । हमें प्रकृति का पूरा सम्मान करना चाहिए ,यदि मनुष्य प्रकृति का दोहन अपने फायदे के लिए करेगा तो प्रकृति भी उसका प्रतिउत्तर देगी और उसे क्षमा नहीं करेगी। प्रकृति के साथ मानव द्वारा की जा रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है जो आज बड़ी बड़ी आपदाएं आ रही हैं ,लेकिन मनुष्य अपने लालच और चंद पैसों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है । इस आपदा में सब गाँव बासी तो बच् गए लेकिन उनके कितने ही मवेशी इस ज़लज़ले की भेंट चढ़ गए ! लाखों रुपए का उनका नुकसान हो गया ! आज भी गाँव के लोग जब उस काली भयानक रात को याद करते हैं तो उनके रौंगटे खड़े हो जाते हैं ! लोग जब भी आसमान में काले बादल देखते हैं तो उनके मन के एक कोने में डर सा पैदा हो जाता है।



लेखक- रवीन्द्र कुमार शर्मा



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