ओ आमा - ओ बूबू,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पाथर छायी मकान हुछी,
अब हैगिना लैन्टरा।।
ओ ताई -ओ ताऊ,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली बैटी देहे-दूध पीछी,
अब मस्त हैगो दारू मा।।
ओ काका- ओ काकी,
कस हैगो म्यर पहाड़।
चूल कौ खाड़ खाछिया,
अब गैस बड़ूछ खाड़ा।।
ओ बैणी- ओ भूला,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली सूट-शलवार पेरछी,
अब जींस में रैगो पहाड़।।
ओ भौजी- ओ दादा,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली खरमी धोती धरछी,
अब हाथ पकड़ी घूमड़ी।।
कस हैगो म्यर पहाड़ा..।।
कवि- दीपक कोहली
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