* बूढ़े मां- बाप का सहारा कौन....?
* बूढ़े मां- बाप का सहारा कौन....?
"ढलते सूरज की तरह है, पर उनके बिना घर अधूरा है"
मानो या ना मानो फिर भी अपनों का हाल जानते है।।
बूढ़े मां-बापें का सहारा कौन...? जी हां आज दुनिया जितनी आधुनिक और आगे बढ़ रही है उतने ही बूढे़ मां-बाप अपनों से दूर होते जा रहे है। आज का युग जितना ही अधिक विकसित हो रहा है उतने की हमारे मां-बाप अकेले होते जा रहे है। मेरा कहने का अर्थ ये है कि आज हमारे पूर्वज (दादा-दादी) अकेलापन सह रहे है। क्योंकि कुछ पूर्वजों (लोगों) का कोई सहारा नहीं है और कुछों का सहारा होने के बावजूद भी वे अकेले रह रहे है। जिसका एक कारण हम ये मान सकते है कि समय आधुनिक होना। आज हमारे देश में कई बुर्जुगों की हालत काफी परे है। इसी को देखते हुए सरकार ने देश में जगह-जगह वृद्ध-अाश्रम खाले है। जिस में बुर्जुग और बेसहारा लोग रह है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती सवाल तो ये है कि हम उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यो करते है.? जिससे उन्हें अकेलापन महसूस होता है। हमें सोचना ही होगा कि जिन मां-बापो ने हमारे लिए दर्र-दर्र की ठोकरें खाई और हम अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया। जिसके चलते हम अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और आज हम अपने पैरों पर खड़े हुए। वहीं हमें अपनी अाने वाली पीढ़ी को भी बताना होगा कि हमारे पूर्वज कौन थे और कौन हैं। जिससे हमारे नई पीढ़ी परिचित हो सके। जहां शहरों कुछ नई पीढ़ी के बच्चों को आज भी पता नहीं होता कि उनके दादा-दादी कौन है और कहां रहते है। क्योंकि इन बच्चों को उनके मां-बाप बाताते ही नहीं है कि उनके दादा-ृदादी और गांव भी है। जिस देश में श्रवण कुमार जैसे सेवी पुत्र पैदा हुए हो और आज उस देश में बूढ़े माता-पिताओं की ऐसी हालत देख बढ़ा ही दुख होता है। वहीं एक समय था जब भारत में बुर्जुगों का सम्मान हुआ करता था लेकिन आज देश अपना यह संस्कृति भूल रहा है। हमें इस बारे में सोचना होगा कि देश कि संस्कृति खतरे में हैं और पश्चिमी संस्कृति ्पना रही है। मुझे दुख इस बात का नहीं है कि हमारा देश तरक्की कर रहा है, मुझे तो दुख इस बात का है कि भारत जैसे सभ्यता संस्कृति वाले देश में बूढ़े मां-बापों (बुर्जुग) के साथ ऐसा हो रहा है। क्या यह भारत जैसे देश को शोभा देता है, अगर देता है तो इसे मातृभूमि नहीं कहना चाहिए क्योंकि जहां चंद रुपयों के लिए और बीबी बच्चों के लिए बुर्जुग माता-पिताओं का अपमान किया जाता है। जिससे उन मां-बापों के हौसलें और उम्मीदें खत्म हो जाती है और वे अंधकार से अपना जीवन त्याग देते है।
दीपक कोहली
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