साहित्य चक्र

19 July 2017

* पति-पत्नी का रिश्ता...।


पति और पत्नी का रिश्ता तभी सार्थक है जब वे एक दूसरे की शारीरिक , मानसिक व भावनात्मक जरूरतों को समझें, अन्यथा यह रिश्ता बिल्कुल बेमानी लगने लगता है। 

सीमा भाटिया



ये जो नश्तर चुभोए
तुमने शब्द बाणों के
दिल को भेदते हुए
खंजर मारे तानों के

तुम तो सोए हो चैन से
सुकून के वो पल भोग
नींद छीन ली नैनों से
दे गए हो हजारों रोग

जार जार है तन मेरा
बिखल रहा मन मेरा
नींद कहाँ आँखों में?
टूट रहा यह बदन मेरा

भोग्या हूँ बस तुम्हारे लिए
थकान उतरती मुझ से
पर कभी सोचा है यह
मेरा दिल क्या चाहे तुझ से?

वो मीठी प्यार भरी बातें
दो मधुर प्रेम भरे बोल
कर सकते आनंदित मन
बना सकते जीवन अनमोल

पर तुम न समझे मोल कभी
इन हसीं एहसासों का
खोजते हांड माँस में ही
मोल अतृप्त श्वासों का

एक रात बीत गई फिर
अनगिनत आनी बाकी हैं
मैं धरूँ रूप रम्या का
तन बदन इक साकी है।

मेरी मामूली ख्वाहिशों को
काश तुम समझ पाते
साथ ही मधुर स्वप्न देखते
बनती यादगार ये रातें....।

                                                       सीमा भाटिया

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