मैं पैसा हूं..।
मैं भगवान नहीं, फिर भी मुझे पूजते हैं।
मैं आपसी रिश्ते बिगाड़ कर,
मैं मतलबी रिश्ते बनाता हूं।।
मैं पैसा हूं...। सबकी पंसद हूं।
मैं कोई व्यक्ति नहीं, जो बलिदान दूं।
मैं लोगों का बलिदान लेती हूं,
मैं तो बस एक माध्यम हूं।।
मैं पैसा हूं...। सबका सपना हूं।
कवि- दीपक कोहली
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