साहित्य चक्र

01 January 2023

चला दिसम्बर हाथ छुड़ाकर



चला दिसम्बर हाथ छुड़ा के, नवल जनवरी आया।
पश्चिम ने शुरुआत करी थी, सबके मन यह भाया।।

भूल सभ्यता संस्कृति अपनी, नया साल सब माने ।
धूम धड़ाका मस्ती करन , जाने सभी दिवाने।
नया साल हिन्दी तिथि का अब , सबने आज भुलाया।
चला दिसम्बर हाथ छुड़ा कर...

चैत्र प्रतिपदा के गुण शाश्वत, अब यह कौन बताए।
प्रकृति बताती शुभकर दिन यह, दिनकर आभा लाए।
वेद पुराणों ने नव महता, अन्तर ज्ञान बसाया।
चला दिसम्बर हाथ छुड़ाकर...

आज आधुनिकता में सारे, एक जनवरी जाने।
तकनीकी दुनिया है अपनी, इसको मानक माने।
अंग्रेजी को मान बनाए, नया साल मन भाया।
चला दिसम्बर हाथ छुड़ाकर...

खुशियाँ जिस पल में भी पाओ, सहज उसे अपनाओ।
दूजे का सुख पाकर लेकिन, अपना भूल न जाओ।
संस्कारी अपनापन हिय में, भारत की यह छाया।
चला दिसम्बर हाथ छुड़ा कर...

जनवरी में गर उत्सव करते, चैत्र महोत्सव जानो।
भारतीय अपनी संस्कृति को, देवतुल्य शुचि मानो।
परिवर्तन भी हो शुभकारी, मधु मन आस बँधाया।
चला दिसम्बर हाथ छुड़ाकर...


- डॉ. मधु शंखधर 'स्वतंत्र', प्रयागराज


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