साहित्य चक्र

19 July 2022

कविता शीर्षकः समय




मैंने दिया था तुम्हें अपना अनमोल समय ,
जो कीमती था , कीमती नहीं बेशकीमती ,
जो फिर कभी लौटकर नहीं आएगा,
वो समय जो मैंने अपनी आंखों से बचाकर ,
तुम्हें सौंप दिया था ,
नहीं तो उस समय में , मैं भी देख सकती थी
कुछ रंगीन सपने ,
मगर वह गुजर गया , अब फिर कभी नहीं आयेगा ,
मैंने दिए थे तुम्हें वो अनमोल लम्हें ,
अपनी जिंदगी से चुराकर ,
जिनमें मैं अपनी मुस्कान ढूंढ सकती थी ,
मैने दिए थे तुम्हें वो नायब पल ,
जिन पलों को मैं अपने लिए जी सकती थी ,
लेकिन
वो समय तो गुजर गया , मुझसे बहुत दूर
क्या तुम लौटा सकते हो अब ,
वो मेरे पहर , मेरे क्षण , मेरे पल , मेरे लम्हें ?
तुम्हारे लिए वो केवल समय था ,
लेकिन मेरे लिए पूर्णविराम !
मेरी आकांक्षाओं का , मेरी सोच का ,
मेरी परिधि का ,
किसी की बिना परवाह किए ,
वह समय जो सिर्फ एक बार मिलता है ,
वह गुजर गया तुम्हारे लिए ,
वह समय जो सारी उम्र मैं खुद से बचाती रही ,
मतलब निकल जाने पर
किसी ने नहीं सोचा मेरे लिए ,
जिंदगी से मलाल यही है , दिल में एक सवाल यही है ,
मैंने जिन्हें समय दिया, उन्होंने मुझे क्या दिया ?


लेखिका- मंजू सागर


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