मेरी आखों में जो नशा छाया है,
वहीं तेरे रोम-रोम में समाया है।।
मैं हूं तेरा दीदार करने वाला,पर
तेरे दर्शन का बुलावा न आया।।
तेरे है बड़े चित्र-विचित्र रुप, पर
मैंने तो तुझे देखा ही नहीं है।।
तेरे हैं कई दिवाने-चाहने वाले,पर
कई तुझे आजतक समझ न पाए।।
मैं हूं तेरा दिल से आशिक, पर
तुझे कभी अहसास ही न हुआ।।
कवि- दीपक कोहली
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