साहित्य चक्र

13 July 2017

*जल गीत*





पानी है अनमोल  सारी दुनिया को समझाना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नहीं बहाना है।
नदियों में रौनक है इससे  हर बादल दीवाना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नहीं बहाना है।
जमीनदार का अनदाता ये फसलों का खजाना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नहीं बहाना है।
हर घर में पहचान है फुलो में मुस्काना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नही बहाना है।
कदर सीख लो इसकी करना वरना पछताना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नहीं बहाना है।
मैं समझाऊ तुमको  तुमने औरो को समझाना है
कुदरत का उपहार है ये व्यर्थ नहीं बहाना है।



                                              *सुमन जांगड़ा*

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