साहित्य चक्र

19 April 2022

आखिर लाउडस्पीकर क्यों ?


इन दिनों भारत में लाउडस्पीकर खूब चर्चा का विषय बना हुआ है। यह लाउडस्पीकर वही है जो शादी ब्याह में बसता है इसके अलावा मेट्रो स्टेशन, रेलवे प्लेटफार्म, बस स्टैंड, चुनावी रैली इत्यादि जगहों पर बजता मिलता है। लाउडस्पीकर को लेकर इतना हंगामा क्यों हो रहा है ? कई सालों से भारत में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग लाउड स्पीकर से अज़ान यानी नमाज पढ़ने के लिए सूचना या बुलावा देते आ रहे हैं। जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुत कम है या जहां मस्जिद नहीं है, वहां अज़ान सुनने को नहीं मिलती है। अज़ान नमाज पढ़ने के लिए तैयार होने का एक संकेत मात्र है। जैसे ईसाई धर्म में बहुत बड़ा घंटा बजाया जाता है वैसे ही इस्लाम धर्म में नमाज का बुलावा देने के लिए अज़ान दी जाती है।




अज़ान का समय नमाज के अनुसार तय होता है। दिन में करीब 5 बार इस्लाम धर्म के अनुसार अज़ान दी जाती है। वैसे कुरान में अज़ान की बात लिखी तो नहीं गई है, मगर इस्लामी धर्म गुरुओं ने इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए यह सुविधा बनाई है। अज़ान छोटी सी अवधि की होती है। हां कभी-कभी अज़ान की आवाज सुनकर इस्लाम को ना मानने वाले लोगों में इसके प्रति गुस्सा दिखाई देता है। यही गुस्सा आज अज़ान के समय हिंदू धर्म के कुछ कट्टरपंथियों द्वारा हनुमान चालीसा बजाने पर उतर आया है।


अज़ान देना जरूरी है क्या ? क्या अपनी सुविधा के लिए अन्य लोगों को डिस्टर्ब करना सही है ? क्या इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग अज़ान की जगह कुछ दूसरी चीज का इस्तेमाल नहीं कर सकते ? आजकल आधुनिक दुनिया हो गई है। क्या इस्लाम धर्म के लोग मोबाइल या फिर किसी अन्य टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर अज़ान को लाउडस्पीकर में ना बजाकर अन्य दूसरे रूप में बजाए जाए, जिससे दूसरों का डिस्टर्ब ना हो। हां हो सकता है जब अज़ान की शुरुआत की गई हो उस समय इसकी जरूरत महसूस की गई हो, मगर आज कई ऐसे संसाधन है जो अज़ान को सिर्फ इस्लाम को मानने वाले लोगों तक ही सीमित रखा जा सकता है। हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता और दंगों को कम करने के लिए ऐसे फैसले लिए जाने चाहिए।


भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहां सभी लोगों को अपने धर्म संस्कृति मानने की पूर्ण आजादी है। इसलिए सभी धर्म के लोगों को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। अगर हिंदू धर्म के लोग शिवरात्रि, कावड़ यात्रा, नवरात्रि, समय-समय पर भगवत कथा, रामलीला आयोजित कर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर बजा सकते हैं तो फिर इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए दिन में 5 बार थोड़ी सी समय अज़ान का लाउडस्पीकर पर बजने में क्या समस्या है ?


भारत में हिंदू, मुस्लिम के अलावा अन्य धर्म और संप्रदायिक को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत में बहुत बड़ी संख्या में नास्तिक लोग भी है। क्या हिंदू, मुस्लिम के चक्कर में अन्य लोगों की भावनाओं का ख्याल नहीं किया जाना चाहिए ? जिस तरह मुसलमानों की अज़ान से हिंदुओं को समस्या होती है ठीक उसी तरह हिंदू के भी कई बड़े-बड़े कार्यक्रमों को लाउडस्पीकर पर बजाकर अन्य लोगों को भी समस्या होती है। व्यक्तिगत तौर पर मैं अपना उदाहरण देना चाहता हूं मैं हाई स्कूल के पेपर दे रहा था। उस समय मेरे पास ही के गांव में भागवत कथा का आयोजन हो रहा था। जिसके कारण पूरे गांव में लाउडस्पीकर पर भजन, भगवत कथा दिन-रात चलती रहती थी। हम उस भगवत कथा के आयोजन के कारण सही ढंग से अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पा रहे थे। यह घटना सिर्फ मेरे साथ ही नहीं बल्कि कई लोगों के साथ हुई होगी।

आजकल शहरों में जितना ध्वनि प्रदूषण है। वह इंसान के लिए दिन-ब-दिन खतरनाक होता जा रहा है और ऊपर से अब इन दिनों लाउडस्पीकर बजाने की होड़ सी मची हुई है। जो इस खतरे को और गहरा बनता जा रहा है। हम सभी को समस्त मानव जाति के बारे में सोचना चाहिए और मिलजुल कर एक निर्णायक सही फैसला लेना चाहिए। आज हम सभी एक दौड़ भाग भरी जिंदगी का हिस्सा है।

- दीपक कोहली


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