साहित्य चक्र

04 January 2023

कविताः व्यंग्यात्मक भाव





पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं

परिवार को वीआईपी सुविधा सुविधाएं देता हूं 
बच्चों को महंगी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाता हूं 
हरे गुलाबी बहुत शिद्दत से लेता हूं 
पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं 

समझदार समझते हैं भ्रष्टाचारी हूं 
मेरा ईमान धर्म हरे गुलाबी है 
पगार केवल दस हज़ार है 
पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं 

हर काम के लिए सौदेबाजी करता हूं 
बाहर दलालों का घेरा बैठा दिया हूं 
पूरी चैनल बनाकर भ्रष्टाचार करता हूं 
पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं 

आलीशान बिल्डिंग गाड़ी मेंटेन करता हूं 
परिवार सहित ब्रांडेड वस्तुएं यूज करता हूं 
सेठों से कम जीवन नहीं जीता हूं 
पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं 

कल किसने देखा है भावनानी का भाव रखता हूं 
विपत्तियां आएगीतो हरेगुलाबी से निपट सकताहूं 
सब जगह यही चलते हैं जानता समझता हूं 
पगार कम पर वीआईपी जिंदगी जीता हूं 


                              - किशन सनमुख़दास भावनानी



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