साहित्य चक्र

06 August 2017

* सच लिखता हूँ *




पाश  पर  भारी  गात यहाँ
फिर कैसे पाश की बात यहाँ
आये दिन दिखता बलात् यहाँ
जो पाश को देता मात यहाँ


न रोक यहाँ न टोक यहाँ
स्त्री बनी है जोक यहाँ
हम कैसे करें इन पर नाज सुनो
बुरे हालत इनके आज सुनो


गर नजरें नत हो वहाँ
दिखे मातृ शक्ति जहाँ
तो निश्चित ही मीत यहाँ
हो राखी की जीत यहाँ


लेकिन सुनता कहाँ कोई
इस राह को चुनता कहाँ कोई
बाँध के बन्धन जाते भूल
राखी हो या माला फूल


सुन्दर घटा सावन मास है
प्यार का यह पावन पाश है
गर ईमान से पाश का पालन हो
सम्भव है स्वच्छ धरा का दामन हो


बन चुकी नजरो की भी भाषा है
हर नजर की अलग परिभाषा है
जब तक संवेदनाओं को ये हताशा है
बावले तब तक राखी एक तमाशा है


                                                        रचनाकार- कवि बलवन्त बावला

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