साहित्य चक्र

19 April 2022

गिरगिट तो यूँ ही बदनाम है



यूँ ही बदनाम किया था गिरगिट का
आदमी कर रहा गिरगिट का काम है
दिन में कई रंग बदलते हैं आजकल लोग
गिरगिट का नाम तो यूँ ही बदनाम है

समय के साथ रंग बदलते रहते है
कुछ लोग तो रंग बदलने में अभिनेता हैं
रंग बदलना सबके बस की बात नहीं
सबसे ज़्यादा रंग बदलते नेता हैं
अफवाहें भी बहुत फैलाते हैं
जरूरत पड़ती है जब कभी
तब तो बहुत गिड़गिड़ाते हैं
किसी से उधार वापिस मांगे
तो अपना रंग दिखाते हैं

झूठ का लेते हैं बहुत सहारा
पकड़े जाने पर गलती हो गई कहते
बार बार वही गलती दोहराते है

आजकल के गिरगिट न केवल रंग बदलते हैं
उसी को काटते हैं जिसका खाते हैं
पीठ पीछे करते रहते है छुप कर वार
बाहर से बहुत अपनापन दिखाते हैं
चुनाव जब आते हैं गिरगिट बहुत नज़र आते है
हड्डी चूसने की आदत पड़ी लार बहुत टपकाते हैं
हरा लाल पीला नीला भगवां जो भी मिले
उसी रंग में रंग जाते हैं


लेखक- रवींद्र कुमार शर्मा


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