साहित्य चक्र

04 January 2023

बाल कविता: जाकर करने लगे पढ़ाई





अधेड़  उम्र थी  सन्ता नाम ,
व्यर्थ  घूमना  उनका  काम ।

बच्चे  उनसे  रहते  थे  दूर ,
करते  रहता   सदा  कसूर !

अनपढ़ और  अंगूठा  टेक ,
दया उमड़ती  उनको  देख ।

बिना  टिकट के  बैठे  रेल ,
छ: महीने की भोगी  जेल !

जेल चक्की पीसके  आये ,
लोंगों  ने  बहुत   समझाये !

मोटी  बुद्धि  के  जो  ठहरे ,
बनते  सुनकर मानों  बहरे !

बिना  मास्क  गये  बाजार , 
घुसे  जहां  थे  कई  हजार !

पुलिस की  तब  खाई मार ,
घर आकर के  पड़े  बीमार !

बार - बार  जाता  थे  दायें ,
कितनी बार उन्हें समझायें ?

सभी जगह  मिलती  टोक ,
पड़  गये  तब  गहरे  शोक !

बच्चे  उनको  ताऊ  कहते ,
बहुत  सारे   चिढ़ाते  रहते ! 

कहते निरक्षरता है कारण , 
शिक्षा को किया न धारण !

बोले  कान पकड़कर तब ,
ऐसे काम न  करूंगा अब ।

दी सबने तब  नेक सलाह ,
बोले   इसमें  बहुत  भला ।

प्रौढ़  शिक्षा   ग्रहण  करो ,
ज्ञान  से   मस्तिष्क  भरो ।

बात  यह  समझ में आई ,
जाकर  करने लगे पढ़ाई ।


                                      - डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी




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