साहित्य चक्र

15 March 2017

होली की हकीकत-


होली का नाम लेते ही हमारे मन में रंग, पानी, मस्ती-मजाक आता है। होली हमारे देश के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। होली भारत ही नहीं नेपाल सहित कई देशों मेें भी मनाई जाती हैं। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली बड़े ही धूम-धाम से मनाये जाने वाले त्यौहारों में से एक हैं। होली हमारे देश के प्रचीन पर्वों में से एक है, जिसे होलिका, होलाका नाम से भी मनाया जाता है। इसे वंसतोत्सव और काम-महात्सव भी कहा जाता है। वहीं अगर इतिहासकारों का माने तो होली आर्यों में भी प्रचलित थी। इस पर्व का वर्णन हिन्दू पुराणों में मिलता है। वैसे यह त्योहार पूर्वी भारत के राज्यों में अधिकतर मनाया जाता हैं। होली का यह त्यौहार बंसत पंचमी से शुरू होता है। जिस दिन पहली बार गुलाल उढ़ाया जाता है। राग, रंग, संगीत का यह त्यौहार अपने आप में ही बहुत लोकप्रिय है। जिस तरह दीपावली हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय है, ठीक उसी तरह होली भी पूरे भारत में लोकप्रिय है। खेतों की सरसों और बागों के फूलों की खूशबू इस त्यौहार को और भी रोचक बनाती है। इस त्यौहार में लोग संकोच भूल, नई उमंग भरते हैं। रंग-राग का यह त्यौहार वंसत का संदेशवाहक भी माना जाता है। वैसे मुख्य रूप से होली पांच से दो दिन तक मनायी जाती है। जिसमें पहले दिन होलिका जलाई जाती है। जिसे होली दहन भी कहते है। वहीं अगर अंतिम दिन की बात करे, तो इस दिन को धुरड़ड़ी, धूलिवंदन नामों से भी जाना जाता हैं। होली में रंग, अबीर-गुलाल, इत्यादि लगाया जाता हैं। वहीं ढोल बजाकर होली गीत गाए जाते हैं। जिसके बाद लोग मस्ती में झूमते- नाचते हैं। होली सभी धर्मों में मनाया जाने वाला एक मात्र पवित्र पर्व हैं। इस पर्व में लोग अपने घरों में कई प्रकार के पकवान बनाते हैं। जिसके बाद मिल-जुल कर एक साथ कई लोग बैठकर खाते हैं। आपस में मौज- मस्ती- मजाक के लिए भी होली जानी जाती है। वैसे यह त्यौहार हर राज्य में अलग अलग तौर तरीकों से मनाया जाता है। अगर हम देवभूमि की होलीयों की बात करें, तो यहां अपनी बोली में होलिका गीत गाए जाते है। उत्तराखंड में बंसत पंचमी से होलिका गीत गाने शुरू हो जाते है। जब तक होली चलती रहती है, तब तक यहां रोज होलिका गीत गाए जाते है। कभी मंदिरों में तो कभी घरों में गाए जाते है। उत्तराखंड की होली अपने आप में बहुत कुछ कहती, चाहे यहां की होलियों में लोकगीतों मिश्रण ही क्यों ना हो। वो सब कुछ यहां की संस्कृति में चार चांद लगाती हैं। लगभग एक महिना पूरा चलता है, यहां होली का रंग। लोगों में काफी उत्साह देखने को मिलता हैं। चाहे होलिका गीत गाने कि, बात ही क्यों ना हो। होली उत्तराखंडवासियों  के लिए एक नया रंग लाती है। लेकिन अब यह रंग धीरे- धीरे खोता जा रहा है। वैसे होली का जिक्र मुस्लिम पर्यटक "अलबरूनी" ने भी अपनी यात्रा में किया है। वहीं मुगल शासन में भी होली का विस्तार वर्णन मिलता है। आज होली हिंदू ही नहीं पूरे समाज के लोग मनाते है। जो ये दर्शाता है कि आज होली हर समाज के लोग माना रहे है। जो पूरे विश्व के लिए एक अच्छा संदेश है। जिससे हर समाज के लोग आपस में मिलकर हर पर्व को महात्सव के रूप में मना रहे हैं। जो पूरे विश्व समाज के लिए और मानवता के लिए एक सीख है। आखिर क्यों ना हमें हर धर्म के पर्व को एक समान दर्जा देना चाहिए।

                                           संपादक- दीपक कोहली   

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