अधेड़ उम्र थी सन्ता नाम ,
व्यर्थ घूमना उनका काम ।
बच्चे उनसे रहते थे दूर ,
करते रहता सदा कसूर !
अनपढ़ और अंगूठा टेक ,
दया उमड़ती उनको देख ।
बिना टिकट के बैठे रेल ,
छ: महीने की भोगी जेल !
जेल चक्की पीसके आये ,
लोंगों ने बहुत समझाये !
मोटी बुद्धि के जो ठहरे ,
बनते सुनकर मानों बहरे !
बिना मास्क गये बाजार ,
घुसे जहां थे कई हजार !
पुलिस की तब खाई मार ,
घर आकर के पड़े बीमार !
बार - बार जाता थे दायें ,
कितनी बार उन्हें समझायें ?
सभी जगह मिलती टोक ,
पड़ गये तब गहरे शोक !
बच्चे उनको ताऊ कहते ,
बहुत सारे चिढ़ाते रहते !
कहते निरक्षरता है कारण ,
शिक्षा को किया न धारण !
बोले कान पकड़कर तब ,
ऐसे काम न करूंगा अब ।
दी सबने तब नेक सलाह ,
बोले इसमें बहुत भला ।
प्रौढ़ शिक्षा ग्रहण करो ,
ज्ञान से मस्तिष्क भरो ।
बात यह समझ में आई ,
जाकर करने लगे पढ़ाई ।
- डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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