साहित्य चक्र

18 August 2017

* चंचल मन *

नूतन शर्मा


चंचताता चल चपल मन की,
तरलता तरल नयन भर की।
श्रृंगार किए नव दुल्हन की,
मन में उमड़े अनेकों प्रश्नों की,
क्या होगा, कैसे होगा....।।

नव जीवन के नव संबंधों की,
आशाओं की, अभिलाषाओं की,
एक दिन में जीए कई पलों की,
भावनाओं की, अरमानों की,
नव जीवन में प्रवेश की कल्पना की,
परिंदों की, उड़ानों की,
चंचलता चल चपल मन की,
तरलता तरल नयन भर की......।

                             नूतन शर्मा

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