मैं नींद में था,
मुझे सजाया जा रहा था।
बड़े ही प्यार से मुझे,
नहलाया जा रहा था।
ना जाने वह कौन-सा,
अजब खेल था।
जब मुझे बच्चों की तरह,
उठाया जा रहा था।।
पास थे मेरे अपने सब,
फिर भी मैं अपनों को,
बुलाया जा रहा था।।
जो मुझे कभी प्यार,
नहीं करते थे।
आज वो भी मुझे
मोहब्बत कर रहे थे।।
मैं..हैरान था।
मालूम नहीं क्यों..?
हर कोई मुझे सोते हुए देख,
रोया जा रहा था।।
मुझे जगाया जा रहा था।
लेकिन मैं.. मजबूर था,
जो उठ नहीं पाया।।
कांप उठी मेरी रूह,
जब मैंने वो मंजर देखा।
जहां मुझे हमेशा के लिए,
सुलाया जा रहा था।।
मोहब्बत की इंतहा,
जिन दिलों में थी।
आज वहीं दिलों के,
हाथों मैं जलाया
जा रहा था।।
कवि- दीपक कोहली &
(सहायक- श्यामसुंदर)
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