साहित्य चक्र

19 April 2022

कविताः माता-पिता




जब 1 साल के थे हम बच्चे,
नहला के पहनाते थे कपड़े वह अच्छे!

उस वक्त रो-रो कर उन्हें परेशान किया,
फिर कपड़े गंदे करके, उन्हें हैरान किया !

हुए 2 साल के, चलना उन्होंने सिखाया,
चलना आते ही हमें, उनके हाथ ना आकर, उन्हें बहुत भगाया!

4 साल के होने पर पेंसिल से उन्होंने लिखवाया,
हमने सारी दीवारों पर उन्हें पेंसिल से बनाए चित्रों को दिखाया!

5,6 से साल के होने पर विद्यालय छोड़ने जाते वह,
हम रो-रोकर मना करते, नहीं जाएंगे, हमको फिर समझाते वह!

7 साल के होने पर, लाए वह हमारे लिए बैट बॉल,
हमने थोड़ी पड़ोसी की खिड़कियां और बनाए निशान गोल!

8 साल के होने पर भी कोई कसर न छोड़ी हमने,
आइसक्रीम खरीदी उन्होंने, और कपड़े खराब किए अपने!

9, 10 साल के होने पर' कहीं बाहर दिखाने ले गए वह कार्यकर्म,
माता पिता के पास में बैठे के, उनसे कहते दोस्तों के पास बैठ जाए हम?

11 12 साल के होने पर हमें वह बताने लगे ऐसे कपड़े पहनो, ऐसे बाल बनाओ,
हमने कहा फैशन बदला, जमाना बदला, प्लीज आप हमें ना समझाओ!

13 14 साल में जब आते हम विद्यालय से,
वह चाहते हमारे बच्चे आकर हमें गले मिले!

जाते हम दूसरे कमरे में, कर लेते दरवाजा बंद,
दो पल भी नहीं बैठ के करते उनसे बातें चंद!

16, 17 साल के होते ही दीलाई उन्होंने बाइक और स्कूटी,
ले गए पास मैं जा रहे बोलकर, तेज चला कर हड्डी पसली टूटी!

18, 19 साल के होने पर बाहर कॉलेज में डाला,
हमने कहा हमें चाहिए कॉलेज विदेश वाला!

कुछ वक्त की दूरी नहीं सहन होती उनसे,
पर हमें जाना है लंदन, पेरिस, यू एसए!

हुए कुछ बड़े 25, 26 साल,
पूछा उन्होंने शादी का सवाल!

जवाब दिया उनको यह आपका काम नहीं,
आपको नहीं पता कौन होगा हमारे लिए सही!

30 साल के होने पर कहने लगे, तुम्हारे बच्चे नहीं कर रहे सही,
बच्चों ने जवाब दिया, मां अब पुराने जमाने वाली बात नहीं रही! 

40 50 साल के हो गए, पूरी जिंदगी वह माता- पिता ने कराए मौज,
आज जब बूढ़े हो गए, तो लग रहे हैं हमें बोझ!

सारे बच्चों यह याद रखो,
जिस दिन वह चले जाएंगे,
हम खुद को, कैसे संभाल पाएंगे!

बिना निस्वार्थ के जितना प्यार दिया उन्होंने तुमको,
तुम भी कम से कम निस्वार्थ प्यार देना उनको!

क्योंकि एक ही माता पिता मिलेंगे हमें,
मिल जाएंगे सो रिश्ते,
फिर वक्त निकलने पर, चाहे हम लगाएं लाखों किस्ते!

और फिर कहेंगे जिंदगी भर,
एक माता-पिता ही है जो देते साथ,
कभी ना छोड़ो उनका हाथ,
दिन हो या हो रात, करना चाहे हमसे बात,
पर उनकी कदर ना समझी हमने कभी,
यह बात हम को समझ में आई अभी!
यह बात हम को समझ में आई अभी!


                                                                 डॉ. माध्वी बोरसे


No comments:

Post a Comment