साहित्य चक्र

21 August 2017

* पत्थर *

कवि बलवन्त बावला

ताजमहल का आकर्षण हो
या लाल किले का गर्जन हो
स्तम्भ लेख हो या शिलालेख हो
या कोई पुरातन अभिलेख हो
शिक्षा का केन्द्र तक्षशिला हो
या कोई पुरातात्विक जिला हो
इन सभी धरोहरो स्थलों का पत्थर से गहरा हमारा नाता है
पत्थर को पत्थर न समझ पत्थर तो इतिहास हमारा गाता है
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पार किया विशाल समुद्र राम दलन ने
पत्थर ही था पथ का राम बना
पत्थर ही है हर मन्दिर मे
जो है भक्तों का धाम बना
किसी ने पत्थर पूजने में जीवन बिता दिया
किसी ने पत्थर तोड़ने में खुद को खपा दिया
'बावले' यह किसी का दाता तो किसी का भाग्य विधाता है
पत्थर को पत्थर न समझ पत्थर तो इतिहास हमारा गाता है
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आज हमारे पास गोला बारूदों का अम्बार है
आधुनिक हथियारों की ललकार है
हम सलामी भी देतें है  तोप की
तब पत्थर से ही मिलता था आहार
क्योंकि पत्थर ही था एकमात्र हथियार
उत्तर में पत्थर ही वो प्रहरी है जो हमारी सुरक्षा का व्याख्यान हमें सुनाता है
पत्थर को पत्थर न समझ पत्थर तो इतिहास हमारा गाता है
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सूरज वही है तपन वही है
धरा वही है  गगन वही  है
धरम वही है चमन वही है
आज बस फर्क इतना है 
तब दौर पत्थर का था अब लोग पत्थर के हैं
इन्ही पत्थर दिलों मे से कोई नेता/व्यापारी/मजदूर/किसान
तो कोई घाटी का पत्थर बाज कहाता है
पत्थर को पत्थर न समझ पत्थर तो इतिहास हमारा गाता है
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रचनाकार-- कवि बलवन्त बावला

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