25 July 2022
कविताः हमारी पुस्तक
शब्दों का भंडार है पुस्तक।
लेखक की पहचान है पुस्तक।
जीवन का आधार है पुस्तक।
ज्ञानी का ज्ञान है पुस्तक।
शब्दों को समझाती है।
कठिनाई से बचाती है ।
हमें शास्त्र भी बताती है।
व्यक्तित्व सदा निखारती है।
पहले लगती पहेली है।
लेकिन सच्ची सहेली है।
पढ़ जिसे खुशी मिले।
ऐसी यह अलबेली है।
ज्ञान का आधार पुस्तक।
ध्यान का आगार पुस्तक।
प्रभु का वरदान पुस्तक।
हम सब का प्यार पुस्तक।
लेखिका- नित्या यादव
लेखः जिंदगी में रंग भरती बिटिया, चूल्हे-चौके से सिविल सेवा के शीर्ष तक
सिविल सेवा परीक्षा के नतीजों में इस बार देश की बेटियों ने जैसी धूम मचाई है, वह न सिर्फ उनके परिवारजनों बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए गर्व करने का विषय है।
श्रुति शर्मा, अंकिता अग्रवालतथा गामिनी सिंगला संघ लोक सेवा द्वारा घोषित सिविल सेवा परीक्षा 2021 में क्रमश: प्रथम, द्वितीय और तृतीय रैंक प्राप्त किया है। लड़कियों ने आज हर क्षेत्र में डंका बजा रखा है। पढ़ाई से लेकर नौकरी और व्यवसाय से लेकर अंतरिक्ष में छलांग लगाने के मामले में लड़कियों ने अपनी प्रतिभा से सबको परिचित करा दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली श्रुति शर्मा ने यूपीएससी 2021 प्रथम रैंक प्राप्त की है। यह उत्तर प्रदेश और विशेषकर जिला बिजनौर के लिए बेहद गर्व की बात है। जिस क्षेत्र को कृषि प्रधान क्षेत्र कहा जाता है और जहां पर शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ापन और जागरूकता का अभाव एक लंबे समय तक बना रहा; वहां पर एक स्त्री होने के नाते चुनौतियां और बढ़ जाती हैं। विवाह की जल्दी, बाहर पढ़ने जाने का संघर्ष, अच्छी संस्थाओं (केंद्रीय विश्वविद्यालय) का अभाव, मार्गदर्शन की कमी आदि बहुत कुछ झेलना पड़ता है, लड़ना पड़ता है। लेकिन ऐसे क्षेत्र से आने वाली कोई लड़की अगर यूपीएससी टॉप करती है तो यह भविष्य के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इस बार टॉप १० में प्रथम तीन स्थान पर नारी शक्ति का बोलबाला रहा। यह भी समाज में स्त्री शिक्षा के बदलते स्वरूप को दिखाता है।
महिलाएं आने वाले समय में हजारों नवयुवतियों के लिए प्रेरणा की स्रोत बनेंगी। भारत जैसे परंपरागत समाज में भी अपनी प्रतिभा और लगन की बदौलत स्त्रियां अनछुई ऊंचाइयों तक पहुंच सकती हैं, उनकी वजह से यह आत्मविश्वास नई पीढ़ी की महिलाओं में पैदा होगा। सिविल सेवा परीक्षा में लड़कियां टॉप करती है तो जमीनी हकीकत भी सामने आती है। देश में 52 फीसदी लड़कियां स्कूल शिक्षा के स्तर पर ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। क्यों हैं ऐसे हालात और क्या है इससे आगे निकलने का रास्ता? अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे हमारे देश में जब लड़कियां बड़ी हो रही होती हैं तो उनमें से ज्यादातर को उतने मौके नहीं मिलते शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में आगे बढऩे के, जितने की लड़कों को मिलते हैं। हमारा समाज घर और बाहर, अभिभावक और शिक्षक उनसे अपेक्षा ही नहीं करते कि वे घर के कामों के अलावा दूसरे काम भी अच्छी तरह से करें। वास्तव में उनके ऊपर सामाजिक-आर्थिक और भावनात्मक रूप से उतना निवेश नहीं किया जाता जितना कि लड़कों पर किया जाता है। परिणामस्वरूप लड़कियोंं में आगे बढऩे का आत्मविश्वास, बंधनों से जूझने की हिम्मत ही विकसित नहीं होती। यह सभी के बारे में सच है कि अगर किसी बच्चे से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है तो फिर उसकी आत्मछवि में और सुधार आता है। लेकिन लड़कियों के साथ तो प्राय: उल्टा होता है। स्कूलों में या घर में उनके काम की सराहना कम होती है, उन्हें शाबासी कम मिलती है। जिससे उसकी अस्मिता सिमट कर रह जाती है और इसका उसके प्रदर्शन पर नकारत्मक असर होता है। बेटियों की शिक्षा और फिर उच्च शिक्षा से कब और क्यों वंचित कर दिया जाएगा, इस संशय से वे हमेशा भयग्रस्त रहती हैं। देश की करीब 52.2 प्रतिशत बेटियां बीच में ही अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ रही हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति को करीब 68 प्रतिशत लड़कियां स्कूल में दाखिला तो लेती हैं, लेकिन पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं।
हमारे देश में लड़कियों या महिलाओं के जीवन के कई मोड़ों पर उन के ऊपर यह दबाव आता है जब उनसे घरेलू जिम्मेदारियों तक सिमट जाने की अपेक्षा की जाती है। पहला मोड़ तब आता है जब उनकी इंटर तक की पढ़ाई पूरी हो जाती है। जो लड़कियां इस दबाव से बच पाती हैं वे सुनहरे भविष्य के लिए आगे निकल जाती हैं, पर जो इस बाधा-दौड़ से आगे नहीं निकल पातीं, वे बेचारी हाईस्कूल या इंटर तक पहुंच ही नहीं पातीं। कोई लड़की इस अनचाही बाधा-दौड़ को लांघ पाएगी या नहीं, यह लड़की पर बहुत ही कम निर्भर करता है। यह तो सीधा परिवार की आर्थिक और सामाजिक हैसियत और आसपास के क्षेत्र में स्कूल की मौजूदगी और कानून व्यवस्था की बेहतर स्थिति पर निर्भर करता है। देशे में हम जिन बच्चियों को हम इंटर और हाईस्कूल आदि में टॉप करते और लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करते देखते हैं, उनमें से अधिकांश संपन्न तबके से होती हैं। गरीब परिवारों से लड़कियां प्राय: इस मोड़ से आगे नहीं बढ़ पातीं। गरीब परिवारों से लड़के तो भी आगे बढऩे में सफल हो जाते हैं, पर लड़कियों का आगे बढऩा काफी मुश्किल होता है। एक बार लड़की बाधा-दौड़ को पार कर जाये तो उसे यह अहसास होता है कि यह मौका बहुत संघर्ष से मिला है, गंवाना नहीं है, तो वह पूरे समर्पण और मेहनत से काम को अंजाम देती हुई लड़कों की तुलना में बेहतर सफलता अर्जित करती है।
मेरे देश की बेटियां क्यों स्कूल छोड़ देती हैं। इस विषय पर बिहार और उत्तर प्रदेश में किए गए एक शोधपत्र में तथ्य सामने आए हैं कि बीच में पढ़ाई छोड़ चुकी हर पांच लड़कियों में से एक का मानना है कि उनके माता-पिता ही उनकी पढ़ाई में बाधक हैं। समाज में असुरक्षित माहौल एवं विभिन्न कुरीतियों के कारण आठवीं या उससे बड़ी कक्षा की पढ़ाई के लिए उनके परिवार वाले मना करते हैं। करीब 35 प्रतिशत लड़कियों का मानना है कि कम उम्र में शादी होने के कारण बीच में ही पढ़ाई छोडऩी पड़ती है। यह अध्ययन स्पष्ट इंगित करता है कि बेटियों की शिक्षा के मध्य अवरोध उनके परिवार के सदस्यों द्वारा ही खड़ा किया जाता है। हमारी बेटियां क्यों हतोत्साहित हैं? ऐसा क्या है, जो वह स्वयं को इन क्षेत्रों से दूर कर लेती है जहां समय और श्रम अधिक अपेक्षित हैं। शोध तो ऐसा बताते है कि 5 प्रतिशत लड़कियां ही विज्ञान, तकनीक, गणित और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना कॅरियर नहीं बनाना चाहती। गणित और विज्ञान जैसे विषयों में लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से कमतर नहीं रहा।
व्यक्ति हो या देश, उसकी सफलता इसमें मानी जाती है कि उसमें निहित संभावनाएं उभर कर आएं और इन संभावनाओं का भरपूर उपयोग हो। यदि कार्यबल में महिलाओं के लिए नए द्वार खुलते हैं तो इससे तमाम महिलाओं में निहित संभावनाओं को फलीभूत करने का मार्ग प्रशस्त होगा और हम अपने राष्ट्र की आबादी में मौजूद संभावनाओं का लाभ उठा सकेंगे। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को नए सिरे से आगे आना होगा। लड़कियों की यह कामयाबी सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को भी यकीनन बल देगी। इससे समाज में कमजोर पड़ रही वह सोच और भी बेदम होगी कि लड़कियां सिर्फ चूल्हे-चौके का काम करने के लिए होती है। इससे तमाम मां-बाप तक संदेश पहुंचेगा कि लड़कियां किसी भी मामले में कमतर नहीं है। अभिभावकों की बदलती सोच, सरकारी समर्थन के साथ-साथ खुद लड़कियों के तेवर भी जिस तरह बदल रहे हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी सफलता का सिलसिला भविष्य में और अधिक व्यापक रूप से जारी रहेगा।
लेखिका- प्रियंका सौरभ
कविता- संयुक्त परिवार
हमे परिवार से ही वो ज्ञान मिल सकता है जो
हमे किसी औरों से नही मिल सकता है।
परिवार का बहुत महत्व हमारे जीवन में जो
एक दूसरे को संयुक्त कर के रखता हूं।
चाहे दुख हो या सुख हो वो हमेशा ही आपका
हमेशा साथ और आपके साथ खड़े रहेंगे।
परिवार के बिना हमारा अस्तित्व बिल्कुल
शून्य की तरह हो जाता है,ये बात तब पता
चलती है जब हम अपने परिवार से दूर हो जाते हैं।
परिवार में ही हमारे चरित्र का निर्माण होता हैं।
परिवार एक कुम्हार के द्वारा बनाया गया
बर्तन कि तरह होता है ,जो सिर्फ बनाने वाले को
पता चलता है कि उसे किस तरह से आकार दिया गया है।
जिन के संयुक्त परिवार होता है उनके पास दुनिया
कि सारी खुशी और सारा सुख मिलता है चाहें वो निर्धन हो धनवान।
अच्छा परिवार व्यक्ति को ताकत और हिम्मत देता हैं,
और उसकी सफलता में अहम भूमिका निभाता हैं
जबकि खराब परिवार घर के सदस्यों की राह में बाधा उत्पन करता है।
लेखक- नंदन गुप्ता
अपनी कला को पहचान देती 'संचिता'
हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई एक ऐसी चीज होती है, जिससे वह व्यक्ति अन्य से अलग होता है। कोई व्यक्ति अच्छा लिखता है तो कोई व्यक्ति अच्छा गाता है। इन्हीं में से एक है 'संचिता सिंह' जो पिछले दो-तीन सालों से अपनी कला को पहचान देने की कोशिश कर रही है। संचिता, हावड़ा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल की रहने वाली है और हिंदी से स्नातकोत्तर है। पिछले दो-तीन सालों से संचिता स्केचिंग बनाने का कार्य कर रही है। संचिता ने स्केचिंग बनाने का कार्य खुद से शुरू किया है। ना कहीं से कोई क्लास ली, ना ही किसी की सहायता ली। अपनी कला को निखारने के लिए संचिता दिन-रात मेहनत करती है। हर बार कुछ नया बनाने और अपने कला को सुधारने का प्रयास करती है।
कहते हैं ना जब आपके अंदर कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है तो फिर आप स्वयं अपना मार्ग बनाने लगते है। संचिता अब तक कई स्केच बना चुकी है। संचिता द्वारा बनाए गए कुछ स्केच हमने नीचे शेयर किए हैं। अगर आपको संचिता के स्केच पसंद आए हैं या आप भी संचिता से अपना या अपने परिवार का स्केच बनवाना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए नंबर से आप संचिता से संपर्क कर सकते है। संचिता से स्केच बनवाकर आप उसका हौसला बढ़ा सकते हैं। हमें हर उस इंसान का हौसला बढ़ाना चाहिए जो अपने जीवन में कुछ करने की चाह रखता है। हम एक फिल्म देखने के लिए 400-500 रूपये खर्च कर देते हैं, मगर संचिता जैसे कलाकारों का हौसला बढ़ाने के लिए उनसे एक स्केच या पेंटिंग नहीं बनवाते हैं। हम अपने देश के बच्चों और युवाओं का हौसला नहीं बढ़ाएंगे तो कैसे वह भविष्य में कुछ अच्छा और बेहतर कर पाएंगे। हम आपसे आशा करते हैं कि आप संचिता से एक स्केच बनवाकर उसकी कला को प्रोत्साहित करेंगे।
नाम- संचिता सिंह
संपर्क सूत्र- +91 9051453885
पता- हावड़ा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल- 711108
(नोट- जयदीप पत्रिका के संपादक दीपक कोहली ने सोशल मीडिया पर संचिता के स्केच देखकर उनसे संपर्क किया। संचिता के हौंसले को बढ़ाने और उनकी कला को जयदीप पत्रिका के जरिए प्रोत्साहित करने के लिए संचिता से उनके बेहतर स्केच मांगकर जयदीप पत्रिका के मंच पर आप सभी के साथ साझा किया।)
लेखः भारत को नशा मुक्त बनना, स्वप्न या संकल्प
आज के समय में नशा एक ऐसी समस्या हे जो इंसान के अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार बन जाता हे यानि कि आज युवा वर्ग बहुत जहरीले और नशीले प्रदार्थो के सेवन से इंसान के शारीरक , मानसिक और आर्थिक हानि पहुँचती हे उनके साथ - साथ सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है।
"माप प्रतिष्ठा का बना, जर्दा गुटखा पान।
युवावर्ग गुमराह है, तनिक न उसको भान॥"
जिसके कारण आए दिन दुर्घटनाएं, पारिवारिक कलह, गरीबी, मानसिक परेशानी, शोषण, बलात्कार, भयंकर बीमारियां होती रहती है। वर्तमान में युवा पीढ़ी को इसकी लत बहुत अधिक लग चुकी है जिसके कारण कई युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक नशे का सेवन करने से प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लोगों की रोड दुर्घटना में मौत हो जाती हैं। लगभग 30,000 लोग कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं और नशे का अत्यधिक सेवन करने के कारण 1.4 लाख से अधिक मृत्यु हो जाती है।
यह आंकड़ा प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। सरकार द्वारा नशे को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वह काफी नहीं है। इसी कारण आज का युवा नशे की जकड़ में आता जा रहा है जो कि हमारी संस्कृति और देश के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है।
भारत में नशाखोरी एक बड़ी समस्या बन चुकी हे लोग कई कारणों पर नशा करते हे। नशीले पदार्थो का सेवन करके हम स्वय के दुश्मन बन रहे हे यदि इंसान के पास पर्याप्त धन हो तो उसे नशीले पदार्थो के सेवन में व्यर्थ करने की बजाय अपने बच्यो की शिक्षा तथा आर्थिक विकास पर लगाना चाहिए। ज्यादातर लोग अपनी कमाई का अधिकतर भाग नशे में ही खर्च कर देते हे। नशे कई बीमारिया घर में आती। दुनिया में नशाखोरी एक बड़ी समस्या बन चुकी हे। कई लोग जीवन का तनाव और विफलताएं से पीछा छुड़ाने के लिए नशा करते हे। जिसका परिणाम मौत हे। ह्दय की पवित्रता और विचारो की शुद्धता के लिए नशा मुक्ति बेहद जरुरी हे। नशीले पदार्थ का सेवन करके हम स्वय के दुश्मन बन रहे हे। न केवल शहर के लोग ही नशे के आदि हे बल्कि ग्रमीण भी नशे के आदि हे देशी शराब के साथ साथ पान, बीड़ी की भी मांग बढ़ रही हे।
भारत में शराब और सिगरेट के निर्यात की वजह से करोड़ो रुपये मिलते है। लेकिन फिर भी सिगरेट के पैकेट्स पर ” नो स्मोकिंग ” लिखा रहता है। फिर भी लड़की और लड़के इसका भरपूर सेवन करते है। धूम्रपान या शराब का सेवन स्वस्थ के लिए हानिकारक होता है। यह जानकार भी लोग इसका सेवन करने से बाज़ नहीं आते। तम्बाकू और और गुटखा से माउथ कैंसर हो सकता है। कई सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करना मना होता है।
नशे से मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर बुरा असर पड़ता है। कुछ लोग नशा करके घर पर आकर अपनी पत्नी से मार- पीठ करते है। यह घिनौना अपराध है। नशा करके सड़क पर गाड़ी चलने से दुर्घटना हो सकती है और होती भी है। कम उम्र में नशा करने से आगे चलकर जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इससे परिवार में अशांति का निवास रहता है। नशा करने वाला व्यक्ति के पास आर्थिक तंगी हो जाती है। नशे की लत के कारण व्यक्ति अपनी आर्थिक सम्पति लुटा देता है, नशा करके समाज और कार्य स्थल पर तमाशे करता है जिससे उसकी इज़्ज़त पर आघात हो जाता है।
नशा मुक्ति भारतीय समाज की एक विडम्बना है। निम्न स्तर के लोग अक्सर अपने दैनिक काम के पैसे शराब पीने में लगा देते है। अगर वह पैसे अपने बच्चो की शिक्षा में इस्तेमाल करें तो उनका भविष्य उज्जवल हो सकता है। दुखद रूप से ऐसा कदापि नहीं होता, दो पल के सुख और मज़े के लिए इंसान अपना सब कुछ गवां देता है। इसके दुष्परिणाम इंसान को ही झेलने पड़ते है।
नशे की शुरुआत पहले मज़े और मित्रों के साथ जश्न से होती है। धीरे – धीरे इंसान नशे की अन्धकार जाल में फंसता चला जाता है और अंततः उससे कभी निकल नहीं पता। वह अपने जीवन के सारे लक्ष्य को भूलकर एक नशे के जीवन की तरफ अग्रसर हो जाता है। नशे के कारण इंसान सही और गलत का फर्क भूल जाता है और अपने परिवार से मानसिक और जज़्बाती तौर पर कोसों दूर चला जाता है। जो लोग नशे की लत में पड़ जाते है, उन्हें लगता है की नशा करके उनके सारे दुखों पर पूर्णविराम लग जायेगा। लेकिन वास्तविक में यह सोच अत्यंत गलत है। लोग अपने दुखो को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते है जिसमे न उनका भला होता है न परिवार का न समाज का। अत्यधिक शराब के सेवन से इंसान का लिवर ख़राब हो सकता है और सिगरेट, तम्बाकू से कैंसर जैसी भयानक बीमारियां उत्पन्न होता है। ज़िन्दगी में मनुष्य को खुशियां और ज्ञान बाटना चाहिए न की नशा। कई तरह के ड्रग्स इंसान को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से कंगाल बना देता है। अभी कई तरह के नशा मुक्ति सेंटर है जो नशे से पीड़ित लोगों का चिकित्सा करते है।
कई लोग इन नशा मुक्ति सेंटर में आकर नशे की लत का त्याग कर चुके है जो काफी अच्छी बात है। डॉक्टर्स मरीज़ को नशा जैसे शराब और सिगरेट से आजीवन दूर रहने की सलाह देते है। लोगों को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना होगा ताकि वह नशे जैसी चीज़ों से बाहर निकलकर अपने लिए और अपनों के लिए एक नए भविष्य का निर्माण कर सके।
भारतीय सरकार ने नशा मुक्ति से राहत पाने के लिए कई नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना की है। जो व्यक्ति अवैध रूप से नशे की तश्करी या नशीले पदार्थ बेचते हुए पाया गया उसे जेल हो सकती है और उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। ज़िन्दगी सिगरेट के धुएं से नहीं बल्कि अच्छे सुविचारों, सुशिक्षा और स्वंय नियंत्रण से चलती है। नशा किसी भी मनुष्य की ज़िन्दगी को तबाह करने में सक्षम है। मनुष्य को खुद पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। इस आज़ाद भारत को नशे की ज़ंजीरें बाँध नहीं सकती।
नशा मुक्ति के कई काउंसलिंग सेंटर है जो नशे की लत छुड़वाने में प्रसंशनीय कार्य कर रहे है। ज़िन्दगी से हारकर नशे की लत में पड़ने वाले इंसान को ज़िन्दगी की खूबसूरती से अवगत करवाते है। उन्हें यह समझते है ज़िन्दगी के दुखों, परेशानियों से भागकर कुछ हासिल नहीं होता है। ज़िन्दगी के चुनौतियों से भागकर नशे जैसी चीज़ों का सहारा लेने वाला इंसान को किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। देश में खुशहाली लाने के लिए नशे पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है। सामाजिक और युवा पीढ़ी में जागरूकता अत्यंत अनिवार्य है तभी देश प्रगतिशील होगा। देश और देशवाशियों के हित के लिए नशे को जड़ से उखाड़ना होगा तभी देश का भविष्य उज्जवल होगा।
लेखिका- डॉ.सारिका ठाकुर "जागृति"
23 July 2022
शीर्षक: तंदुरुस्ती का असली राज़
एक स्वस्थ जीवन जीने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति रखता है ।दुनिया में कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि वह अस्वस्थ रहे ,बीमार रहे। अपने आप को बीमारियों से बचाने के लिए हम ना जाने कितने ही जतन करते हैं ,किन किन उपायों को अपनाते हैं और स्वस्थ जीने के स्वप्न को साकार करने के लिए हर संभव कोशिश भी करते हैं जो कि नितांत सराहनीय भी है। हम सभी की सदैव कोशिश रहनी चाहिए कि हम हर संभव प्रयत्न से अपने आप को बीमारियों से बचा कर रखें और एक स्वस्थ जीवन जीने की दिशा में समुचित कार्य करें। स्वस्थ जीवन जीने की चाहत तो हम सभी में होती है ,किंतु हम में से बहुत से लोग अभी भी इतने जागरूक और संवेदनशील नहीं हैं ,विशेषकर अपने स्वास्थ्य को लेकर।रोजमर्रा की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना अधिक मशगूल हो जाते हैं कि हम दैनिक कार्यों में खो कर ही रह जाते हैं और अपनी ओर ध्यान ही नहीं दे पाते। यह सर्वथा गलत है ।अपने प्रति हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है जिसे हमें हर हाल में प्राथमिकता के आधार पर निभाना ही चाहिए।
अपने प्रति इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए जिससे हम तंदुरुस्त रह सकें और समाज के लिए उपयोगी बन सकें। याद रहे, परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई कहलाती है। परिवार के प्रति जिस प्रकार हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं और समाज को अपना योगदान देते हैं उसी प्रकार हमें अपने प्रति अपने फर्ज को निभाना चाहिए और हमारा हमारे प्रति सबसे बड़ा फर्ज है अपने आप को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखना क्योंकि तभी हम समाज के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं ।एक बीमार और रुग्ण व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी नहीं अपितु एक जिम्मेदारी ही मानी जाती है। लंबे समय तक बीमार रहने वाले व्यक्ति अपनी उम्र से अधिक दिखाई देते हैं और जीवन जीने के प्रति उनकी रुचि का ह्रास भी स्वत: ही धीरे धीरे होने लगता है। जीवन उनके लिए किसी बोझ से कम नहीं रह जाता और फिर शुरुआत होती है उनके जीवन में अनावश्यक दुखों और तकलीफों की।
तंदुरुस्ती शारीरिक ,सामाजिक,मनोवैज्ञानिक और मानसिक अनेक प्रकार की होती है। जिस प्रकार अपने शरीर को सुंदर दिखाने के लिए ,उसे आकृष्ट बनाने के लिए हम सुंदर सुंदर वस्त्रों को धारण करते हैं, उसी प्रकार अपने शरीर की आंतरिक स्वस्थता के लिए भी हमें सुंदर-सुंदर स्वादिष्ट और पोषक भोजन और खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए और उन सभी चीजों से अपने आप को दूर रखना चाहिए जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझे जाते हैं। इनमें अधिकतर तैलीय खाद्य पदार्थ, जंक फूड और तेज मसाले वाली चीजें आती हैं। अपने शरीर को समय-समय पर डिटॉक्सिकेट करना भी हमारी जिम्मेदारी है।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए जिनमें से कुछ बातें इस प्रकार हो सकती है:
१) सर्वप्रथम हमें अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाना चाहिए क्योंकि नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति जीवन में सदैव असंतुष्ट रहते हैं और जीवन उनको किसी बोझ और अरुचिकर यात्रा से कम नहीं लगता।
२) दूसरों में कमियां और दोष निकालने की बजाय यदि हम उनकी अच्छाइयों को सराहने की अपनी आदत को विकसित करें तो जीवन जीना ना केवल आसान हो जाएगा,अपितु यह हमें सुंदर भी लगने लगेगा। प्रकृति के कण-कण में सुंदरता और अच्छाई ढूंढने की कोशिश करें ।कमियां खामियां निकालना जितना आसान होता है ,अच्छाइयों को उजागर करना उतना ही मुश्किल। परंतु हमें हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि हम चीजों के उजले पक्ष को देखें और सराहें। ऐसा करना,अप्रत्यक्ष रूप से हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।
३) नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम ,मेडिटेशन और योग करने से भी हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव दृष्टिगत होता है योग और मेडिटेशन करने से ना केवल शारीरिक और मानसिक स्वस्थता बढ़ती है ,अपितु जीवन जीने के प्रति हमारा नजरिया भी सुंदर और सकारात्मक हो जाता है ।इसलिए प्रतिदिन कुछ समय योग और व्यायाम के लिए अवश्य निकालें । योग करने से जीवन जीना सरल हो जाता है ,चेहरे पर चमक आती है और हमारा व्यक्तित्व प्रभावी और आकर्षक बन जाता है।इन सब के साथ ही हमारे आत्मविश्वास में भरपूर वृद्धि भी होती है।
४) स्वस्थ रहने के लिए केवल अच्छा खानपान ही पर्याप्त नहीं होता, अपितु इसके साथ साथ हमें अपने स्वास्थ्य की नियमित रूप से एक अच्छे चिकित्सक से जांच भी कराते रहना चाहिए ताकि सही समय पर ही हमें अपने स्वास्थ्य पर गलत असर डालने वाले अस्वस्थ कारकों का पता चलता रहे और अपने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उनके दुष्प्रभावों से हम खुद को समय रहते बचा सकें।
५) अच्छे खान-पान ,नियमित व्यायाम और योग के साथ-साथ हमें अपनी अच्छी आदतों को भी समय-समय पर विकसित करते रहना चाहिए। जिन कामों से हमें खुशी और संतुष्टि मिलती है उन कामों में हमें स्वयं को व्यस्त करना चाहिए। जैसे : बागवानी ,कढ़ाई ,बुनाई ,बुक रीडिंग ,कुकिंग ,शॉपिंग, घूमना,कोई खेल खेलना,यात्रा करना,साइक्लिंग ,ड्राइविंग और इसी प्रकार की अन्य कोई भी गतिविधियां।
६) शरीर द्वारा महसूस की जाने वाली छोटी से छोटी दुख, तकलीफ,बीमारी और परेशानी को हमें इग्नोर नहीं करना चाहिए तुरंत उसका निदान और इलाज करने के लिए मेडिकल सलाह ले लेनी चाहिए। समस्या का समय पर पता लगाना अत्यंत आवश्यक होता है अन्यथा समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं
७) मानसिक तंदुरुस्ती के लिए हमें उन लोगों से समय-समय पर मिलते रहना चाहिए जिन से मिलने पर हमारे भीतर सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है, हमें मानसिक संतुष्टि मिलती है और हम आनंद का अनुभव करते हैं ।अपने मन को मार कर हमें कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिसका दुष्प्रभाव अप्रत्यक्ष तरीके से हमारे स्वास्थ्य पर पड़े।
८) हमें स्वयं को गलत आदतों से भी सदैव बचा कर रखना चाहिए। गलत आदतें हमारे जीवन जीने में बाधा उत्पन्न करती हैं ,समाज में हमारे सम्मान को कम करती हैं।जुआ,चोरी, नशा ,तंबाकू सेवन ,शराब का सेवन और इसी प्रकार की अन्य गंदी और गलत आदतों से हमें अपने आप को बचाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार की गलत आदतें स्लो पोइज़निंग का काम करती है और हमारे जीवन को तबाह कर देती हैं।
उपरोक्त छोटी-छोटी किंतु बेहद महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखकर हम अपने स्वास्थ्य को संवार सकते हैं और अपने जीवन को सुंदर सरल सहज और स्वस्थ बना सकते हैं यह हमारे लिए हमारे द्वारा दिया गया सबसे अनमोल तोहफा भी साबित हो सकता है। यदि हम वास्तविक अर्थों में समाज के लिए ,अपने राष्ट्र के लिए कुछ उपयोगी और सार्थक करने की चाह रखते हैं तो हमें अपने आपको समाज के लिए हितकारी बनाने के लिए प्रयास करने होंगे और उन प्रयासों में सफलता हासिल करने के लिए हमें जी जान से एक ईमानदार कोशिश भी करनी होगी।
लेखिका- पिंकी सिंघल
जनसंख्या नियंत्रण कानून कब ?
हाल ही में एक रिपोर्ट आई है कि अगले कुछ सालों में भारत जनसंख्या की दृष्टि से चीन को पीछे छोड़ देगा। इस रिपोर्ट के आने के बाद देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग तेज होने लगी है। मांग क्यों नहीं की जाए ? जब देश में बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर हो और ऊपर से लगातार जनसंख्या बढ़ रही हो तो जनसंख्या का बढ़ना देश के लिए गंभीर और भीषण चुनौतियां ला सकता है। कुछ लोगों का मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून जल्द से जल्द लाकर इसे मिशन मोड में लागू करना चाहिए। इसके अलावा सवाल यह भी उठते हैं कि जब नोट बंदी जैसा फैसला किया जा सकता हैं, जीएसटी जैसा फैसला किया जा सकते हैं, तीन तलाक, जम्मू कश्मीर में 370 जैसी समस्या का हल किया जा सकता है तो फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून क्यों नहीं लाया जा सकता है ?
फोटो सोर्स- गूगल |
वक्त रहते भारत अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं पाता है तो भारत में जनसंख्या विस्फोट का खतरा बना रहेगा और यूं ही जनसंख्या बढ़ती रहेगी तो देश में गरीबी बढ़ेगी, क्राइम बढ़ेगा, बेरोजगारी बढ़ेगी इसके अलावा संसाधनों की कमी होने लगेंगी, जिससे देश के हालात बिगड़ सकते है। देश की जनसंख्या को नियंत्रण करने के लिए सिर्फ सरकार के प्रयासों से ही काम नहीं चलेगा बल्कि देश की जनता को भी अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। आज भी हमारे देश में कई लोग पुत्र मोह में तीन-तीन, चार-चार बच्चे पैदा कर देते हैं। मैं यहां पर अपने गांव के दो उदाहरण देना चाहूंगा- मेरे गांव में एक व्यक्ति ने पुत्र मोह में 12 लड़कियां पैदा कर दी और एक ने 6 लड़कियां पैदा कर दी। हां यह दोनों संपन्न परिवार और ऊंची जाति से भी है, एक ब्राह्मण तो दूसरा राजपूत है। हां यह मैं नई पीढ़ी की बात कर रहा हूं। वह दोनों शिक्षित भी हैं और दोनों के परिवार के पास जमीन और धन दौलत भी है।
जब से यह रिपोर्ट आई है तब से हमारे देश में मुस्लिम समाज को टारगेट किया जा रहा है। बहुत सारे लोग सोशल मीडिया के जरिए कह रहे हैं कि मुस्लिम समाज में आज भी 2-3 शादी करने का रिवाज है। इसके अलावा 4-5 बच्चे पैदा करने की परंपरा चली आ रही है। ऐसा नहीं है कि देश की जनसंख्या को बढ़ाने में सिर्फ मुस्लिम समाज का ही योगदान रहा हो। आपकी जानकारी के लिए बता दूं भारत की जनसंख्या करीब एक अरब 40 करोड़ के आसपास है। इसमें से मुस्लिम समाज की जनसंख्या करीब 25-30 करोड़ के आसपास है। बताइए 110 करोड़ लोग जनसंख्या ज्यादा बढ़ाएंगे या फिर 30 करोड़ लोग ? सिर्फ धार्मिक परिदृश्य से सोचना और देखना एकदम गलत है। हम सभी को मिलकर और सोच समझकर देश हित में फैसला करना चाहिए।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए की देश जनसंख्या बढ़ेगी तो सिर्फ एक ही धर्म या एक ही समाज के लोगों जिम्मेदार होंगे या एक ही समाज को नुकसान होगा। अगर जनसंख्या विस्फोट होगा तो सभी धर्म, जात और मजहब के लोगों को मुसीबतों का सामना करना होगा। अब फैसला आपके हाथ में है- आपको धर्म की घुट्टी पीनी है या फिर देश हित में सोचना है। बाकी आपने मेरा यह लेख पूरा पढ़ा इसके लिए आपको मेरा कोटि-कोटि नमन और प्रणाम।
संपादक- दीपक कोहली
कुमाऊँ हिमालय के स्वतंत्रता सेनानी 'मर्च राम जी'
जिला अल्मोड़ा के दलित शिल्पकार मर्च राम जी का नाम अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है।
हरिप्रसाद टम्टा जी द्वारा शुरू की गई पत्रिका 'समता' के वर्तमान सम्पादक दया शंकर जी ने पिछले साल एक ऑनलाइन सम्मेलन में कांग्रेस के नेताओं के साथ जुड़े मर्च राम जी के बारे बहुत ही रोचक जानकारी दी। दयाशंकर जी के मुताबिक 1940-41के बाद किसी समय मर्च राम जी बहुतअच्छे और साफसुथरे कपड़े पहने हुए अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे।
दलित होने के कारण उनका अच्छा पहनावा स्थानीय अपरकास्ट थोकदार को चुभ गया और उसने उन्हें पुकारते हुए कहा- "ओ मर्छुआ तू कहाँ जा रहा है ज़रा इधर आना तो "मर्च राम जी ने अनसुना कर दिया और चलते रहे।
थोकदार के साथ ही एक अपर कास्ट सरकारी पटवारी भी था वो मर्च राम जी के पीछे लपका और उन्हें रोककर उनके कपड़े पकड़ते हुए जातिसूचक गाली देते हुए कहा- "मर्छुआ थोकदार साहब बुलाते हैं तो आता क्यों नहीं ?"
अपनी पत्नी के साथ जा रहे, मर्च राम जी को ये रवैया बिलकुल पसंद नहीं आया। स्वाभिमानी मर्च राम जी ने सरेआम एक बहुत झन्नाटेदार तमाचा पटवारी को जड़़ दिया और कहा जाता है कि पटवारी होश खोने की स्थिति में आ गया था। पटवारी की सबके सामने बेइज्जती हुई और दयाशंकर जी बताते हैं कि दलित शिल्पकार के हाथों पिटने से गाँव में ऊंचा ओहदेदार पटवारी मज़ाक का पात्र बन गया।
पटवारी ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजी कि मर्च राम लोगों को ब्रिटिश के ख़िलाफ़ विद्रोह के लिए भड़का रहा है। पटवारी की रिपोर्ट पर मर्च राम जी देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिए गए और बाद में आज़ाद भारत में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला।
मर्च राम जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, वो ब्रिटिश से पहले किसी और की गुलामी के विरुद्ध संघर्षरत थे और उनके द्वारा जातिवादी पटवारी को जड़ा का थप्पड़ भगत सिंह द्वारा असेंबली में फेंके गये बम से किसी रूप में कम नहीं था।
मेरी नज़र में जातिवादी थोकदार और पटवारी के सामने अपने स्वाभिमान की रक्षा करने वाले, अपने मानवीय अधिकारों के लिये प्रतिरोध करने वाले और जातिवादियों को सरेआम झन्नाटेदार थप्पड़ मारने वाले मर्च राम जी सच्चे स्वतंत्रता सेनानी हैं।
जातिवर्चस्व के विरुद्ध किया गया प्रत्येक मानवीय प्रतिकार स्वतंत्रता का संघर्ष है। हमें याद रखना चाहिए कि हर हाशिया जो फैलने को जूझता है वो हमारी दुनिया को और फैलाता है।
इंसानी गरिमा के लिये किया गया हर व्यक्तिगत प्रतिरोध हमें गहराई से इंसानी गरिमा का मतलब बताता है। केवल एक बुलंद निगाह भी हमें बता सकती है कि आसमान कहाँ है।
सच्चे स्वतंत्रता सेनानी मर्च राम जी को शत शत नमन और श्रद्धांजलि।
लेखक- मोहन मुक्त
कविताः बचपन का दौर
हर बात में हँस लेना,
वो हर हार में जीत ढूंढ लेना,
बहुत याद आयेगा जब यह
बचपन का दौर गुज़र जायेगा।
दोस्तों के साथ हर दिन मज़ा करना
वो यूं ही बस बचपने में लड़ना
भूख लगने पर क्लास में लंच करना
बहुत याद आयेगा जब यह
बचपन का दौर गुज़र जायेगा।
एक्जाम का डर, पिकनिक का मज़ा
ज़ोर से बात करने पर मिलने वाली सज़ा
बहुत याद आयेगा जब यह
बचपन का दौर गुज़र जायेगा।
हम तो बड़े हो जायेंगे पर हमारा बचपन ,
इसी स्कूल की दीवारों में ठहर जायेगा।
कभी लगता, कब तक स्कूल है जाना,
भगवान एक छुट्टी तो कर दो...
अब खलता है स्कूल से जाना,
भगवान ये छुट्टियां कम कर दो।
अरे कौन कहता है समय रुकता नही!
हम में से हर कोई यहां से चला जायेगा,
पर बचपन का हर पल
इसी स्कूल में ही ठहर जायेगा,
वो टीचर्स का प्यार,वो मेरे प्यारे यार!
ना जाने कहां मिलेंगे दुबारा।
कुछ न छूट कर भी इस स्कूल में...
तो मेरा बचपन छूट गया सारा।
लेखिका- सृष्टि सिंह
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