साहित्य चक्र

03 April 2022

कविताः रंगमंच है ज़िन्दगी



ज़िन्दगी एक रंगमंच है सबको 
अपना अपना किरदार निभाना है
पर्दा गिरते ही सब किरदारों को
वास्तविक जीवन में जाना है

कोई बाप का किरदार निभाता है
कोई भाई बन कर आता है
कोई माता बहिन पत्नी बन कर आती है
कोई बेटे का रोल अदा कर जाता है

अच्छा अभिनय जो करता है 
वह सदियों तक किया जाता है याद
जिसके अभिनय में दम नहीं
पिट जाता है वह हो जाता बर्बाद

जीवन का रंगमंच है कुछ ऐसा
बिल्कुल नहीं है फिल्मों जैसा
यहां तो जो करता है जैसा
उसको फल भी मिलता है वैसा

कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल होगा
इसलिए कुछ ऐसा किरदार निभाएँ
डोर जब टूट जाये बिदा हों इस जहां से
याद करें लोग हमें भूल न पाएं 


                              - रवींद्र कुमार शर्मा


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