बन गए हो दोस्त से दुश्मन अगर
तो दुश्मनी का भी कायदा निभाओ
सामने से आकर वार करो
न पीठ पर यूं खंजर चलाओ
करते हो जो निंदा हर महफ़िल में हमारी
क्या हुआ था वह कहानी भी बताओ
तुम भी कसूरवार कम तो नहीं थे
इन हरकतों से अब बाज आ जाओ
कच्ची दीवारों पर खड़े कर दिए थे
जो दोस्ती के महल उनको यूं न गिराओ
कुछ तो भरोसा रहने देना बचा कर
कि मिलो तो नज़र मिला पाओ
धोखा देने की आदत नहीं गई तुम्हारी
सामने बात करो नज़रों से नज़रें मत चुराओ
बेबफाई का जिक्र हम नहीं करेंगे किसी से
गिर के संभल जाएंगे हम जितना चाहे गिराओ
प्यार मोहब्बत से जलते है रिश्तों के दीपक
नफरत की आग से मत इनको बुझाओ
जाना चाहते हैं जो अपनी कश्ती से दरिया के किनारे
कश्ती को उनकी बीच दरिया में न डुबाओ
रवींद्र कुमार शर्मा
No comments:
Post a Comment