वो खून से लिपटा हुआ धरती माँ का दुप्पटा देखा
और लहराता मेरा तिरंगा देखा।
कही किसी वीर सैनिक के प्रतीक को देखा ,
तो कही उस सैनिक की माँ के प्यार को देखा।
कही उसे धरती माँ के दर्द को अपनी झोली में समेटते देखा ,
तो कही किसी माँ को अपने लाडले की खून से भरी वीरता को देखा।
हा वो खून से लिपटा हुआ धरती माँ का दुप्पटा देखा
और वो लहराता मेरा तिरंगा देखा।
शान से लहराते हुए धरती माँ के उस तिरंगे को देखा ,
और उसके बीच में बने उस अशोक चक्र को देखा।
लहराते उस तिरंगे को अपनी आँखों मे समाते देखा ,
तो कभी किसी बेदर्द माँ को अपने सैनिक बेटे के सही सलामत
लौट आने की उम्मीद में अपनी अश्रु धाराओ को बहते देखा।
हा वो खून से लिपटा हुआ धरती माँ का दुप्पटा देखा
और लहराता मेरा तिरंगा देखा।
कही ना कहीं किसी माँ की कोख को उजड़ते देखा ,
फिर भी उसे अपने बेटे की वीरता पर गर्व करते देखा।
कही किसी पत्नी का सुहाग उजड़ते देखा ,
फिर भी शान से उसे धरती माँ की जय बोलते देखा।
हा खून से लिपटा हुआ धरती माँ का वो दुप्पटा देखा
और शान से लहराता वो तिरंगा देखा ।
लेखिका- किरण
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