हमारा उत्तराखंड जितना सुंदर हैं, उतने ही यहां की बेटियां भी, जो आज पूरे देश में अपना लौहा मनवा रहे हैं। चाहे समुद्र हो या फिर सामाजिक कार्य हो, या खेल का मैदान हो, या फिर पढ़ाई का क्षेत्र, हर जगह हमारी बेटियों ने देश का नाम रोशन किया हैं।
जी हां.. आज मैं आपको उत्तराखंड के उन बेटियों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिन्होंने उत्तराखंड का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का मान भी बढ़ाया हैं।
वर्तिका जोशी- जो अभी नौसेना लेफ्टिनेंट कंमाडर पद पर सेवारत हैं। वैसे वर्तिका जोशी उत्तराखंड की ध्रुमाकोट " स्यालखेत " गांव की रहने वाली है। जिनकी प्राथमिक शिक्षा श्रीनगर गढ़वाल से हुई। जिसके बाद आईआईटी दिल्ली से वर्तिका ने पढ़ाई की। वर्तिका जोशी जुलाई में होने वाली नौसेना समुद्री अभियान " सागर परिक्रमा " की कमान संभलेगी। जो ऐसा पहली बार होगा। जब कोई उत्तराखंड की बेटी इसकी कमान संभलेगी। जो हमारे लिए एक गौरवपूर्ण छण होगा।
अंजू रावत नेगी- अंजू पेशे से एक वकील है। जो इस समय गुरूग्राम (गुड़गाव) में रहती है। अंजू अभी गुरूग्राम के कोर्ट में प्रैक्टिस करती है। जो रेप पीड़ित और महिलाओं के मुकदमे मुक्त में लड़ती है। अभी तक अंजू ने 50 से ज्यादा केस फ्री में लड़े हैं और भविष्य में भी निशुल्क लड़ने का वादा किया है। वैसे अंजू उत्तराखंड की बेटी है। जिन्होंने पौड़ी विवि से एलएलबी और मेरठ से एलएलडी की है। जो एक अच्छी वक्ता भी रही है।
एकता बिष्ट- एकता बिष्ट जो एक भारतीय महिला क्रिकेटर हैं। जिन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट में अपनी एक नई पहचान बनाई है। एकता बिष्ट उत्तराखंड की अल्मोड़ा जिले की है। जहां बेटियां क्रिकेट को जानती तक नहीं हैं, फिर भी एकता ने भारत की महिला क्रिकेट टीम में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। एकता ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 50 से ज्यादा विकेट लिए है। एकता इस समय आईसीसी महिला क्रिकेट की आठवें नंबर की गेंदबाज है।
शिखा भंडारी- शिखा ने राज्य न्यायिक सेवा सिविल जज परीक्षा में 5वां स्थान प्राप्त किया। वैसे शिखा उत्तरकाशी, कालेश्वर मार्ग- जोशियाड़ की निवासी है। उत्तरकाशी एमडीएस स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। जिसके बाद 12वीं और एलएलबी की शिक्षा देहरादून से प्राप्त की। वहीं बाद में एलएलएम और सीएलएटी करने के लिए शिखा रायपुर, छत्तीसगढ़ चली गई। शिखा के पापा सिंचाई विभाग, तो माता अध्यापिका हैं।
सुनीता, अंजू, रेनू, आकांक्षा, रीना- ये उत्तराखंड की वो लड़कियां है, जो वीवीआईपी शताब्दी ट्रेन की संचालन कर रही है। जो ट्रेन दिल्ली से काठगोदाम जाती है। शताब्दी देश की पहली ऐसी ट्रेन है, जिसका संचालन बेटियां कर रही है। जो हमारे लिए गर्व की बात है। शताब्दी कुमांऊ की पहली ट्रेन है जो उत्तराखंड में सन् 1882 में चली थी।
उत्तराखंड की इन बेटियों को मेरा सलाम। जो हमारे पहाड़ के बेटियों के लिए मिसाल बन रहे हैं। मैं अपने इस लेख के माध्यम से उत्तराखंड की बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता हूं। आखिर क्यों हमारी पहाड़ की बेटियां पीछे रह जाते हैं। उन्हें सोचना होगा, कि हम भी किसी से कम नहीं।।
संपादक- दीपक कोहली
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