वीर देश की शान है, रखे देश का मान।
मातृभूमि की आन में,करें निछावर जान।।
लहू बहा कर देश में, बढ़ा लिया जो मान।
नमन करें उस वीर को,करें सदा बलिदान।।
त्याग और बलिदान में , करें नहीं ये देर।
डरे नहीं है वीर ये, करें वहीं पर ढेर।।
वीर देश की जान है, सभी करें गुणगान।
मिले जगत में वीर को,सदा वीर सम्मान।।
बढ़े देश का मान है, नमन करो सब आज।
लाल लहू से सींचते, रखे देश की लाज।।
लाल लहू को देख के, शत्रु गए अब भाग।
मातृभूमि की आन में, दिए प्राण को त्याग।।
तीन रंग की शान में,खड़े वीर है आज।
सफल हुए हैं देश में ,सभी वीर सरताज।।
वीर धरा के लाल ये, मातृभूमि के अंग।
शत्रु मिले है धूल में, करें रोज है जंग।।
शत्रु डरे है वीर से, रखे देश की लाज।
मातृभूमि की लाज में, करें वतन के काज।।
शीश चरण में डाल के, रखे देश का मान।
वीर धरा के लाल है, रखे नयी पहचान।।
धीर वीर से देश से, बढ़े देश का मान।
मात धरा है बोलती, यही सदा है जान।।
लोग कहे सब बात ये,उच्च सदा ये लाल।
शत्रु घटे हर बार हैं, डरे इन्हीं से काल।।
बहा लहू है देश में, रखा सदा जो ध्यान।
नमन करें जो वीर को, बढ़े उसी का मान।।
युद्ध छिड़ा है देश में, वीर करें बलिदान।
शत्रु मिटे हैं आज ये, रखे देश की आन।।
कहे देश के वीर ये,यही जगत की रीत।
सर्व धर्म का देश ये,देश प्रेम ही मीत।।
लोग कहे सब बात ये,उच्च सदा ये लाल।
शत्रु घटे हर बार हैं, डरे इन्हीं से काल।।
वीर देश के जानिए, यही देश की जान।
बने देश की छाँव ये, करें सभी यशगान।।
अमर रहे सब वीर ये, लोग कहे अब गाँव।
देव मूर्ति हैं रूप ये,यही धरा की छाँव।।
करें दुआ हैं लोग सब, खिले धरा में फूल।
वीर देश की नींव हैं, शत्रु चटा दे धूल।।
वीर रखे हैं भाव ये , देश प्रेम आधार।
प्रेम भाव सब कहीं हो,यही जगत का सार।।
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल"
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