।। पहली कविता ।।
सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले देश की शान हैं
पहली महिला शिक्षिका का वरदान हैं।
मेहनत और लगन से ज्ञान ज्योति जलाई
सम्पूर्ण राष्ट्र के कोने कोने में पहुंचाई।
बालिकाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया
नारी शक्ति को शिक्षा ग्रहण का सम्मान दिया।
महाराष्ट्र में जन्मी अदभुत प्रतिभाशाली हैं
प्रथम बालिका विद्यालय स्थापित करने वाली हैं।
सावित्रीबाई फुले ज्ञान देवी स्वरूपा हैं
शिक्षा का मजबूत पौधा इन्होंने ही सींचा हैं।
ऐसी गौरवान्वित श्रेष्ठ नारी शक्ति को नमन करते हैं
अनेक संघर्ष कठिनाई झेलकर भी अपना लक्ष्य न छोड़ा ।
सावित्रीबाई फुले जी का इतिहास पढ़ें
शब्द वाक्य अनुवाद विद्या का राग जपे।
- क्रांति देवी आर्य
।। दूसरी कविता ।।
मैं जब भी सावित्रीबाई का नाम सुनता हूँ
तो मेरा सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है
लेकिन जब मैं समाज की नीचाई से वाक़िफ़ होता हूँ
तो शर्म से झुका लेता हूँ नजरें
सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण करने वाला यह समाज,
सावित्री जैसी स्त्रियों पर गोबर और पत्थर कैसे फेंक लेता है?
गार्गी,घोषा,अपाला को पूजनीय बताने वाला यह समाज,
सावित्री द्वारा सावित्रियों, शूद्रों और व्रात्यों को पढ़ाते वक्त
क्यों तरेरने लगता है आँखें?
तमाम तर्कों और स्पष्टीकरणों के इतर
एक सच तो यह भी है कि इस समाज को सीताएँ रास आती हैं
वे सीताएँ,जो राम द्वारा प्रदत्त अग्नि-परीक्षा को भी चुपचाप
आँखें नीची किए हुए स्वीकार कर लेती हैं...
इस समाज को वे सावित्रियाँ आदर्श लगती हैं जो
यमराज के मुख से अपने पति को छीनकर,
पितृसत्ता का पेट और मन भरती हों...
पर यह समाज उन सावित्रियों से डर जाता है जो
परंपराओं की छाती पर पैर रखते हुए,
अपने पति को मुखाग्नि देने का साहस और सामर्थ्य रखती हैं
यह दोगला समाज इन सावित्रियों से डरता है,
यह समाज पढ़ने-पढ़ाने वाली सावित्रियों से डरता है
और डरते-डरते डराने के लिए
एक खोखला आक्रमण कर बैठता है...
मगर अफ़सोस!आक्रमण करते ही वह हार जाता है,
जीत जातीं हैं सावित्रियाँ,
और ख़ुश होते हैं ज्योतिबा...
- अजय 'दुर्ज्ञेय'
।। तीसरी कविता ।।
3जनवरी को वह जन्मी
बचपन से शौक बन गया
उन्हें पढ़ने और लिखने का
अब्बल आती कक्षा में सबसे
प्रथम महिला शिक्षिका बनने
पर गौरवान्वित हुआ इतिहास
बालिकाओं को सबसे पहले
शिक्षा दिलाने वाली विद्यालय
खोलने वाल ऐसी थी सावित्री बाई।
ज्ञान की देवी वो ममता मयी
सबको एक अलग पहचान दिलाने वाली
देश मैं अलग पहचान बनाने वाली,
ऐसी थी सावित्रीबाई फुले जी जो एक
अलग शिक्षा की जोत अलख जगाने वाली।
जीवन के संघर्षों से लड़ने वाली
समस्त नारी जगत को शिक्षा की
घर-घर जाकर अलख जगाने वाली
लोगों ने पत्थर कंकड़ मारे फिर भी
ना डरने वाली सबके सामने डटकर
मुकाबला करने वाली
ऐसी थी सावित्रीबाई फुले जी।
इतिहास गवाह है इस धरा पर
समस्त नारी जगत को सम्मान दिलाने वाली
सबसे पहले शिक्षा जगत में सम्मान पाने वाली
हमारे देश में सबसे पहले विद्यालय खोलने वाली
ऐसी थी मां सावित्रीबाई फुले जी।
- रामदेवी करौठिया
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