साहित्य चक्र

20 April 2022

कविताः वैश्विक तापवृद्धि




पहुँचाकर क्षति प्राकृतिक संपदा को 
 हे मानव तुम इतना क्यों इतराते हो
यह पर्यावरण तुम्हारे लिए है इसमें
तुम अपने ही हाथो आग लगा कर
वैश्विक ताप बढ़ाते हो।।

जब जंगल होगा तब मंगल होगा
यही समझना होगा अब सबको!
पर्यावरण को दूषित करने बालों 
काट काट कर तुम वृक्षों को सारे
क्यों वैश्विक ताप बढ़ाते हो।।

हरी-भरी जब धरती होगी अपनी
ताप रहेगा संतुलन में पृथ्वी का 
पर्यावरण की दशा सुधर जाएगी 
शुद्ध प्राणवायु फिर लौट आएगी
वैश्विक ताप मैं कमी आएगी ।।

करके नियंत्रित वैश्विक ताप वृद्धि
चारों दिशाओं में फैलेगी समृद्धि 
विपदा सारी टल जाएगी जब 
पर्यावरण मैं होने लगेगी शुद्धि 
वैश्विक ताप तब थम जाएगा।।


                                                     लेखिका- प्रतिभा दुबे 


No comments:

Post a Comment