साहित्य चक्र

30 March 2017

मेरी आखें



मेरी आखों में जो नशा छाया है,
वहीं तेरे रोम-रोम में समाया है।।

मैं हूं तेरा दीदार करने वाला,पर 

तेरे दर्शन का बुलावा न आया।।

तेरे है बड़े चित्र-विचित्र रुप, पर 

मैंने तो तुझे देखा ही नहीं है।।

तेरे हैं कई दिवाने-चाहने वाले,पर
कई तुझे आजतक समझ न पाए।।

मैं हूं तेरा दिल से आशिक, पर
तुझे कभी अहसास ही न हुआ।।



                    कवि- दीपक कोहली

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