साहित्य चक्र

14 July 2017

# अंधविश्वास #

सुमन जांगड़ा

 
घर की हालत बद्तर है,लेकिन मंदिरों में फर्श सीसे की तरह चमक रहे है
गरीब को खाने के लाले पड़े हुए है,पर पूजारियों के पास अनाज सड़ रहे है 
लानत है मानव तेरी सोच पर,मंदिरों में पैसा पानी की तरह बहा दिया 
किसी राह चलते जरूरतमंद ने 2 रूपये मांग लिए ,उसे भिखारी बना दिया।

मंदिरों में ही भगवान मिलते है, उन मासुम बच्चों के दिल में  क्यों नही ?
जो सर्दी -गर्मी की परवाह किये बिना, सड़को पे पड़े रहते है रात भर वहीं
शिक्षा के अभाव के कारण बेचारे, सपनोँ को जिन्दा ही मार लेते है पर
किससे शिकायत करें वो,समाज में तो सारे भगवान के भक्त रहते है।

मजदुरी के भोझ तले ,उनका बचपन दब जाता है
सच बताओ दुनियां वालो क्या ऐसे भगवान खुश हो पाता है
हाथ जोड़कर विनती है,इतना सा कहना मानो
ना बटों धर्म के नाम पर, सच्चाई को पहचानों ।

मंदिरों का धन बेकार पड़ा है और कोई मरीज दवाइयों के बिना खड़ा है.
 भगवान सोने से लदा हुआ है पर कोई पथिक चादर के बिना बाहर पड़ा है
जिस दिन मंदिरों में पड़ा धन ,गरीबों में बंट जायेगा तो
किसी माई के लाल की ओकात नही अपने भारत देश को गरीब बताएगा।

 मैं भी भारत वासी हुँ कहने का पुरा हक़ है
पर ये मेरी नहीं हम सब की लड़ाई है
हो सकता है मेरे शब्द किसी को बुरे लगे,
लेकिन मानो या न मानो यही सच्चाई है।

                                                 *सुमन जांगड़ा*

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