नया शैक्षिक सत्र शुरू होने पर सभी अभिभावक नए संकल्प लेने लगते हैं। नए सत्र में अभिभावकों को महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए सभी शैक्षणिक स्कूल अपने दिशा निर्देश नए सिरे से बनाते हैं। जहाँ पर वो अभिभावकों को इस बात के लिए निर्देशित करते हैं कि बच्चे के पढ़ाई और व्यक्तित्व को निखारने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
निम्न बातें बहुत महत्वपूर्ण है-
1. बच्चे का सोने-उठने का नियम होना चाहिए बच्चों के समय पर ना सोने के कारण सुबह उन्हें उठने में परेशानी होती है। वे स्कूल जाने में लेट हो जाते हैं। नींद पूरी न होने के कारण उनके स्वभाव में चिडचिड़ापन आ जाता है इसका असर उनके याद करने की क्षमता पर भी पड़ता है। अगर बच्चे को सुबह 8 बजे स्कूल पहुँचना है तो उसे 7 बजे तैयार हो जाना चाहिए और अगर 7 बजे तैयार होना है तो 6 बजे तो उठना ही होगा। 6 बजे उठने के लिए बच्चे को कम से कम 9 घंटे नींद भी चाहिए तो बच्चे को रात्रि 9 बजे तक सो जाना चाहिए। 9 बजे सोने के लिए उन्हेें 7.30 बजे तक रात्रि का भोजन कर लेना चाहिए। अगर आप रात्रि भोजन 9-9.30 के बीच करते हैं तो बच्चा 11 बजे तक सोएगा फिर उसे सुबह 6 बजे उठने में चिड़चिड़ाहट होगी और इस सबसे बचने के लिए यह जरूरी है कि उसके सोने व उठने का समय तय हो।
2. सोने से एक घंटे पहले स्क्रीन समय नहीं होना चाहिए। रात्रि 8 बजे तक आप और परिवार को मोबाइल, टी.वी, आईपैड से पूरी तरह दूर हो जाना चाहिए। आज हमें बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने या कंट्रोल करने की जरूरत है। बच्चों का सोने से कम से कम एक घंटा पहले स्क्रीन टाइम खत्म हो जाना चाहिए। देखा जाता है कि घर में बड़े भी टीवी या मोबाईल को देखते हुए सोते हैं फिर नींद पूरी नहीं होती व सुबह स्वभाव में चिड़चिड़ापन होता है। अगर आप सोते समय कोई पुस्तक पढ़ते हैं तो नींद भी अच्छी आती है सुबह स्फूर्ति भी बनी रहती है। स्क्रीन समय को कम करने के लिए कुछ नियम बनाए जा सकते हैं - घर में ऐसे कुछ कोने (जोन) बना दिए जाएँ जहाँ टीवी या मोबाइल का चलाना निषेध हो। जैसे बैडरूम - यहाँ आप मोबाइल को बैन कर सकते हैं अथवा जैसे डिनर के समय । लेकिन यहाँ पर अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके लिए आपको भी मोबाइल बंद करना होगा।
3. खाने की आदतें- नए सत्र में हम हर बार नई उमंग और नए उत्साह के साथ शुरू करते हैं, खाने की आदतों के लिए भी कुछ नियम बनाएं। मीठा और नमक यह दोनों बच्चे के मानसिक विकास के लिए हानिकारक हैं। बच्चों के कम से कम किसी एक भोजन में फल अनिवार्य करें। साथ ही आजकल बच्चे पानी कम पीने लगे हैं उसके लिए भी एक नियम बनाएं कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी पिएं।
बच्चे स्कूल से आते हैं या शाम को खेल कर आते हैं तब उन्हें भूख लग रही होती है । उनके लिए आप कुछ न कुछ खाने के लिए पौष्टिक आहार हेल्दी सैंडविच या शेक, जूस आदि घर में ही तैयार करें उस समय अगर उन्हें तैयार मिलेगा तो वह खा लेगें अन्यथा वह कुछ अनाप-शनाप चीजें खाएंगे।
4. अगर आपका बच्चा 12 साल से छोटा है तो सोने से पहले, उसके साथ कुछ न कुछ पुस्तक पढ़िए, पर अगर बच्चा बहुत छोटा है 4-5 साल का तो उसके साथ भी आप सोने से पहले कुछ न कुछ पुस्तकें पढ़ें-सुनाएँ। जितना छोटा बच्चा हो उतनी आपकी पुस्तक पढ़ने की गति धीमी होनी चाहिए ताकि बच्चे का मस्तिष्क उसे समझ सके। रीडिंग करने से उसे शुरू से ही शब्दावली का ज्ञान अच्छा हो जाएगा। धीरे-धीरे यह उसकी आदत हो जाती है कि सोने से पहले वह आपके पास आयेगा इससे उसकी पुस्तक पढ़ने की आदत का विकास होता है आपके साथ उसका भावनात्मक संबंध और मजबूत बनता है और नियम से सोने की आदत भी सुधरती है।
5. दैनिक जीवन में पेरेन्टिंग- पेरेन्टिंग कोई एक दिन की चर्चा का विषय नहीं है कि केवल परीक्षा से पहले ही पेरेन्टिंग की जाएगी। अगर आप अपने बच्चे का अच्छा विकास चाहते हैं उसके परीक्षा परिणामों को तनाव में नहीं देखना चाहते तो आप रोज ही पेरन्टिंग करने की आदत डालें अर्थात् उसकी डायरी देखे यही नहीं कि बस बच्चे से पूछ लिया कि आपने क्या-क्या पढ़ा, क्या किया तो वह कह देगा सब ठीक चल रहा हे। प्रतिदिन पेरन्टिंग का अर्थ यह है कि आप विस्तार पूर्वक उसके साथ बैठकर यह जाने और देखें कि वह क्या कर रहा है। उसकी जिज्ञासा का उत्तर दें। अगर आप रोज 1 घंटा बच्चे के साथ बिताते हैं तो यह तय है कि आप कभी भी रिजल्ट के लिए हैरान नहीं होंगे। आपको पता होगा कि आपका बच्चा कक्षा में कैसा प्रदर्शन करता है एवं आप लगभग जानते होंगे कि उसके कितने अंक आएंगे । जो अभिभावक रोज अपने बच्चे के लिए समय निकालते हैं उनके बच्चों का प्रदर्शन बहुत बेहतर होता है।
6. आज का समय बदल गया है आपके समय से अब तक पढ़ाई के ढंग में बहुत बदलाव आ गया है नई-नई प्रतियोगिताएं होती रहती हैं, तथा नए-नए अवसर भी बहुत आ रहे हैं। । अध्यापक अपने तरीके से यह सब नई जानकारियां आपको देते हैं मगर आपका जागरूक होना भी आवश्यक है। आप बच्चे के स्कूल अथवा कोचिंग से हर नई बात पता करते रहें। आज सामाजिक मीडिया के बहुत से चैनल हैं उनको देखते रहें तथा उनकी वेबसाइट को भी देखते रहें जिससे नई नई जानकारियां आपको मिलती रहें। अपने बच्चे के दोस्त व उनके माता-पिता से भी संबंध रखें। कोई भी नई जानकारी या नई प्रतियोगिता आए तो बच्चे को उत्साहित करें कि वह प्रतियोगिता में हिस्सा ले। उसका रजिस्ट्रेशन फार्म भरें तथा प्रतियोगिता की तैयारी करवाएं।
7. बच्चे स्वयं इतने समझदार नहीं होते कि वह स्कूल में होने वाली हर घोषणा को सुनें अगर आप रुचि लेते हैं तो बच्चों से इस सम्बन्ध में पूछें और टेस्ट आदि की जानकारी रखें उसको तैयारी करवाएँ यदि टेस्ट देखकर उसे अच्छा लगता है उसे प्रोत्साहित करें। इससे उसका अपने पर विश्वास बढ़ेगा। आप सदा नई-नई जानकारी लेने में रुचि रखें हमेशा यह जिज्ञासा रखें कि क्या नया हो रहा है? इसका परिणाम बहुत अच्छा रहता है। स्कूल की पी टी. एम. में अवश्य जाएं जो अध्यापक कहते हैं उसे ध्यान से सुनें। बहुत सारे स्कूल में केवल दिखावे में मीठी बातें की जाती हैं पेरेंट्स से बोला जाता है कि आपका बच्चा कक्षा मैं अच्छी तरह जवाब देता है मगर पेपर में क्या कर आता है पता नहीं। अगर बच्चे को याद है तो वह अवश्य सही जवाब देगा। बहुत कम स्कूलों में, बहुत कम अध्यापक ऐसे होते हैं जो यह ध्यान देते हैं कि वह अभिभावक को सही बात बताएं । अगर आपके बच्चे की सही प्रदर्शन नहीं हो रहा तो आप सही से अध्यापक से कारण जानें। अगर सही जानकारी मिलती है तो उसकी सराहना करें। ना कि उसके प्रति उग्र प्रदर्शन करें। अन्यथा अध्यापक आगे से आपके बच्चे के बारे में ईमानदारी से नहीं बता पाएंगे। उनसे विचार विमर्श कर अपने आधार पर पढ़ाई के तरीके और नियम बदलें या सुधारें।
हमेशा बच्चे के स्कूल प्रबंधन व अध्यापकों का आदर करें अगर आप ऐसा करते हेैं तो वे भी आपको आदर देंगे और आपके बच्चे को भी। तथा आपकी बात को भी सुना जाएगा। यह भी ध्यान रखें कि बच्चे के कितने भी अंक आएं वह अच्छा करे या न करे मगर आप दूसरे के बच्चे से कभी तुलना न कर। कई बार हम तनाव में अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से करने लगते हैं या उसी के भाई-बहिन से तुलना करने लगतेे हैं इससे बच्चे के मन में एक झल्लाहट और क्रोध पैदा हो जाता है जो उसके लिए हानिकारक होता है। इसके बजाए आप उसे अपनी कमियों को दूर करने में उसकी मदद करें। उसके पढ़ने के तरीके में बदलाव लाकर उसमें सुधार करने की कोशिश करें ताकि वह बेहतर प्रदर्शन कर सके।
8. हमेशा उसके अच्छे काम की सराहना करें, गलत के लिए उसे सजा भी दें।उसे हमेशा बताएं कि कोई भी सफलता शार्ट कट से नहीं मिलती बहुत मेहनत करनी पड़ती है यह बताना इसलिए आवश्यक है कि क्योंकि आजकल बच्चे सपनों की दुनिया में ज्यादा रहते हैं जैसे पोकीमोन, डोरीमोन, पब जी जैसे गेम, सीरियल आदि देखते हैं जिसमें डोरीमोन एक आलसी सा बच्चा होता है वह काम नहीं करना चाहता और एक कम्प्यूटर उसकी मदद करता है। बच्चे को लगता है कि उनको भी एक ऐसा कम्प्यूटर या हेल्पर मिल जाएगा जो उनका गृहकार्य कर देगा। वह धीरे-धीरे कठिन कार्य करने से या यूँ कहें कि मनानुसार कार्य ना मिलने पर कार्य करने से घबराने लगते हैं। इसलिए उन्हें मेहनत करने का रास्ता बताएं उन्हें ऐसी सफलता की कहानियां सुनाए जिससे उनमें भी जोश और उत्साह रहे।
लेखिका- नुपुर बासु
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